Saturday 31 December 2011

देश का दुर्भाग्य

  
 भारत आज भी अथाह सम्पदा का मालिक है .उसके गर्भ में अनेक बेशकीमती खनिज पदार्थ समाये हुए है . उन्ही में से कोयला भी है जो करोडो -अरबो की सम्पति है ,जिसकी देख-रेख के लिए, सही उत्खनन के लिए कितने वैध खदान बनाये गए है जहा समस्त सुविधाओ का ध्यान रखने की कोशिश की जाती है .किन्तु लूट्ने वाली मानसिकता के शिकार लोग वंहा भी सेंध मारने से बाज नहीं आते और तो और बड़े -बड़े अवैध कोयला खदान ,अवैध उत्खनन ,,अवैध डिपो इतने धड़ल्ले से चल रहे है कि जिन्हें देख कर अपने आप ही समझा जा सकता है कि इतना बड़ा काम बिना ऊपर तक पहुँच बनाये सुचारू रूप से चलाना संभव नहीं है . जहा अधिकतर  लोग पैसा बनाने में विश्वास रखते हो वंहा अवैध कारोबार करना कौन सा मुश्किल काम है.,फिर वो कोयला ,भू ,पेर्टोलियम,वन ,जीव -जंतु कुछ भी हो , क्या फर्क पड़ता है . यही वजह है जितने वैध कोयला खदान नहीं है उससे तीन गुना ज्यादा अवैध खदाने है जिनकी न कोई गिनती है न कोई गिनने वाला .जहा दुर्घटनाये होना आम बात है किन्तु उनकी पुष्टि बिना साक्ष्य के करना मुश्किल.और हो भी कैसे जिस अवैध धन को उगाहने का ये ताना -बाना है उसी ताने-बाने के शिकार अधिकतर पत्र -पत्रिकाए ,पत्रकार ,प्रशासन एवं कुछ RAJNITIGY भी है ,जिनकी जेब में माल  दुर्घटना होने के साथ ही पहुँच जाता है और वे माल रूपी स्वर्गीय सुख को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक समझौते कर लेते है .वैसे इसमें बुराई क्या है सभी तो यही कर रहे है तो वे क्यों न बहती गंगा में हाथ धो ले इसी सोच के साथ वे इसे सहर्ष स्वीकार करते है और मन में उपजी ग्लानी बोध से मुक्ति पा लेते है .दूसरी ओर उस दुर्घटना स्थल में हादसे के शिकार मजदूर या तो कल का ग्रास बन जाते है या फिर उस भयानक कई सौ मीटर बिना हवा की लंबी गुफा में दब कर मरने को विवश हो जाते है ,आस -पास के लोग कोयला माफिया के खौफ से डर कर अपनी इंसानियत को कुचलता हुआ देखते रहते है ,उन मृतक मजदूरो के परिवार के लोग रुपयों का बड़ा बण्डल देख आपने आंसू पोंछ लेते है और करे भी क्या ,क्योकि जिन अवैध खदानों में उनके परिजन हादसे का शिकार हुए है ,उन खदानों में काम करना गैर क़ानूनी है . ऐसी स्थिति में उनकी शिकायत न पुलिस सुनेगी और न मदद मिलेगी फिर इन पचड़ो में बेवजह पड़ने से क्या फायदा .बस यही मूल मंत्र है जिसके बल पर गैर कानूनन काम बेफिक्री से चल रहा है .किन्तु दुःख होता है ये देखकर कि हमारे देश का दुर्भाग्य है कि पहले उसकी अपार सम्पति को लूट्ने महमूद गजनवी से लेकर नादिरशाह तक आये और बाद में लगभग दो सौ वर्षो तक अंग्रजो ने जी भरकर लूटा ,अब उसके अपने लोग अपनी अतृप्त धन कि प्यास को बुझाने लिए अपने ही देश को लूट्ने में लगे हुए है ,जिसको जहा भी कुछ नजर आ रहा है वो उसे हड़पने में लगा है ,बिना ये सोचे कि वो अपने ही देश को खोखला कर रहा है .कानून ,अनुशासन ,ईमानदारी ,देशप्रेम जीवित होते हुए भी अपने को अकेला व् लाचार पा रहे है .माफियाओ के हिमालय रूपी कद के सामने वे अपने को बौना महसूस कर रहे है किन्तु जिस दिन उन्हें अपनी ताकत का अहसास होगा उस दिन वे चींटी के सामान होते हुए भी हाथी को मरने में सक्षम होगे और रौंद डालेंगे भ्रष्ट ,लालची जमात को जो जनता कि मेहनत और मजदूरी पर अपने सुख की ईमारत को बनाने और सजाने में लगी  है .

