Thursday 30 April 2020

Shakun Trivedi : मोदी जी का सपना

Shakun Trivedi : मोदी जी का सपना: गैंगटॉक ( सिक्किम ) जाना हुआ ,  पहाड़ों की सुंदरता अकल्पनीय थी   जगह -जगह  पहाड़ों से बहते हुए  झरने ,गहरी -गहरी खाई मन को वशीभूत करने क...

मोदी जी का सपना


गैंगटॉक ( सिक्किम ) जाना हुआ ,  पहाड़ों की सुंदरता अकल्पनीय थी   जगह -जगह  पहाड़ों से बहते हुए  झरने ,गहरी -गहरी खाई मन को वशीभूत करने के लिए काफी थे किन्तु  वहां की जिस बात  ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो था वहां का नियम - कानून,  वहां के लोगो का शांतिप्रिय स्वाभाव। टैक्सी चालक टैक्सी में गाने भी   हल्की आवाज में सुनते ताकि किसी को परेशानी न हो ।    अपने शहर -गांव के प्रति समर्पण अपनी सभ्यता के प्रति निष्ठा और सबसे ज्यादा सराहनीय था वहां के लोगो द्वारा स्वछता के प्रति जुनून।  वहां गंदगी फैलाना जुर्म है यहाँ तक की कोई भी कही भी गुटका -पान  मसाला नहीं थूक  सकता।  कही भी कचरा नहीं फेक सकता।   गाड़ी में बैठ कर चिप्स --बिस्किट -केक का स्वाद लेकर खाने वाले उसके रैपर या पानी की बोतलों को किसी पहाड़ या खाई में नहीं फेंक सकते।   अधिकतर  पर्यटक गंगटोक में नियम मान कर अपनी सज्जनता का परिचय देते  है वही वे सिलीगुड़ी पहुंचते ही खुद को आजाद अनुभव कर जी भर कर कचरा फेंक ,पान -मसाले की पीक थूककर सिलीगुड़ी की सुंदरता में चार चाँद लगाना आरम्भ कर देते है। आश्चर्य तो ये देखकर होता है की   अधिकतर  पर्यटक शिक्षित होते है ,बड़े व्यवसायी  या अफसर होते है लेकिन वे स्वच्छता जैसी बातों को  महत्व क्यों नहीं देते ।  जहाँ तक गांवों की बात करे वहां के ज्यादातर लोग काम चलाऊ पढाई करते है किन्तु जिंदगी की बेसिक बातों को नजर अंदाज नहीं करते जिसमे खास कर अपने आस - पास की साफ -सफाई पर ध्यान देना।  वे लोग अपने घरों को तो स्वच्छ रखते ही है बल्कि घर के सामने की गली को भी झाड़ कर साफ कर देते है ताकि रास्ता स्वच्छ दिखे। जबसे शिक्षा का स्वरुप महज डिग्री पा कर किसी ऊँचें संस्थान में नौकरी पाना हो गया है तबसे जीवन की अहम बातें गौड़ हो गयी है। ऊपर से  नगरपालिका  या टाउन एरिया  ने सफाई की जबसे  जिम्मेदारी उठा ली  है तबसे  प्रत्येक व्यक्ति सफाई के लिए नगर निगम कर्मचारी के ऊपर निर्भर रहने लगा है लेकिन  मजे की बात ये है की उस कर्मचारी  द्वारा की गयी सफाई भी बहुतों को रास नहीं आती  जिसमे महिलाये भी  अपना पूरा सहयोग देती है मसलन सफाई कर्मचारी  बिल्डिंग के सामने जाकर सीटी बजाते है जिसका मतलब घर का कचरा  उन्हें सौप दिया जाये  परन्तु बहुत से ऐसे घर होते है जिनकी महिलाएं  सफाई कर्मी को कचरा नहीं देंगी किन्तु  उसके जाने के कुछ मिंटो में ही घर से निकाले गए कचरे का पैकेट सड़क पर आ टपकेगा।  इन सब बातों पर अगर हम गौर करे तो पाएंगे की जागरूकता होने के बावजूद भी  अधिकतर लोग सफाई को गंभीरता से नहीं लेते या लोगो में सफाई के प्रति  रुझान नहीं है।  हमारे बुजुर्गो ने  वृक्षों , नदियों , पहाड़ों को  किसी न किसी रूप में धर्म से जोड़ दिया था  ताकि उनकी अनदेखी न हो और न ही उनका  दुरूपयोग,  किन्तु पाश्चात्य संस्कृति में सराबोर लोगो को इसमें  अन्धविश्वास नजर आने लगा.   एक और हमारे प्रधान मंत्री  मोदी जी स्वच्छता अभियान चला कर पूरे भारत के स्वरुप को बदलने की कोशिश कर रहे है दूसरी ओर अनेक टीवी चैनल पान मसाले के विज्ञापन दिखा कर युवाओं को भ्रमित कर रहे है।  ऐसे विज्ञापन देख कर ये तो हर कोई समझ सकता है  की बिना सरकार की सहमति के कोई भी चैनल इस तरह के बिज्ञापन नहीं दिखा सकता इसका सीधा सा मतलब है की इनसे आने वाले राजस्व का लालच ही सरकार को  इन पर कठोर करवाई नहीं करने दे रहा है ठीक वैसे ही जैसे की दुकानदारों पर सख्ती कि वे  पॉलीथिन में सामान न दे लेकिन पॉलीथिन बनाने वाले कारखानों पर कोई सख्ती नहीं।  जनता के लिए सन्देश  गंगा साफ रखे किन्तु सीवर ,टेनरी  पर पूर्णतया रोक नहीं है।   इन सब बिंदुओं पर ध्यान दे तो ये   मानना  पड़ेगा कि मोदी जी का सपना भारत को स्वच्छ रखने का तब तक पूरा नहीं हो सकता है  जब तक की चैनलों द्वारा इस प्रकार के विज्ञापनों और पान मसाला, गुटका के  निर्माण करताओं  पर रोक नहीं लगेगी। 

