Saturday 1 December 2012

AAPKI SEHAT AUR BAZAR .


 किसी समय ये पंक्तियाँ आम थी,  
                  "Early to bed early to rise, makes a man healthy wealthy and wise"
  "अरली टु  बेड , अरली टु राईस मेक्स अ  मैन हेल्दी,वेल्दी  एंड वाइस "
लेकिन आजकल महानगरो और नगरो में  चलन है ,
"लेट टू  बेड ,लेट टु राईस ,इट इस टुडे'स  फेशनेबल  लाइफ।"
 देर रात तक काम  करना सुबह देर से उठना, फ्रिज के अन्दर  पैकेट्स में बंद खाने की वस्तुओं को जरुरत के अनुसार खाना या बाजार में आसानी से उपलब्ध मनचाही खाद्य सामग्री को   खरीद कर  पेट भरना और लम्बे समय के लिए व्यस्त हो जाना  । इस दिनचर्या के चलते कितने लोग   जानते ही नहीं की सूरज उगते समय दिखता  कैसा है। रात के  तीन  बजे तक जंहा  गाँवो में लोगो की  नींद पूरी हो जाती है और वो  प्रातःकाल की दैनिक क्रिया से  निवृत होने के लिए सोचने लगते है, वही कितने ही शहरवासी  सोने के लिए बिस्तर पर भी नहीं जा पाते ।इसलिए नहीं की वे दैनिक दिनचर्या निपटाना नहीं चाहते    बल्कि बड़ी-बड़ी अन्तराष्ट्रीय कंपनियों, मिडिया ,कालसेंटर,की  उपस्थिति,उनके आकर्षक पॅकेज आदि ने  अपने  कर्मचारियों  की जीवन शैली बदल कर रख दी ।  बाकि की सेहत ख़राब करने की जिम्मेदारी बड़ी-बड़ी डिब्बाबंद खाद्य सामग्री को बाजार में  उपलब्ध कराने  वाली कंपनियों ने सम्हाल ली ।सत्तू का शरबत , गन्ने का रस ,फलो के जूस पीने वालों की कमी अभी भी नहीं है लेकिन जितनी बिक्री बोतल बंद शीतल पेय की है उतनी देशी जूस ,सूप की नहीं है । अगर सर्वे किया जाये तो भारत में फ़ास्ट फ़ूड की बिक्री काफी बड़ी तादाद में है। जैसा की नेट पर कुछ सर्वे ने साबित किया है की भारत टॉप टेन देशो में आता है । परिवर्तन जीवन की मांग है इसी मांग के चलते  पिज्जा,बर्गर ,हॉटडॉग, चाइनिस और न जाने कौन-कौन सी  फ़ूड कंपनियों ने अपने पांव मजबूती से जमा दिए   जब बाहर का खाना खायेंगे तब गला   ठंडा करने के लिए पानी तो कम ही  रास आएगा और   शीतल पेय को प्राथमिकता पहले दी जाएगी ।ऐसी स्थिति में   शीतल पेय की कंपनिया पीछे क्यों  रहेंगी । चिप्स , कुरकुरे आदि के रंगीन चमकीले पैकेट्स ने बढ़ते प्रदुषण में अपनी अहम् भूमिका   दर्ज करा दी   क्या बच्चा क्या बूढ़ा  सभी बिकने वाले खाद्य पदार्थो को खाना पसंद करते है । घर की महिलाये भी खाना बनाने की जेहमत कम उठाना  चाहती है । वैसे भी होटल में खाना या टिन पैक्ड  खाने को अपनी डाइनिंग टेबल की शोभा बढाना स्टेटस सिम्बल है ।जब स्टेटस सिम्बल की बात आएगी तो कौन इस दौड़ में पीछे रहना चाहेगा बस यही से आरम्भ होता है ख़राब सेहत का दौर और विभिन्न बीमारियों का आक्रमण ।जिनके नाम भी नहीं सुने जाते थे बे आजकल आम बीमारियाँ  बन गयी है । अब इन्सान खाना कम खाता है और दवाइयां  ज्यादा । उसके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग डाक्टरों और अस्पतालों के चक्कर लगाने में निकल जाता है ।प्रत्येक दस में से एक घर ऐसा मिल जायेगा जहाँ कोई न कोई बीमार है । पहले लोग बीमारी को बढती उम्र की निशानी मानते थे लेकिन  आज  बीमारी ने बच्चों को भी नहीं छोड़ा है । कितने परिवारों  में छोटे-  बच्चें अस्थमा ,सुगर , ब्लड प्रेशर  के रोगी दिखाई देते है ।  मोटा होना या पेट बड़ा होना तो आम बात है । जहा बच्चे छरहरी काया के स्वामी समझे जाते थे वही आज के बच्चे बड़ा सा पेट लिए दिखाई देते है क्योंकि ये हमारे बदलते जीवन चक्र का नतीजा है जिसमे सेहत को कम और स्वाद को ज्यादा महत्व दिया है अगर हमने अपने स्वाद पर लगाम नहीं लगायी या जीवन शेली में परिवर्तन नहीं लाये तो इतना   जरुर है  कि भविष्य में  हमारी  आमदनी   बीमारी का इलाज कराने   में ही चली जाएगी और हम समय से पहले ही  निराशा के सागर में गोते लगा रहे होंगे । क्योकि  अच्छी सेहत  के बिना  दुनिया   वीरान  दिखती है ।