Wednesday 14 December 2011

Ganga sagar Jan. 2012

 यात्रा आस्था ,विश्वास ,श्रद्धा ,अर्पण और तर्पण की 
  यात्रा गंगासागर की,                   
लोकल ट्रेन के अन्दर का  दृश्य 
सुना था की लोग अपने वृद्ध माता-पिता को गंगासागर तीर्थ कराने के बहाने गंग्सागर में छोड़ कर चले जाते है.ठीक वैसे ही जैसे कि  बृन्दावन ,और बनारस में  वृद्ध महिलाओं को छोड़ कर लोग आ जाते है.बस फिर क्या था हम लोगो ने निश्चय कर लिया कि हम सभी गंगासागर जायेंगे पता करने के लिए कि इस कथ्य में कितनी सच्चाई है .बस सबेरे ही हम लोग  पंहुच  गए सियालदह स्टेशन पर लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए .सात बजे वाली लोकल जिसका भाडा मात्र पंद्रह रुपये था,पकड़ कर  ठीक तीन घंटे में  हम लोग काकद्वीप पहुँच गए.काकद्वीप एक छोटा सा स्टेशन है जिसमे चहल -पहल कम ही होती है.  फिर भी यात्रियों कि सुविधा के लिए छोटी -छोटी चाय कि दुकान है ,जंहा  चाय के साथ बिस्किट व् मुड़ी (लहिया, मूंगफली  ,व् चनेके साथ ) मिलती है.इन दुकानों में एक खासियत ये भी है कि अगर  आपने   चाय पीने के पहले ताक-झाक नहीं कि तो हो सकता है कि दुकान वाली महिलाये आपको रक्खी हुयी चाय गरम कर पिला दे .काकद्वीप से जेटी नंबर 8 लगभग 9 किलोमीटर है.
वेंन यात्रा,
 काकद्वीप से जेटी नंबर  8, 9 kilomitar की दूरी पर  है. 
 वंहा से जेटी पहुचने के लिए बस ,रिक्शा, मोटर वेंन आदि मिलती है.हम लोग जैसे ही पहुचे बस निकल चुकी थी ,अब जल्दी थी जेटी पहुँच  के लांच पकड़ने की .वंहा पर बहुत सारी मोटर  रिक्शा वेन खड़ी रहती है जो जेटी तक पहुचाने का पंद्रह रुपये प्रति व्यक्ति लेती है .ये रिक्शा वेन बहुत ही संकरे मार्ग से गुजरती है ,जिसपर से एक बार में एक ही वेन जा सकती है ,लेकिन कभी -कभी सामने से दूसरी आ जाती है तो निकलने में दिक्कत होती है साथ ही वेन में सवार व्यक्ति को अपने हाथ -पैर बचा कर रखने पड़ते है  अन्यथा  दूसरी वेन से टकरा कर घायल हो सकता है.बंगाल के गाँवो की एक विशेषता है. की प्रत्येक घर के सामने नारियल ,केले, कटहल के पेड़ और एक पोखर अवश्य होगा .कही -कही उस संकरे से रास्ते के किनारे पोखर थे जिन्हें देख कर हम लोगो को डर लग रहा था की अगर जरा सा भी संतुलन बिगड़ा तो पोखर में गिरने में समय नहीं लगेगा और उसके बाद क्या होगा इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है.
वैन से जाने वाला  संकरा मार्ग , कही -कही इसके  दोनों तरफ पोखर (छोटे तालाब) बने हुए  है .इस रस्ते पर जब  वैन गुजरती है तब  उसमे  बैठे लोगो को  बहुत डर लगता है ,क्योकि अगर वैन जरा सा भी संतुलन खोती है तो वैन में सवार लोग सीधे पोखर में गिरेंगे.