Tuesday 28 April 2020

Shakun Trivedi : Mahakumbh ki yatra . 2013

Shakun Trivedi : Mahakumbh ki yatra .:   महाकुम्भ की यात्रा  हमें 'भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपूर' की तरफ से ५३ वें  सम्मान समारोह  2013  में हम लोगो को शामिल ह...

Shakun Trivedi : ठहरी हुई जिंदगी

Shakun Trivedi : ठहरी हुई जिंदगी: " ये लो चाय, हम जा रहे है।"   पतिदेव की प्रातः कालीन बेला  की मधुर  नींद एक झटके में ही खुल गई बोले - "  कहां जा ...

ठहरी हुई जिंदगी




"ये लो चाय, हम जा रहे है।"   पतिदेव की प्रातः कालीन बेला  की मधुर  नींद एक झटके में ही खुल गई बोले - "  कहां जा रही हो ?" हमने उत्तर दिया - " बाजार सब्जी लेने ....। " पागल हो गई हो !  मनु - गब्बू   (बेटे) को भेज दो वे ले आयेगे। हमने बात अनसुनी की और निकल गए। हम जानते है कि बेटों को जितना लिख कर देंगे वे उतना ही लायेगे जब की हम  बाजार में क्या - क्या है और क्या  हमारी जरूरत है उस हिसाब से लायेगे, बहुत बार जो हमे भी याद नहीं होता दुकान में देखकर याद आ जाता  है। दूसरी बात लॉक डाउन के दौरान  अपने ही घर में नजरबंद हम उस  पिंजरे के पंछी की मानिंद हो गए थे जो रोज सुबह - शाम  छत पर जा कर खुला आकाश देखता तो अवश्य था किन्तु उड़ नहीं पा रहा था। तीसरी  बात जो हम  जानना चाह रहे थे कि बाजार में लॉक डाउन का कितना असर है।     सेंट्रल एवेन्यू  चांदनी मेट्रो  वाला रास्ता लगभग सुनसान था। सफाईकर्मी रास्ते की सफाई करते हुए दिखाई दे रहे। बहू बाजार की तरफ आगे बढ़े तो फुटपाथ पर डेरा जमाए लोग दिखे सभी एक निश्चित दूरी बनाए, मास्क लगाए बात कर रहे थे यहां तक कि महिलाएं भी नियम का पालन कर रही थी।  रास्ते में जो भी स्त्री - पुरुष  दिख रहे थे।  वो अपने हाथों में घर की आवश्यकतानुसार वस्तुओं को लिए ही दिखे। सब्जी वाले इक्का - दुक्का ही मास्क लगाए दिखे।   एक सब्जी वाले से हमने सब्जी लेनी शुरू  की, देखा उसकी पत्नी सब्जी देने में मदद कर रही थी।  हमने उससे पूछा कि   -  तुम लोग मास्क नहीं लगाए हो तुम्हे कोरो ना से डर नहीं लगता? वो इससे पहले जवाब देती तभी थोड़ी दूर पर खड़ी महिला बोल पड़ी, " ऊपर वाले पर हमको  भरोसा है, कब तक डर कर हम लोग  जियेगे ।  सब्जी वाली ने भी मधुर मुस्कान के साथ उस महिला की बात का समर्थन किया । बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए हमने पूछा, - कितने बजे सब्जी    लेंने जाती हो, उसने जवाब दिया तीन बजे रात में हम लोग सियालदाह जाते है सब्जी लाने के लिए। हमने आश्चर्यमिश्रित स्वर में दुबारा प्रश्न किया इतनी जल्दी क्यों ? इस पर उसने बताया बहुत भींड होती है इसलिए। मेरा अब अगला प्रश्न था - यहां बाजार  में कितने बजे तक रहती हो ? उसका जवाब था साढ़े बारह बजे तक। ये सुनकर हमें विस्मय हुआ क्योंकि बाजार सबेरे 6 बजे से नौ बजे तक ही खुले रहने की घोषणा हुई है।  