Thursday 16 March 2017

प्रोन साईट पर लगाम लगाना आवश्यक ?

मोबाईल भी  क्या कमाल की चीज है , जब चाहो  किसी को भी सेकेंड्स में सन्देश भेज दो,  जितनी देर चाहो बात कर लो , ग्राहकों की हमदर्द  बहुत सी कंपनियों ने उनकी सुविधा के लिए  कुछेक  मुफ्त वाली स्कीम चला रखी है.  मतलब  जीरो बेलेंस पर भी आप घंटो चटिया सकते है. ऊपर से सोने पर सुहागा  इंटरनेट, बिलकुल अलादीन  का  चिराग  जब चाहो जो चाहो बस दो से तीन शब्द टाइप करो और तमाम सारी जानकारियों को प्राप्त करो।  राजनीती , खेल, खिलाडी ,फिल्म ,शिक्षा ,परंपरा,त्यौहार  यहाँ तक की आप किसी  भी ख्याति प्राप्त व्यक्ति विशेष के  जीवन से जुडी हुयी बहुत सी जानकारियो से समृद्ध हो सकते है।  बच्चों और बड़ो  का अगर काम के दौरान मन ऊब गया हो  तो अपने को उदासीनता से बाहर  लाने  के लिए   तरह -तरह के गेम्स है ,इच्छा नुसार गेम खेलकर अपने को उबाऊ समय से बाहर निकाल सकते है। मनचाही पिक्चर देख सकते है ,पसंदीदा गाने सुनसकते है। फेसबुक और व्हाट्सअप की दुनियां ने तो उन्हें खुशियों की सौगात दे दी है । स्कूल के बाद सारे मित्र फेसबुक या व्हाट्सअप ग्रुप में सिमट गए कभी किसी कारण वश स्कूल जाना नहीं हुआ तो स्कूल वर्क ,होम वर्क सब कुछ व्हाट्सअप पर हाजिर।  पुरुष व् महिलाओ ने भी अपनी जरुरत के मुताबिक अपने अपने ग्रुप बना रखे है।  कोई बुटीक चला रहा है , कोई इवेंट करवा रहा है तो कोई ब्यूटिशयन अपने कस्टमर को व्हाट्सअप के माध्यम से जोड़ कर रखे हुए है। राजनीती से लेकर धार्मिक प्रवचन ,उपदेश और ना जाने क्या क्या ज्ञान फेसबुक और व्हाट्सअप पर बांटे जा रहे है।  जो भी हो जो काम पहले गांव में पेड़ के नीचे बैठकर चौपाल में होता  था अब वो जिम्मेदारी फेसबुक और व्हाट्सअप ने अपने कंधो पर सम्हाल रखी है। किसी कार्यक्रम में आमंत्रित करना हो , जुलुस निकलवाना हो या फिर दंगे करवाना। सभी कार्य बड़ी ही सुगमता से इनके माध्यम से हो जा रहे  है। यहां तक की किसी समुदाय विशेष के प्रति अपनी नफरत और दिल की भड़ास भी इन्ही के जरिये निकाली जा रही है।  जो थोड़े से बुद्धिजीवी है वे ब्लाग्स लिख कर अपने विचार व्यक्त कर रहे है। जो भी हो मानना पड़ेगा की हाई टेक तकनीकी दौर ने हमारी जिंदगी ही बदल दी। अगर ये कहे की सिर्फ हमारी ही नहीं बच्चों की तो पूरी की पूरी बदल दी तो गलत नही होगा क्योंकि   गूगल गुरु ने प्रत्येक साईट पर प्रोन पिक्स,  प्रोन पिक्चर यू ट्यूब पर लगा कर   रखी है। आप चाहे राजनीती ,शिक्षा, धर्म किसी भी साईट पर जाइये प्रोन साईट अपने उत्तेजक चित्रों के साथ आपका स्वागत करने के लिए हाजिर है ,यहां तक की कितने लोग अपने अवैध धंधो को भी इसके जरिये चला रहे है। अब अगर कोई मासूम बच्चा अपनी जरुरत के विषय को खोजते हुए अचानक इस साईट से रूबरू हो जाये तो क्या होगा उसके मासूम मस्तिष्क पर क्या छाप पड़ेगी।  इस हालात में क्या वो अपनी शिक्षा के साथ न्याय कर सकेगा वो भी तब जब उसने अभी हाल में ही दुनियाँ को समझना आरम्भ किया हो। अतः अगर बच्चों को बनाना है तो हमे इस प्रकार की साईट  को बच्चों की पहुँच से दूर रखना होगा , उन पर पाबन्दी लगानी होगी अन्यथा बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि के अतिरिक्त हमारे समाज को और कुछ नही मिलेगा. 



Tuesday 14 March 2017

महिला स्वालंबन ,आवश्यकता है मानसिकता में परिवर्तन की ....................