लेकिन हम लोगो को वेन यात्रा में जितना आनंद आया उतना किसी में नहीं आया .एक दम नया व् दिलचस्प अनुभव .जेटी पहुँच कर फटाफट  लांच की टिकेट ली गयी ( rupees ,6.50. per head .) टिकेट का दाम बहुत ही कम था मात्र छः रूपये पचास पैसे . में ४५ (45) मिनट की यात्रा .लांच ठसाठस भरी हुयी थी . कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था .सिवाय   भीड़ के .
जेटी नंबर ८ पर  लांच का इंतजार करते हुए
उसी भीड़ में एक तीन फीट की लड़की भीख मांग रही थी उसका कद देखकर उसे पैसा तो दे दिया लेकिन ऊपर वाले के इस अन्याय पर हम लोग सवाल भी उठा रहे थे की  अपाहिज न होते हुए भी  ये  कितनी अक्षम है जो अपनी जिम्मेदारी  भी नहीं उठा सकती ओर आम लोगो की तरह से घर बसा कर सुकून की जिंदगी भी नहीं बिता सकती ..तभी जोर -जोर से आवाज  सुनाई देने लगी "आ आ ,ले.ले"  देखा ,एक आदमी (वेंडर) जो अपने साथ ढेर सारे चने ,मुगफली , आंटे  की गोलिया लिए हुए था  तथा पक्षियों को फेंक रहा था साथ ही लांच में उपस्थित लोगो को उकसा रहा था की आप लोग तीरथ करने आये है ,इसलिए इन पक्षियों को चुगाइए आपको बहुत पुन्न मिलेगा . मतलब पुन्न के नाम पर उसकी दुकानदारी जोरदारी से चल रही थी और तीर्थयात्री पक्षियों को पास से देखने के लिए बार -बार उन्हें दाना फेंक रहे थे .
लांच में चलने वाली तीन फिटि भिखारिन  


किन्तु पक्षियों को चुगाना बहुत ही अनंदायी था  , ये दृश्य अत्यधिक लुभावना था , किन्तु भीड़ की वजह से  हम कैमरे में ठीक से कैद भी नहीं कर पाए .  विभिन्न प्रकार के पक्षी झुण्ड के साथ दानो  को लेने के लिए झपट रहे थे .पक्षियों को चुगाने का  एक अलग ही आनंद आ रहा था ,लेकिन ताज्जुब तो तब हुआ जब लौटते समय एक भी पक्षी दिखाई नहीं दिया.शायद मूक पक्षी भी जानते  है की जाते समय ही लोग उन्हें दाना देंगे ,वापसी में तीर्थयात्री  अपनी  दान की झोली खाली करके  लौटते है  और उनमे इतनी न तो ताकत होती है न ही जिज्ञासा की वे फिर से  उन्हें  दाना डाले. लांच से उतर कर कुचुबेडिया आये, जहाँ से अभी भी ३० किलोमीटर जाना बाकि था ..जिसके लिए बस ,कार ,जीप आदि उपलब्ध रहती है .जिसकी जैसी सामर्थ वो  वैसी  सुविधा ले  सकता है . बस का भाडा यहाँ भी पंद्रह (15 upye per head)  है . किन्तु गाड़ी वालो से मोल-भाव करना पड़ता है. गंगासागर पहुँच कर वहा  पर स्थित बहुत से सेवाश्रम है उनमें अपने रहने की व्यवस्था करनी होती है .लेकिन हम लोग पहले से ही भारत सेवासंघ आश्रम में अपने लिए ग्यारह रुपये प्रत्ति कमरे के हिसाब से दो कमरे आरक्षित करवा चुके थे .बड़े -बड़े कमरे  बाथरूम की सुविधा के साथ प्रथम तल्ले पर मिल गए .भारत सेवाश्रम काफी सुन्दर है. इसी आश्रम में काफी बड़ा मंदिर है इसकी सुबह -शाम की आरती मन मोह लेती है. इसके आलावा यहा २४ (24 )  घंटे बत्ती रहती है..भोग का खाना पंद्रह रूपये की स्लिप कटाने पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है.लेकिन ये स्लिप पहले से कटानी होती है अन्यथा आपको खाना नहीं मिलेगा .वैसे गंगासागर के होटलों में खाना काफी कम दाम पर मिलता है.जैसे की बीस रूपये में चार रोटी ,दाल,सब्जी और आलू भाजा.( पतले  आकार  में आलू काट कर उन्हें नमक मिला कर तबतक  तलना जब तक की वे लाल न हो जाये और फिर खाने के साथ देना )ये बंगाल के खाने का अहम् हिस्सा है.अगर कोई रोटी नहीं खाना चाहता तो उसे चावल खाने में देते है.अगर किसी के लिए इतना खाना कम है तो तीस रूपये में मन चाहा खाना खाइए .बढ़िया चाय पांच रूपये में . गंगासागर की एक विशेषता है की वहा के दुकानदार हिंदी समझते है इसलिए तीर्थयात्रियों को तकलीफ नहीं होती . गंगासागर का मुख्य बाजार इसी आश्रम के सामने है. कपिलमुनि का आश्रम यहाँ से १. किलोमीटर ( 1.km.) है.और कपिलमुनि आश्रम  से गंगासागर भी १.किलोमीटर ( 1.km.)  की दूरी पर है .                                                                                                       
भारत सेवाश्रम संघ में बने मंदिर के पुजारी
के साथ लेखिका शकुन त्रिवेदी एवं एक भक्त 