अभी हम उससे उसके  घर - परिवार  के बारे में बात कर ही रहे थे  कि तभी बड़े सुपुत्र ने  आकर सब्जी का बैग उठा लिया और बोला - " मम्मी आपको इस तरह बाजार नहीं आना चाहिए था ।"   उसकी इस चिंता पर हमने सवाल किया क्यों ? तुमको सुबह - सुबह तुम्हारे पापा ने दौड़ा दिया न। हमने चोकोस खरीदते हुए कहा अगर हम नहीं आते तो ये तुम्हारे लिए कौन खरीदता, घर में कपूर खत्म हो गया था उसकी तो हमें याद ही नहीं थी और तो और कड़ुआ नीम तुम्हे कभी मिलता ही नहीं था।"  बड़े दिनों के बाद आज   हमें  बाजार में  फूल दिखाई दिए जबकि नवरात्रि में भी कहीं फूल नहीं दिख रहे थे।   अगर हम नहीं आते तो तुम बताते ही नहीं कि फूल मिल रहे है, हमने शिकायती लहजे में उससे कहा। किराने की दुकान पर जवान - वृद्ध पंक्तियों में खड़े थे। सभी की जुबान पर कोरो ना पुराण ही था। एक युवक दूसरे से कह रहा था घर की जरूरतों के लिए तो निकलना ही पड़ेगा, डर कर  कब तक घर में बैठे रहेंगे। इस पर दूसरे ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहां " एक दिन तो सबको ही मरना है अगर कोरो ना से मरना लिखा है तो उसी से मरेंगे। पंक्ति में खड़े एक महाशय ने राय दी कि धरती पर बहुत बोझ हो गया कुछ हल्की हो जाएगी। उन सब की बातें सुनकर अच्छा लगा क्योंकि सभी सकारात्मक ही सोच रहे थे एवम् मौत की क्रूरता जिंदगी की गंभीरता पर अश्रु नहीं बहा रहे थे।  हमने अपनी इच्छानुसार समस्त जरूरत वाली वस्तुओं को लिया और आराम से बेटे की बाइक पर बैठकर घर आ गए।  मन बहुत खुश था क्योंकि जो जिंदगी ठहरी हुई प्रतीत हो रही थी वो बाहर निकलने  से  एक उछाह भर रही थी । और जो दुनियां  कोरो ना वायरस के चलते  डरी हुई, थमी हुई नजर आ रही थी उसमे अभी भी जीवंतता दिख रही थी । परन्तु कोरो ना अपने रौद्र रूप में  हम सबको  इस क़दर भयभीत किए हुए है जिसकी वजह से स्वाभाविक जिंदगी से दूर  हम सभी अपनी अपनी सांसों को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे है। हां एक बात और बीच बीच में मोदी जी द्वारा दिए हुए टास्क बोझिलता को दूर करने में काफी मदद गार साबित हो रहे है। 

Shakun Trivedi : कुफरी नहीं देखा तो क्या देखा

Shakun Trivedi : कुफरी नहीं देखा तो क्या देखा: " अरे यार  कुछ हो गया तो लगन भी नहीं होगी।" डर के आगे जीत है, एक ने कहा तो दूसरे ने तुरंत जवाब दिया,  "हमने माउंटेन ...

