Tuesday 15 November 2011

A journey towards Black Hole .

दो हजार फीट जमीं के नीचे,
केंद्रीय कोयला मंत्री श्री  श्रीप्रकाश  जायसवाल 
मानस संगम (कानपुर, उत्तर प्रदेश ) के कार्यक्रम में जाना था, जाने से पहले ही उक्त  कार्यक्रम  के  संस्थापक श्री बद्रीनारायण जी  से बात हो गयी थी  की वो हमें  'डी वेक' हिंदी पत्रिका में छापने के लिए केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री श्रीप्रकाश जयसवाल जी  के साथ भेटवार्ता करवायेगे.उन्होंने पूरा सहयोग देते हुए उनसे हमारे लिए समय भी ले लिया.मंत्री जी का साक्षात्कार  भी हो गया, जितने सवाल मन में थे सारे के सारे पूछ लिए लेकिन अब प्रश्न था कोयले के बारे में सही जानकारी.  जो एक मुश्किल कार्य था. क्योकि उसके लिए हमें कोयला अंचल में जाकर सारी मालुमात करनी थी जो बिलकुल भी आसान  नहीं था.हमने इसके लिए आसनसोल स्थित आजतक के  संवाददाता पवन यादव से बात की .उसने हम लोगो को पूरा सहयोग करते हुए आने के लिए कहा . इसके बाद हमने अपने समाचार संपादक राजेश मिश्र से कहा की तुम्हे कल आसनसोल चलना है . अब बारी थी अपने पतिदेव मनोज त्रिवेदी को बताने की  हमने  उनसे  कहा की तुम कल चल रहे हो . जैसी की उम्मीद थी उन्होंने तुरंत जवाब दिया 'बिलकुल नहीं और तुम भी नहीं जाओगी |वो माफियाओ का क्षेत्र है तुम वहा कैसे जानकारी हासिल कर सकती हो .नेट से खबर  इकट्ठी कर लो या फिर यहाँ के कोल ऑफिस में चली जाओ |" ये वो भी जानते है और हम भी की हम जब एक बार  निश्चय  कर लेते है तो फिर पैर वापस नहीं खीचते | उन्होंने जब देखा की हम ने उनकी बात को अनसुना कर दिया है तो अपने खास दोस्त से बोले की तुम इन्हें समझाओ .उन्होंने भी अच्छे मित्र का धर्म निभाते हुए कहा " की आप वहा जाकर क्या करेगी मैंने बहुत दिनों तक कोल फील्ड  में काम किया है मै आपको  सारी  जानकारी दे दूंगा | हमने उनसे प्रश्न किया की आप कब काम करते थे ,इसपर उन्होंने पंद्रह साल पहले का हवाला दिया |जब मनोज जी ने देखा की हम अभी भी अपने निश्चय पर कायम है तो उन्होंने राजेश मिश्र को  डाटते हुए हमारे साथ न जाने को कहा .उन्होंने सोचा की जब हमारे साथ कोई नहीं जायेगा तो हम अपने आप जाने का इरादा बदल देंगे .जब राजेश ने हमें फोन कर बताया की वों साथ में नहीं आ रहा है तब हमने अपने बेटे से कहा की तुम चल रहे हो साथ या हम अकेले ही जाये क्योकि अब हम रुकने वाले है नहीं.