कपिलमुनि का मंदिर 
सदियों पहले राजा भागीरथ ने अपने ६० हजार  पूर्वजो के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए शिव की कठोर तपस्या की.शिव जी ने खुश होकर भागीरथ को गंगा को पृथ्वी पर लाने की अनुमति दे दी. इससे गंगा रुष्ट होगई और रौद्र रूप धारण कर पृथ्वी के लोगो का सर्वनाश करने के लिए तेजी से पृथ्वी की ओर बढ़ी. भगवन शंकर गंगा का आशय समझ गए और  उसके वेग को अपनी जटाओ में धारण कर एक पतली सी धारा  को पृथ्वी की तरफ जाने दिया .यही पतली सी गंगा की धारा गोमुख से लेकर गंगासागर तक का सफ़र तय करती है.और देव नदी के नाम से जानी जाती है . लोगो का अपार विश्वास है की इसके पावन जल में स्नान करने से समस्त रोग और पाप धुल जाते है व् मोक्ष की प्राप्ति होती है. 
बहुत पहले लोगो के मन में भ्रान्ति थी की गंगासागर में कपिलमुनि आश्रम पूरे वर्ष पानी में समाया रहता है ,सिर्फ मकर संक्रांति के अवसर पर खुलता है. इसी लिए लोग इसके दिव्य दर्शन करने के लिए एवं मोक्ष पाने के  लिए मकर संक्रांति के अवसर पर   लाखो की संख्या में  जमा होते है.लेकिन ऐसा कुछ नहीं है.अब यंहा पर बारह महीनो दर्शन होते है. यहाँ जो मंदिर के पुजारी है उन्हें अयोध्या  की हनुमानगढ़ी  से नियुक्त किया जाता है इस लिए वे हिंदी भाषी भी है.
गंगासागर की रेत सिलेटी रंग  लिए हुए  एकदम  महीन रेत है .इसलिए पानी तो मटमैला दीखता है .लेकिन घंटो नहाने के बाद भी  शारीर  पर  कटे जैसे निशान नहीं आते है.वहा गन्दगी भी बाकि समुद्री तट की अपेक्षा कम है.  तट भी नहाने के लिए सही है.लहरे बाकि समुद्री तट की अपेक्षा कम आती है और अगर आती है तो छोटी -छोटी आती है.नहाने में बहुत मजा  आता है .यहाँ नहाने में जोखिम बहुत कम है.
  