कुफरी नहीं देखा तो क्या देखा




" अरे यार  कुछ हो गया तो लगन भी नहीं होगी।"
डर के आगे जीत है, एक ने कहा तो दूसरे ने तुरंत जवाब दिया,  "हमने माउंटेन डेउ  नहीं  पिया फेंटा पिया है।"
फोटो, फोटो, फोटो खींच। इस तरह की बातों के बीच बहुत से युवा ज़िप लाईन की  रोमांचक यात्रा के लिए तैयार हो रहे थे। हमारी टीम, बेटे, दामाद, बहू और पतिदेव भी वर्दी पेटी से लैस होकर एक नए किन्तु खतरनाक अनुभव की ओर बढ़ रहे थे। और इस  अनुभव  के लिए  350 रुपए  प्रति शुल्क था।  दूसरी अहम बात कि इस तरह के खेल खिलाने वाले लाइसेंसी भी नहीं होते अतः खतरा ज्यादा होता है। हमने  अपने पतिदेव से कहां की तुम्हारा वजन ज्यादा है तुम मत जाओ इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि " ऊपर एक दिन सभी को जाना है, फिर डरना क्यों?" सब एक के बाद एक जा रहे थे और रोमांचित हो रहे थे। उनकी बहादुरी और  रोमांच को  स्थायित्व देने के लिए हमने सबकी फोटो को कैमरे में कैद कर लिया।
मेरे साथ मेरी बेटी का बच्चा था और उसे गोकार्ट का आनंद उठाना था, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए  आनन  - फानन में टिकिट  500 रुपए प्रति  में 7 चक्कर की ली गई और सब अपनी - अपनी गाड़ियों में बैठ गए। एक गाड़ी में बेटी और बहू बैठी जिन्हे गाड़ी चलाने का कोई अनुभव नहीं था ऊपर से हाइट कम ब्रेक, एक्सीलेटर तक पैर भी मुश्किल से पहुंच रहे थे। उन्होंने अपनी गाड़ी स्टार्ट की  लेकिन वो  कुछ कदम पर जाकर रुक गई परन्तु वहां तैनात लोगो में से एक ने जाकर उन्हें गाड़ी चलाने के कुछ टिप्स दिए इसके बाद दोनों ने अनुभवी चालक की तरह बिना रुके इस खेल का भरपूर आनंद उठाया।
फन वर्ल्ड का अपना ही मजा है 

शिमला पहुंचने के पहले ही हमारे बड़े बेटे ने घोषणा कर दी " ममी कुफरी बहुत सुंदर पर्यटक स्थल है, अगर उसे नहीं देखा तो शिमला आना व्यर्थ।" जबसे गूगल गुरु ने ज्ञान बाटना आरंभ किया है तब से ये बड़ी आम बात हो गई है कि आप अपनी जरूरत के मुताबिक होमवर्क कर के तैयार हो जाते है। 
दूसरे दिन,  दिन के दो बजे  ( 2 पी एम्) हम  लोग कुफरी के लिए रवाना हुए । कुफरी शिमला से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर है चूंकि पहाड़ी रास्ता है अतः 40 से 50 मिनट में पहुंच जाते है। मेरी नजर में  पहाड़ी जगह लगभग एक सामान ही  होती है, अंतर होता है तो सिर्फ ऊंचाई का और गहरी खाइयों का। कुफरी की ऊंचाई  समुद्र तल से लगभग 9  हजार फीट है,   इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर रोमांच होना स्वाभाविक है, लेकिन खूबसूरती के नाम पर  वहां हमे सिवाय जंगल और ऊबड़ - खाबड़ रास्ते के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। पर्यटकों की जरूरत अनुसार मैगी, चिप्स  बिस्किट, चाय, काफी की दुकानें दिख रही थी। कुफरी पहुंचते ही घोड़े वालों ने घेर लिया। पूछने पर कि ऊपर में क्या है तो  उन्होंने  बताया कि ऊपर महसू नाग का प्राचीन मंदिर है, एडवेंचर है और फन वर्ल्ड है। मन तो नहीं हो रहा था जाने का लेकिन फिर सोचा कि अब दुबारा इस जगह नहीं आएंगे तो क्यों न देख लिया जाए बस इसी  सोच के साथ 8 घोड़े , आने - जाने का मिलाकर 500 रुपए प्रति के हिसाब से तय कर लिए गए। घोड़ों पर बैठ कर हम लोगो का काफिला ठंड से सिकुड़ता हुआ गंतव्य की ओर बढ़ चला। रास्ता कच्चा - संकरा, पथरीला  बहु त  ही खराब था जो हमे अमरनाथ यात्रा की याद दिला रहा था। हमने घोड़े वाले से पूछा कि कितने किलोमीटर जाना है जिसका उसने जवाब दिया 3 किलोमीटर जाना और तीन किलोमीटर आना। अगर आप एडवेंचर स्पॉट तक जाना चाहते है तो लगभग डेढ़ किलोमीटर और चलना होगा और वहां घोड़ा नहीं जाता है। ऊपर पहुंचने से पहले ही एक व्यक्ति 20 रुपए प्रति प्रवेश शुल्क  ले रहा था। 
ऊपर पहुंच कर घोड़े वालों ने हमें तय जगह पर उतार दिया और कहा कि आप लोग घूम कर आइए हम यहीं इंतजार करेंगे। घोड़े वाले को भूल न जाए इस लिए उससे घोड़े का नंबर ले लिया और चढ़ाई चढ़ना आरंभ किया। रास्ते में कुछ लोग याक को सजा - सवार कर खड़े थे पर्यटकों का उनके साथ फोटो सेशन करवाने के लिए ।  वो भी इस शर्त के साथ की फोटो आप अपने मोबाइल से लेंगे। जो लोग इच्छुक थे उन्होंने 50 रुपए प्रति पर याक के साथ फोटो खिचवाई। कुछ दूरी पर एक साधारण से टेबल पर पानी की खाली बोतले रखी थी और साथ ही राइफल लिए एक आदमी जो 20 रुपए में 6 गोली दे रहा था निशाना लगाने के लिए.