'THE WAKE' S NEWS EDITOR
RAJESH MISHRA, CHIEF EDITOR SHAKUN TRIVEDI & SHUBHRANSHU 
मेरी द्रढ़ता को देखते हुए वो तैयार हो गया.सुबह जब हम तैयार हो गए तो राजेश का फोन आया की उसे क्या करना चाहिए ,साथ चले या नहीं .हमने  ये  कह कर "तुम्हारी जैसी इच्छा"  बात ख़त्म कर दी| निकलते समय हमने मनोज जी को जगा कर बताया भी नहीं की हम जा रहे है क्योकि हम जानते थे की सुबह - सुबह हमें जाते देख कर उनका दिन ख़राब हो जायेगा और उनका बिगड़ा मिजाज देख कर हमारा |  गेट से बाहर  निकल कर हम जैसे ही टेक्सी में बैठने के लिए आगे बढे  राजेश साथ में आ गया .इस तरह हम  तीनो आसनसोल के लिए निकल पड़े .ब्लेक  डायमंड साढ़े चार घंटे का समय लेती है कोलकाता से कुल्टी  पहुचाने   में |  साढ़े दस के लगभग हम लोग कुल्टी में थे |स्टेशन पर पवन हम लोगो को लेने आया था | गाड़ी में बिठालने के बाद उसने हमलोगों को कुल्टी एवं   कोयला अंचल और उनके कारोबारियों के बारे में बताना आरम्भ कर दिया  | इसके बाद  वो हम लोगो को  अपने घर  ले गया  वहा चाय नाश्ता करा के कुल्टी के कोयला स्थलों को दिखाना आरंभ    किया  .वो  एक के बाद एक कुछ नया बताता जा रहा था और हम चुपचाप सुन रहे थे लेकिन संतुष्टि नहीं थी . शायद उसने ये भांप लिया था इसलिए वो हमें सीधे भारत की सबसे गहरी कोयला खदान व् संसार में दुसरे पायदान पर विराजमान चिनाकुड़ी कोयला खदान के मैनेजर से मिलवाने ले गया.इस बीच उसका दोस्त व् आसनसोल दैनिक जागरण का संवाददाता रविशंकर चौबे भी हम लोगो के साथ आ गए  |चिनाकुड़ी के मैनेजर ,डिप्टी मैनेजर एस .ऍन सिंह, इंजीनयर सुरजीत बोस ने हम लोगो  को जो जानकारी दी उसने हमें अभिभूत कर दिया|  उनकी बाते सुनकर हमें बड़ा अचरज हो रहा था की कैसे कोई खदान इतनी गहरी हो सकती है |ये ख्याल भी हमें प्रफुल्लित कर रहा था की भारत की सबसे गहरी खदान व् दुनियां की दूसरी गहरी खदान ( चीन की कोयला खदान दुनियां की सबसे गहरी खदान है.) के प्रशासनिक अधिकारीयों के  सामने हम बैठ कर बात कर रहे है  लेकिन उनकी जिस बात ने हमें सबसे ज्यादा अचरज में डाल दिया था वो थी दामोदर नदी | उन लोगो के अनुसार चिनाकुड़ी  खदान  दामोदर नदी के नीचे है| जब खदान के अन्दर जायेगे तो वहा एक ऐसी जगह है जहा आपको लिखा मिलेगा की इस जगह के ऊपर दामोदर नदी बहती है. इंजिनियर सुरजीत बोस दीवार के ऊपर टंगे नक़्शे पर स्केल लेकर हम लोगो को बता रहे थे और हम लोग बुत बने आंखे चौड़ी कर अविश्वास के साथ देख रहे थे | मैनेजर  साहब को हम लोगो की मनोस्थिति का पता चल गया .उन्होंने हम लोगो से कहा की आप खदान के नीचे  चलकर स्वयं देख लीजिये | हम लोग आनन -फानन में तैयार हो गए .उनके सहयोगी ने हम लोगो को सफ़ेद कोट पहना दिया ,जिसे पहन कर हम सब  डाक्टरों  की टीम लग रहे थे जो किसी आपरेशन के लिए तैयार खड़ी थी .हमने मेनेजर जी से पूछा की ये सफ़ेद कोट क्यों पहना जाता है.इस पर मैनेजर जी ने जवाब दिया ,"अँधेरे में नजर आने के लिए "|मन में ढेरो उत्सुकता समाये हम लोग खदान की तरफ बढ़ रहे थे .सुरजीत बोस जी बराबर हम सबको मशीनों के बारे में  समझा  रहे थे| किन्तु हम सब अपनी आदत से लाचार फोटो खीचने में ज्यादा मगन थे |इसका कारण ,एक अनजानी  दुनियां से सामना जो हम लोगो के लिए एकदम अनोखी और  रहस्योभरी  थी | हम जानते थे की हो सकता है ये हमारे लिए पहली और आखरी यात्रा बन जाये.अतः हम किसी भी अवसर और कोने को अछूता नहीं छोड़ना चाहते थे .