 ऊपर ढलते हुए सूरज का दृश्य 
नीचे समुन्दर में नहाते कुछ  भक्त .
यहाँ पर दूर -दूर से तीर्थयात्री बारहों महीने आते है. इनमे से कितने लोग तो हिंदी जानते ही नहीं .हम लोगो ने वहा पर उपस्थित ऐसे ही कुछ तीर्थयात्रियो का फोटो लिया ,वे लोग हमारी भाषा तो नहीं समझ रहे थे लेकिन ये देखकर की हम फोटो खिंच रहे है ,बहुत खुश हो रहे थे .वही पर कुछ बहुएं अपनी सास को नहला रही थी तो कुछ जवान लड़के अपने साथ आये हुए बुजुर्गो की सेवा कर रहे थे .ये देख  पाश्चात्य सभ्यता में तेजी से  परवर्तित होने वाले  भारत की छवि धूमिल पड़ रही थी और उस की जगह ले रही थी माता-पिता की सेवा के लिए उदाहरण बने श्रवण कुमार की परंपरा .
गंगासागर का तट पर 
 अठखेलियाँ  खेलती लहरों के साथ फोटो  सेशन 
गंगासागर तट  पर शकुन त्रिवेदी 
छोटे से  कुत्ते के बच्चे व्  उसकी माँ  के साथ 
गंगासागर में सैकड़ो कुत्ते दैनिक ही आते है और लोग उन्हें बिस्किट या  ब्रेड खिलाते है. उनमे से कुछ कुत्ते तो काफी जख्मी भी थे ,उनके जख्म देखकर बहुत तकलीफ हो रही थी लेकिन बस में कुछ नहीं था ,इसलिए उधर से नजरे घुमा कर दूसरी जगह पर टिका दी वैसे भी कहावत है की आँख ओझल तो पहाड़ ओझल .
गंगासागर क्षेत्र में स्थित दुकान में
असली -नकली मोतियों के बारे में बताता दुकानदार

बहुत से दुकानदार मोतियों पर केमिकल लगा कर ग्राहक के सामने उसे जला कर दिखाते है की देखिये असली मोती की ये पहचान है की वो आग में जलता नहीं जबकि ज्यादातर लोग सिंथेटिक मोती बेंच रहे है. अब तो चाइना के भी मोती बाजार में आने लगे है .जिनमे चमक काफी होती है और वो ग्राहकों  का ध्यान  आसानी से अपनी ओरआकर्षित कर लेते है.
 बड़े -बड़े काढावो  में खजूर का गुड बनता हुआ .