 जिनपर आने - जाने वाले लोग निशाना साध कर स्वयं का मनोरंजन कर रहे थे। बहुत से स्टाल पर ऊनी कपड़े बिक रहे थे। कुछ स्टालों पर चाय ,काफी , मैगी इत्यादि उपलब्ध थी।  अस्थाई शौचालय भी  10 रुपए की सेवा पर मौजूद थे। हम सभी चढ़ाई चढ़ कर थक चुके थे अतः निर्णय लिया कि बैठ कर काफ़ी पिए और सुस्ताएं। वहां देखने लायक कुछ भी नहीं था। मन ही मन कुफरी आने की योजना पर स्वयं को कोस रहे थे। तभी एक आदमी आकर बोला कि आपको एडवेंचर साईट पर  गाड़ी से ले चलेंगे, 200 रुपए मात्र प्रति व्यक्ति का लगेगा।  वहां फन वर्ल्ड है जिसमें अनेक प्रकार के गेम है परन्तु गो कार्ट सबसे पसंदीदा गेम है। एप्पल का बाग है, महसु नाग का प्राचीन मंदिर है आदि। फिर वही ख्याल मन में आया कि दुबारा तो आना नहीं है चलो 16 सौ ( 1600) रुपए का खून कर लिया जाए। 
  घूमते - घामते पांच बज गया अधिकतर पर्यटक वापस जा चुके थे स्टाल वाले तेजी से दुकान समेट रहे थे।  हम लोग अभी भी घोड़े स्टैंड से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर थे और वहां तक पहुंचने के पहले काफी दूर तक चढ़ाई  चढ़नी थी। घने जंगल को देखकर जंगली जानवरों  से मुलाकात का डर मन में समाने लगा। तेज कदमों से चलते हुए हम लोग घोड़ों के पास पहुंच गए  लेकिन  वहां  पर सात ही घोड़े थे मेरा घोड़ा किसी पर्यटक को छोड़ने गया था अतः वो नदारद था। अब हमारे पास उस जंगल में कुछ समय इंतजार करने के अलावा और कोई चारा न था। तभी कुछ दूरी पर खाई की तरफ हिरण दिखाई दिया जिसे देखकर  हमने  एक घोड़े वाले से जिसका नाम अनिल शर्मा था पूछा कि क्या यहां  शेर ,भालू  आदि जानवर रहते है? उसने जवाब दिया शेर मिलेंगे लेकिन भालू नहीं।  अच्छा ये बताओ ऊपर कोई नहीं रहता है? उसने उत्तर दिया कि इस जगह पर कोई नहीं रहता लेकिन जहां पर एडवेंचर स्थल है उसके काफी आगे एक छोटा सा गांव है जिसमें लगभग 50 लोग रहते हैं। बातों के दौरान ही मेरा घोड़ा आ गया था उस पर सवार होने के बावजूद भी अपने सवालों का क्रम हमने बंद नहीं किया और अगला प्रश्न " वो लोग काम क्या करते है?"  उसने जवाब दिया कि कुछ लोग खेती करते है तो कुछ लोग घोड़ा चलाते है। रास्ते में हमने देखा कि कुछ नौजवान 6 - 7 घोड़ों को हाकते हुए ऊपर की ओर ले जा रहे थे लेकिन वे घोड़ों पर सवार नहीं थे। इस पर हमने उत्सुकता वश पूछा कि ये पैदल क्यों चल रहे है, अपने घर घोड़े पर बैठकर जा सकते है। इस पर अनिल  ( घोड़े वाले ) ने जवाब दिया कि दिन भर घोड़ा ऊपर नीचे करता है, वो थक जाता है इसलिए ये लोग नहीं बैठते। मेरा अगला सवाल था कि इन घोड़ों  के रख रखाव पर खर्चा कितना आता है। इस पर जवाब मिला 300 रुपए एक दिन का खर्चा इनके खाने का  है। घर पहुंच कर इनकी मालिश होगी।" 