चिनाकुड़ी खदान की लिफ्ट के सामने 
लिफ्ट के अन्दर जाने से पहले .
जब चित्र खीचने की प्रक्रिया ख़त्म हो गयी तो हम लोग लिफ्ट की तरफ बढे .अब बारी थी  अपनी योजना को अंजाम देने की  | यानि की दो हजार फीट नीचे जाने की | नीचे जाने से पहले  मोबाईल ,शाल ,बैग ,कैमरा सब ले लिया गया था | बैटरी वाली बैल्ट के साथ हम लोगो को  टॉर्च वाला हेलमेट पहना दिया गया .ये देखकर हमें अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कालापत्थर 'याद आ गयी | सच भी यही था की उस फिल्म के आलावा हमारे पास कोयले खदान का कोई अनुभव था ही नहीं |  इसीलिए जब  हमसे पूछा  गया की आप खदान में जाएगी  तब  एक सेकेण्ड के लिए मन में विचार आया की उस अँधेरे कुए में जाना क्या उचित होगा.किन्तु अगले ही पल मन में आया की सैकड़ो  मजदूर खदान के अन्दर काम करते है ,मैनेजर ,इंजीनियर सभी तो इसके अन्दर जाते है फिर हम क्यों नहीं जा सकते.बस इसी विचार ने हमें आगे जाने के लिए प्रेरित किया .  अब हम लोग अपने आधुनिक हथियारों( कैमरे,मोबाईल) से  दूर ब्लैक होल की तरफ अग्रसर हो रहे थे | लिफ्ट को देखकर ही संदेह  होने लगा  की ये हम लोगो का भार उठाने में सक्षम होगी भी या नहीं .पुराने ज़माने की लोहे की लिफ्ट जिसके  दोनों  सिरे जंजीर से बंधे हुए थे .ऊपर पकड़ने के लिए एक राड़  थी| सबकुल मिला कर हम आठ लोग थे .लिफ्ट में भी आठ लोगो के ही जाने की स्वीकृति थी. चूँकि हम लोग आपस में बात कर रहे थे इसलिए गहराई का अंदाजा  भी पता नहीं चल रहा था |  तभी  ट्राली चालक ने फोन द्वारा नीचे  के आपरेटर से संपर्क किया ,संपर्क के साथ ही दो बार घंटी टन -टन की आवाज के साथ बजी जिसका मतलब सिग्नल ओके. है. आपरेटर ने जोर से कहा सावधान ,सावधान की आवाज के साथ ही  खटाक  की आवाज हुयी और ट्राली नीचे की ओर चल दी .जैसे ही ट्राली नीचे की ओर तेजी से चली ,मन आशंकित हो उठा ,क्योकि अब हम लोग बाहर की दुनियां से कट चुके थे और एक अनजानी दुनियां की तरफ अग्रसर हो रहे थे .चारो तरफ काली -काली  दीवारे उन पर  रिसता हुआ  पानी , ठंडक  हमे महसूस करा रहे थे की हम लोग पाताल लोक की  दमघोटू यात्रा पर निकल चुके है.|मन एक अनजाने भय से ग्रसित होने लगा ,किन्तु इससे पहले हमारे दिमाग में कुछ नए डरावने विचार आते दो सेकेण्ड के अन्दर हम लोग दो हजार फीट नीचे उतर चुके थे | वहाँ हम लोगो की प्रतीक्षा में रत कर्मचारी ने आकर हमलोगों को पहले सावधान किया फिर उस  ट्राली से बाहर  निकाला .उस जगह हलकी पीली  रौशनी थी | उसी रौशनी में हम लोग आगे बढे ,कुछ कदम आगे जाकर हमें एक छोटी सी ट्राली मिली | उस कर्मचारी ने हमलोगों को ट्राली में बैठा दिया तथा साथ ही निर्देश दिया की आप लोग अपने शरीर  का कोई भी हिस्सा ट्राली से बाहर न निकाले अन्यथा दुर्घटना हो सकती है | मैनेजर ,व् इंजिनीयर दोनों ही हम लोगो को उस अँधेरी गुफा के बारे में समझाते जा रहे थे .उस गुफा में आक्सीजन के लिए पाइप लगे थे जिनसे वहा पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को साँस लेने में सुविधा हो हो सके | दूसरी तरफ उस अँधेरी भयावह गुफा के रिसते हुए पानी को निकालने के लिए भी पाइप लगाये गए थे . ट्राली चल रही थी और हम लोग देख रहे थे की कैसे जगह - जगह पानी दीवारों से निकल रहा है ,कही धीमा तो कही हल्का तेज ,जैसे की पतला झरना गिर रहा हो .