उसकी आँखों से छलकते आंसू बता रहे थे की वो अंदर से कितनी दुखी है और दुखी हो भी क्यों न आखिर कौन सी औरत पूरा दिन खट कर कमाने के बाद अपनी सारी कमाई अपने पति को इस डर से सौप देंगी की अगर नहीं दिया तो  उसकी पिटाई लात जूतों से हो जाएगी।  ये एक दिन का भी किस्सा नहीं है कि  चलो इसे भुला दिया जाये । रोज ही शराब पीकर पत्नी को अपने पाँव  की जूती समझ कर उसे प्रताड़ित करना उसकी  दिनचर्या का हिस्सा है.  वो  भली -भांति जानता है की उसकी पत्नी  का साथ देने के लिए उसके  माता -पिता  हैं नहीं  और न ही  उसके पास आर्थिक  निर्भरता  क्योंकि पत्नी की पूरी कमाई पर उसका कब्ज़ा है .  इस परिस्थिति में उसे छोड़कर  वो कैसे जा सकती  है ,  उसके पास सर छुपाने के लिए कोई दूसरी छत है ही नहीं। छत एक  महिला  के लिए कितनी आवश्यक है ये वही बता सकती है जो उसके आभाव में मर -मर कर जी रही है।   ऐसी एक नहीं सैकड़ो महिलाये है जो समाज की नजर में अपने पैरो पर खड़ी   है किन्तु घर की चहारदीवारी में बेबस नारी है। नारी की मानसिक ,शारीरिक प्रताड़ना की  एक नहीं अनेको आपबीती है ,  कुछ लड़कियां सुबह पाँच बजे से रात के दस बजे तक कही फुल टाइम तो कही पार्ट टाइम कार्य करती है ताकि वो अपनी शादी के लिए कुछ रूपये इकट्ठे कर सके और  अपने सपनों में रंग भर सके उसके बाद भी उन्हें  अपने माता -पिता, भाई -बहनो  से सुनना पड़ता है कि  मेमसाहिबा के पास घर के कार्यो में हाथ बटाने का  समय ही नहीं है।    सैकड़ों लड़कियां ऐसी  भी है जो  अपने को आर्थिक निर्भर बनाने के लिए बसों ,लोकल ट्रेनों में लटक कर ,खड़े हो कर , मजनुओ के फिकरे सुनते हुए सफर करती है कभी मज़बूरी वश तो कभी अपनी मर्जी से जिंदगी जीने की इच्छा वश।  नारीसशक्तीकरण के दौर में हर लड़की की चाहत है की वो नौकरी करे।  नौकरी मिलने के बाद घर बसाना उसके बाद पति ,बच्चे उनकी जिम्मेदारियां। छोटे   बच्चे को आया के भरोसे छोड़कर  नौकरी करने वाली महिला भी कुंठाग्रस्त है की अगर वो नौकरी छोड़ देंगी तो उसे अपने पति और उसके घरवालों के रहमोकरम पर जीना होगा और अगर नौकरी जारी रखती है  तो उसके मासूम बच्चे के साथ उसकी पीठ पीछे आया क्या कर रही  होगी । अगर घर में सास- ससुर है तो बच्चों की तरफ से मुक्त रहती है किन्तु घर जाकर उनके लिए खाना भी पकाना है क्योंकि वे बाहर का बना खाना नहीं खाएंगे । नौकर रखती है तो ऑफिस से लौटने के बाद सास की दस शिकायते तैयार मिलती है। देर से आती है तो तानों की बौछार मिलती है।पत्नी या बहु का कार्य किसी को दिखाई नहीं देता उसकी थकान  , उसकी पीड़ा इससे किसी को कोई लेना देना नहीं क्योंकि घर के कार्य औरत ही करती है वो तो पुरुष कर नहीं सकता भले ही दोनों एक ही आफिस में एक ही पोस्ट पर कार्यरत   हो।  ये  कड़वी सच्चाई  निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के साथ अधिक जुडी है।       एक तरफ नारी को सशक्त बनाने के लिए आये दिन नए कानून ,नयी योजनाए तैयार होती है दूसरी तरफ पुरुष प्रधान मानसिकता ज्यों की त्यों रहती है।   औरतो की सफलता और  उन्हें सशक्त बनाने  लिए बने कानून का जब कभी कोई महिला दुरूपयोग करती है तो पुरुष समाज समस्त नारियों को एक ही लाठी से हाँकने लगते है बिना विचारे की आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सका ,दहेज प्रथा अभी भी कितनी कोमल नारियों को शारीरिक मानसिक कष्ट दे रही  है उन्हें अग्नि के हवाले कर रही है।   जो भी हो नारी सशक्तिकरण की दौड़ में रोबोट बनी महिला तब तक सुखी नहीं हो सकती जब तक की बेटो को पुरुष के झूठे अहम् से बाहर नही निकालती उन्हें ये नही सिखाती की उसकी पत्नी भी एक इंसान है वो भी बाहर काम करके थक जाती होगी।  घर के छोटे -मोटे कामों में मदद करना सम्मान के विरुद्ध नहीं है क्योंकि घर उनका भी उतना ही है जितना की पत्नी का। जिस दिन स्त्री -पुरुष की सोच में बदलाव आ जायेगा उसी दिन समाज भी परिवर्तित हो जायेगा.