   कितनी बार एक दिन में पर्यटकों को ऊपर ले जाते है ?"  उसने जवाब दिया कि कमसे कम 2 बार अगर सीजन हुआ तो चार चक्कर लग जाते है। ये सुनकर हमने आश्चर्य से पूछा -  थकते  नहीं आप लोग?  ये सुनकर वो हँसने  लगा और बोला पहाड़ पर 7 - 8 किलोमीटर कोई चढ़ाई होती है। हम रोज तीन घंटे अपने घर से यहां तक आने और जाने में लगाते है 35 किलोमीटर दैनिक चलते है।  फिर मेरी तरफ उन्मुख हो कर बोला " मैडम जी, आप यहां दो - तीन महीने रुक जाओ फिर देखना आप खुद को नहीं पहचान पाएगी।" हमने मन ही मन सोचा इन पहाड़ों में मेरा मन तो लगने से रहा, हमारे लिए तो मैदान ही अच्छे है जहां मानव द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार के आकर्षक स्थल  नीरसता से दूर बच्चे -बुजुर्ग का सभी का मन लुभाने के लिए पर्याप्त है।





जिप लाइन की सवारी 

जिप लाइन
 मनोरंजन के साथ -साथ खतरनाक 


जिप  लाइन
एक रोमांचक यात्रा के लिए तैयार 

 कुफरी का बाजार 





कुफरी की वादियों को
 गाड़ी में बैठकर निहारती भोली 


Thursday 23 April 2020

Mahakumbh ki yatra .