दीवारों पर रौशनी के लिए चूने की पुताई की गयी थी | बहुत सी जगह ऊपर की छत को सहारा देने के लिए लकड़ी के मोटे -मोटे खम्बो का सहारा लिया गया था . हम जैसे -जैसे अन्दर की तरफ बढ़ रहे थे ठंडक भी बढती जा रही थी. उस ठंडक का असर कानों पर भी पड़ने लगा और कान  सुन्न पड़ने लगे .तभी ट्राली चालक ने एक जगह ट्राली रोकी और कहा की आप लोग अपने हेलमेट की रौशनी बंद कीजिये .हम लोग सब अच्छे बच्चों की तरह लाइट बंद कर के बैठ गए .उस अँधेरे गृह में जंहा अपना हाथ भी नजर न आ रहा हो वहा बिना रौशनी के दो चार पल गुजारना  किसी कड़ी सजा से कम नहीं था | हम सभी की सांसे हलक में अटकी हुयी थी  की तभी अगले पल आदेश हुआ की अब आप रौशनी चालू रख सकते है .हमने उत्सुकतावश पूछा की आपने रौशनी बंद क्यों करवाई थी | इस पर जवाब मिला की आप लोगो को बताने के लिए की यंहा बिना रौशनी के क्या स्थिति होती है .हमने मन ही मन कहा की जब रौशनी है तब तो ये सुरंग इतनी दमघोंटू है बिना रौशनी के कोई कैसे जी सकता है |लेकिन उस पल हमें ये अनुभव अवश्य हो रहा था की अगर किसी को मारना हो तो यंहा छोड़ दिया जाये और उससे सिर्फ इतना कह दे की  अब तुम्हे खुला आसमान  देखने को कभी नसीब नहीं  होगा  ,पक्का वो व्यक्ति पंद्रह मिनट के अन्दर ही खत्म हो जायेगा ||उस दिन हमें खुले आसमान का महत्त्व समझ में आया तब लगा की वाकई में जो वस्तु आसानी से उपलब्ध होती है उसके मूल्य का कोई अंदाजा नहीं लगाता |अब हम लोग उस जगह पर थे जंहा लिखा हुआ था की इस जगह के ऊपर दामोदर नदी बहती है |ये पढ़कर हम रोमांचित हो उठे की हम लोग जमीन के इतने नीचे है की हमारे ऊपर दामोदर नदी बह रही है और हमें इसका जरा सा भी आभास नहीं |मन किसी बच्चे की भाति आपने आप से ही प्रश्न करने लगा की अगर इसकी छत में सुराख़ हो जाये तो दामोदर नदी का पानी तो पूरी खदान को ही बहा ले जायेगा |दामोदर नदी के बीचोबीच पहुँच कर ट्राली रुकवाई गयी और बताया गया की इस खदान का काफी हिस्सा दामोदर नदी के उस पार और इस पार है |  इस  खदान का कुछ हिस्सा  पुरुलिया  में भी है.बातो के दौरान हम लोग छः किलोमीटर ( 6 km.)अन्दर पहुँच गए थे .पूरी खदान में ट्राली चलाने के लिए लोहे की पटरी बनी हुयी थी  इन्ही पटरियों पर कोयले की ढुलाई छोटी -छोटी  ट्रालियों द्वारा होती है.एक जगह  ट्राली रोक कर हम लोगो को नीचे उतरने के लिए कहा गया .वहा उतरकर हम लोग आगे गए जंहा पर हमने दो रास्ते देखे ,दोनों ही रास्ते पतली सुरंग नुमा थे ,एक पतले रास्ते पर ट्राली के जाने के लिए  ट्रैक बना हुआ था दूसरी तरफ सिर्फ रास्ता ही था .हमने पूछा ये दोनों रास्ते किस लिए है .मैनेजर ने जवाब दिया की ट्राली वाले रास्ते में कोयले  की खुदाई चल रही है ,और दूसरा वाला रास्ता बंद कर दिया गया है. क्योकि वंहा कोयला अब खोदने लायक नहीं बचा  है.  हमारे पूछने पर की यहाँ कितना कोयला है ,मैनेजर जी ने बताया की  अभी  ७२ मिलियन टन (72 million ton ) कोयला  निकालना बाकी है.
अब तक हम काफी अन्दर आ चुके थे ,हमें लगा की कही ऐसा न हो की इंजीनयर साहब हमें खुदाई वाली जगह दिखाने के लिए फिर से ट्राली में बैठने  के लिए न कह दे ,  अतः हम  तुरंत वापस जाने वाले रास्ते पर आ गए .हमारे साथ के लोग भी वापस जाने के मूड  में ही थे | इंजीनियर जी ने बताया की इस खदान में दो ट्राली वाली लिफ्ट है ,अगर एक ख़राब हो जाये तो दूसरी काम करती रहती है  .इस खदान में पाँच वर्षो  से  एक भी दुर्घटना नहीं घटी | यंहा ५५०  ( 550 ) श्रमिक दैनिक काम करते है.आदि -आदि .लेकिन सच ये था की अब हमारी दिलचस्पी उस खदान के बारे में  जानकारी एकत्र करने में कम  बल्कि  दो हजार फीट नीचे जमीन  के अनछुए  अनुभवों को बाटने में ज्यादा थी | वैसे भी हमारी यात्रा  अब समाप्ति की ओर  थी और हमारे पास था अनुभवों का बेहतरीन खजाना जिसे लुटाने के लिए हमें खुले आसमान की  अत्यधिक आवश्यकता थी .
आभार स्वरूप
एक चित्र चिनाकुड़ी खदान के मैनेजर , इंजीनियर  व् 'डी वेक ' टीम के साथ
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अवैध खदान 
जिन खदानों  को सरकार बंद करा देती है उन्ही में अवैध खुदाई होती है वंहा कोई भी नहीं जा सकता क्योकि उन खदानों के पास माफियाओ के गुर्गे   निरंतर निगरानी करते रहते है |  ये खदाने सुरक्षा के दृष्टिकोण से बिलकुल सही नहीं होती क्योकि उन खदानों में जरूरतमंद जिन्हें काम की बहुत आवश्यकता होती है वही काम करते है |    इनमे काम करने वालो को पैसा भी अच्छा मिलता है | उन खदानों में काम करने वालों का कहना है की मारना तो ऐसे भी है तो फिर क्यों न काम करके मरे कमसेकम  परिवार का पेट तो भरेगा | ये खदान बाहर से पतली सुरंग जैसी होती है जिनका मुख्य द्वार इतना छोटा होता  है  की उसमे जाने के लिए इन्सान को झुक कर जाना पड़े .मजदूर इनमे मोमबत्ती के सहारे जाते है ,यंहा आक्सीजन की कोई व्यवस्था नहीं होती ,कितनी बार जहरीली गैस निकलने से मजदूर मर जाते है या कभी आग लग जाती है या अचानक पानी की तेज धार  फूट पड़ने से मजदूर हादसों के शिकार हो जाते है.इन खदानों  से हादसे के दौरान दुर्घटनाग्रस्त लोगो को निकालने के लिए  दूसरे दरवाजे की कोई व्यवस्था नहीं होती.ये बहुत ही खतरनाक होती है |सबसे बड़ी बात की अक्सर अवैध खदानों में होने वाले हादसों की खबर प्रेस में छपने नहीं दी जाती है या तो प्रेस को पैसा देकर चुप करा दिया जाता है या डरा -धमका के उस जगह से दूर रखा जाता है. जिस परिवार का व्यक्ति इस दुर्घटना में मारा जाता है उसे पैसे के बल पर शांत रखा जाता है .चूँकि  मारा जाने वाला  व्यक्ति अवैध खदान  का कर्मचारी होता है तो परिवार वाले भी पुलिस की जाँच के डर से चुप रह जाते है.