 महाकुम्भ की यात्रा 
हमें 'भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपूर' की तरफ से ५३ वें  सम्मान समारोह  2013  में हम लोगो को शामिल होने का निमंत्रण मिला ये समारोह 23 -24 को होना था । हमारे श्रीमान मनोज त्रिवेदी के जहन  में आया क्यों न हम अपनी माँ को महाकुम्भ स्नान करवा दे वैसे भी २५ फरवरी को  माघी पूर्णिमा होने के कारण बड़ा स्नान था इस अवसर पर भी अनुमान था की एक करोड़ से ज्यादा की भीड़ होगी । जितने शुभचिंतक थे सब एक ही सलाह दे रहे थे की इस अवसर पर संगम में नहाना असंभव ही है । क्योंकि सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए टेम्पो,ऑटो ,गाड़िया लगभग सभी वाहनों को दस किलोमीटर की परिधि से बाहर रखा जा रहा था । ये सुनकर हमारा भी मन तैयार नहीं था जाने को । २३ तारीख को जमकर बारिश हो गयी । रात भर पानी बरसता रहा । ये देखकर हमारी सासू माँ ने हाथ खड़े कर दिए । बोली की हम नहीं जायेंगे । अभी तक कुम्भ नहीं नहाया तो क्या आवश्यकता है की हम महाकुम्भ स्नान के लिए भयंकर भीड़ में जाये और परेशान हो । हम यही ठीक है । उन्हें हमने समझाते हुए कहा की आप चिंता मत करिए उपरवाला जो चाहेगा वो होगा । अगर जाना होगा तो वैसी सुविधाएँ मिल जाएगी और आप संगम स्नान कर के आ जाएगी । हमने अपने दिमाग से संगम स्नान का ख्याल ही निकाल दिया और दूसरे दिन सम्मान समारोह में शामिल  होने के लिए चले गए  सुबह से ही सूरज चमक रहा था । बादल -पानी का कही नामोनिशान नहीं था  । तय हुआ की हम लोग तीन बजे तक कानपूर छोड़ देंगे । लेकिन सम्मान समारोह में ही पाँच बज गया । कानपूर तो वैसे ही  कचरापुर  है जगह- जगह कूड़ा -करकट वहा की शान है जिसमे इजाफा करते है चरते हुए सूअर । ऊपर से रात की बारिश ने सडको को बदबू से भर दिया था । इन सबसे बचने के लिए गाड़ी वहाँ  के लिए सर्वोतम है क्योकि कानपूर में आवागमन के लिए ऑटो या टेम्पो ही ज्यादा चलते है जो की हर समय भरे रहते है  । इस लिए  सुबह से ही इनोवा गाड़ी भाड़े पर ले ली थी। सम्मान समारोह के दौरान विधानसभा के  पूर्व  अध्यक्ष  केशरीनाथ जी त्रिपाठी का आगमन हुआ था साहित्यकारों को सम्मानित करने के लिए ।  बातचीत के दौरान कुम्भ जाने की बात बताई तो उन्होंने सबसे पहला सवाल किया "कहा ठहरेंगी "? हमारे जवाब देने पर की होटल लें लेगे । इसपर  उन्होंने कहा की इस समय आपको होटल कहा मिलेगा। उन के इस सवाल पर हम लोग सकते में आ गये।   हम लोगो को असमंजस की स्थिति में देख कर  पूछा कि -" आप लोग कितने लोग है ?"  हमने जवाब दिया कि  सात  (७) लोग।  इस पर आपने जवाब दिया की  अलाहाबाद के लिए निकलने से पहले एक बार हमे फोन कीजियेगा, हम आप लोगो के रुकने की व्यवस्था करते है।  हम लोगो ने निकलने से पहले उन्हें फोन लगाया तो त्रिपाठी जी ने बताया कि  आपके ठहरने की व्यवस्था सिविल लायंस के एक होटल "स्टार रिजेंसी " में  हो गयी है  ।  ये  सुनकर हम लोग खुश हो गए ।   अब यात्रा का मजा दुगुना हो गया क्योकि अब हम लोगों को होटल खोजने की जेहमत नहीं उठानी थी । लेकिन  महाकुम्भ स्नान अभी भी एक युद्ध से कम नहीं  था । होटल में पहुच कर सबने सुबह छह बजे निकलने की योजना बनायीं लेकिन रात्रि में देर तक जगे रहने के कारण सोकर उठे सुबह के आठ बजे ।  



चाय पीकर हम लोग संगम के लिए निकल गए 

जगह -जगह पुलिस वाले वर्दी-पेटी से लेस लोगो को अपना डंडा दिखा रहे थे । ग्रामीण लोग अपने बच्चों और सामान के संग दस किलोमीटर चल कर गंगा स्नान करने जा रहे थे 
बोट क्लब के पास 
   बाकि घाटों की अपेक्षा कम भीड़ थी    

कम भीड़ के कारण नाव पकड़ने में सुविधा थी 
  बोट क्लब 
पक्षियों का भी महाकुम्भ स्नान


अलाहाबाद का किला
सुनते है की इस किले के नीचे से सरस्वती नदी निकली है 

पवित्र स्नान कर उड़ते पक्षी 


तट पर  भारी भीड़
 भीड़ के साथ ही पक्षी भी स्नान का आनंद उठाते हुए 



आस्था और श्रद्धा  का संगम महाकुम्भ स्नान 



बोतल के हवाले गंगा जल 

 पवित्र डुबकी 

 श्रधालुओ की श्रद्धा को बोतल में बंद  कर
 बोतलों को  नाव में  रखकर बेचता नाविक 





आस्था का अर्पण 
शहर का कचरा गंगा के हवाले .
आस्था के ऊपर प्रहार 

ऊपर वाले की कृपा से हम लोगो को किसी भी प्रकार का कष्ट कुम्भ स्नान में नहीं उठाना पड़ा और हम सभी सकुशल स्नान कर मधुर यादों को समेटे अपने गंतव्य पर वापिस लौट गए। 

INTERESTING JOURNEY BY LOCAL TRAIN.

लोकल ट्रेन यात्रा 


रानाघाट में बंगलादेश और कृष्णानगर बंगाल XI फुटबाल मैच का आयोजन था ,जिस संस्था ने ये आयोजन किया था उसने 'द वेक ' 

 हिंदी मैगजीन की टीम को भी आमंत्रित किया था. रानाघाट की कोलकाता से दुरी लगभग ९०              ( 90 km.)किलोमीटर है ,अब सवाल ये था की इतनी दूर बाई कार जाये या बाई ट्रेन .अगर कार से जाते है तो जाम में अटकने का डर है ,(कोलकाता में जाम कुछ ज्यादा ही लगता है.) ऊपर से रास्ता भी कुछ खास अच्छा नहीं सबकुल मिला कर  पाँच या छः घंटे की यात्रा | जो  आनंददाई  कम उबाऊ ज्यादा होगी . और इसका नतीजा ये होगा की हम लोग जब वहा पहुचेंगे तो खुद ही अपने को थकान के कारण पहचान नहीं पाएंगे .अतः  हमारी टीम ने तय किया की हम लोग अगर ट्रेन से जायेगे तो लगभग पौने दो घंटे में रानाघाट पहुँच जायेंगे .और ट्रेन की यात्रा में थकावट भी कम आयेगी .बस अबक्या था हम लोग समय से सियालदह स्टेशन पहुँच गए .९.५० (9.50. A.M)मिनट पर ट्रेन  थी .स्टेशन पहुँच कर सबसे पहले टिकिट ली जिसका दाम  पंद्रह रूपये प्रति व्यक्ति  था .ये हमारे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात थी की  कम खर्चे में हम बारह लोग रानाघाट पहुँच जायेंगे . ट्रेन आने का समय हो चूका था लेकिन वो किस प्लेटफार्म पर आएगी ये पता नहीं था क्योकि इसके पहले हम लोग कभी लोकल ट्रेन से कही नहीं गए थे इस लिए ये हमारी पहली यात्रा थी. लेकिन 'द वेक' के समाचार संपादक को थोड़ी जानकारी थी इसलिए वो टीम लीडर बन कर हम लोगो को गाइड करने लग गए .तभी 'द वेक' के ज्योतिषाचार्य बोले इस प्लेटफार्म पर रानाघाट वाली ट्रेन नहीं आती है वो दुसरे नंबर के प्लेटफार्म पर आती है. हम सभी मूक दर्शक और वो दोनों अपनी - अपनी बात पर अड़े हुए थे .ये देखकर हम लोग  जो उनकी बक -बक सुन रहे थे , उनको बीच में रोकते हुए बोले की भाई किसी सही इन्सान से पूछ लो ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएगी ,कही ऐसा न हो की ट्रेन निकल जाये और हम लोग यहाँ यही निश्चित करते रहे की वो कब और किस प्लेटफार्म पर आएगी.
File:KolkataLocalTrain.JPG
 KOLKATA 'S  LOCAL TRAIN
  CARRIES THOUSANDS OF PASSENGERS  DAILY .
 ट्रेन कोलकाता स्टेशन पर काफी खाली हो जाती है | हम लोग जल्दी से जो डिब्बा सामने पड़ा उसमे चढ़ गए ये सोचकर की इसमें सीट काफी खाली है ,सब एकजगाह बैठ जायेंगे .लेकिन हमारे साथ जो 'डी वेक ' के समाचार संपादक थे उन्होंने कहा की ये डिब्बा सही नहीं है क्योकि इसके पीछे  इलेक्टिकल बाक्स है ,कभी भी आग लगने का खतरा हो सकता है. ये सुनकर हम लोग किसी अच्छे बच्चे की तरह दुसरे डिब्बे में बैठ गए .अब बारी थी हंसी ,ठहाको की ,जो कोलकाता में काम के दौरान कम ही होता है. वहा काम का इतना बोझा होता है की उसके आलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता ऊपर से इतने लोग एक साथ बैठते भी नहीं ,बस फिर क्या था ढूंढ़  ली गई  उस ग्रुप की कमजोर कड़ी .
समिरदास सीधे सादे इन्सान बाबु मोशाय,हिंदी कम समझते है इसलिए  उन्हें   समझ में ही नहीं आता की सामने जो बात कर रहा है वो उनके सम्बन्ध में या किसी और के बारे में कह रहा है.वैसे भी वो बड़े लोगो के संग कम, कम उम्र के बच्चो के साथ ज्यादा बैठते   
NEWS EDITOR RAJESH MISHRA DANCING  

ट्रेन में भजन करके रोजगार करने वाले  
,
MANAGING EDITOR OF 'THE WAKE'
 RECEIVING GREETING  FROM THE  local bhajan singer 

.