ग्राहक को खजूर के गुड का शीरा  चखाती हुयी   महिला 
हम लोगो ने भारत सेवाश्रम के पास ही एक छोटा सा बोर्ड लगा देखा की यहाँ खजूर का गुड मिलता है .बस पहुँच गए पता करने .छोटा सा घर उसके बाहर में बड़ी सी भट्टी और उसपर उबलता हुआ खजूर का रस .देखा की वहा तो कोई है ही नहीं जिससे बात की जाये गुड के सम्बन्ध में .इसलिए  हमने सोचा की क्यों न पहले  कुछ फोटो खीच ली जाये .उसके बाद देंखे की कोई घर के अन्दर है या नहीं .फोटो खीचने के बाद हम ने दो चार बार आवाज लगायी की 'कोई है, घर में कोई है,' तभी एक दुबली पतली सी महिला घर के बाहर आई .जिसे देखकर ये समझ में आ गया की ये घर के अन्दर खाना पका रही थी .वो हम  लोगो को आया देख खुश हो गयी . उससे बात करने का सबसे बेहतरीन बहाना था गुड को खरीदना .हमने जैसे ही पूछा की "गुड क्या भाव दिया" उसने पलट कर प्रश्न दागा की  'कौनसा गुड  ,पाटाली   या शीरा '.एक मिनट के लिए हम मौन हो गए की ये क्या बोल रही है .लेकिन हमारे साथ जो बंगाली सज्जन थे उन्होंने बताया की पाटाली मतलब जमा हुआ गुड और शीरा मतलब थोडा सा तरल.जिसके साथ रोटी खाने में बहुत अच्छी लगती है.खैर हमने 1kg पाटाली गुड की मांग रखी जिसे उसने ७० रूपये के भाव पर हमें दिया और हमारे साथ वाले सज्जन को ५५ रूपये केजी के हिसाब से शीरा दिया .उससे बात करने पर हम लोगो को खजूर के गुड को बनाने की कहानी  पता चली ,कैसे लोग भोर बेला में ही खजूर के पेड़ के पास  पहुँच जाते है ,वहा पहुच कर पेड़ पर चढ़ना फिर जिस मटकी को खजूर का रस निकलने के लिए पेड़ के तने से बांधा था  उसे  खोलकर  लाते  है उसके बाद जितनी मटकियो को पेड़ से उतारा गया उन्हें साईकिल पर या किसी लकड़ी के  डंडे पर बांध कर अपने घर लायेंगे .वहा उन्हें छानकर बड़े -बड़े काढावो में डाला जायेगा और फिर कमसेकम ४-५ घंटे लगातार भट्टी पर डालकर खौलाया जायेगा .जब तक की ये पूरी तरह से सूख न जाये इस दौरान गुड के रस को लगातार चलाना पड़ता है अन्यथा   रस तली में चिपक कर जल जायेगा .इससे रस में या गुड के स्वाद में जले की दुर्गन्ध आ जाएगी . ये सुनते ही हमें बहुत पहले  अमिताभ बच्चन की देखी हुयी  पिक्चर सौदागर ( नूतन जिसमे अभिनेत्री थी )  याद आ गयी .
खजूर के गुड का शीरा  
जिसे बिक्री के लिए बर्तनों में  भरकर रक्खा गया है.  

तीर्थ यात्रियों से भरा हुआ लांच 
गंगा सागर में गायों का झुण्ड  ,
ये आकार में अन्य गायो की तुलना में छोटी होती है और दूध भी कम देती है.
लांच से उतरते तीर्थयात्री 
( 8 ) आठ नंबर लांच के पास दलदल में समाया बच्चा
लोगो से पैसा फेकने के लिए कह रहा है.



 लौटते समय हमने बहुत से बच्चो को देखा ,जिनमे से कुछ कपडे पहने हुए थे तो कुछ एकदम नंगे बदन दलदल में समाये हुए पैसे  मांग रहे थे .कई बार ये पैसा न मिलने पर यात्रियों के ऊपर मिटटी भी फेंक देते थे .और पैसा मिलने पर बाकि बच्चो के साथ तुलना करते थे की आज किसकी  आमदनी कितनी ज्यादा हुयी.इनमे से जरूरतमंद बच्चे बहुत कम थे वरन वे अपने खुद के खर्चे ,जैसे कि thumsup  ,चिप्स आदि खरीद सके .
मछली पकडती महिला 
 सूखती हुयी मछलिया ,
बंगाल के ग्रामीण इलाको का सबसे बड़ा व्यवसाय.
गंगासागर जाते समय काकद्वीप से उतर कर जेटी नंबर ८ तक पहुचने वाले मार्ग पर बहुत सी जगह मछलिया सूखती हुयी दिखाई देती है.उन मच्छलियों को सुखाने का कार्य अधिकतर महिलाये करती है . ये मछलिया सूखने के बाद बाहर बहुतायत में भेजी जाती है.ये बंगाल के ग्रामीण इलाको का सबसे बड़ा व्यवसाय है. किन्तु जब इनके पास से गुजरते है तो इनकी गंध जो लोग मछली नहीं खाते उनके लिए असहनीय हो जाती है .

'द वेक' टीम 
गंगा सागर  मेले  के समय तीर्थयात्रियों के लिए निर्धारित किराया :

 विभिन्न स्थानों से गंगासागर तीर्थयात्रियों के बस, टैक्सी, लंच, वैन रिक्शा इत्यादि वाहनों के किराए को प्रशासन ने निर्धारित कर दिया है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए आउट्राम घाट पर पीएचई की ओर से किराए की तालिका लगाई गई है। इसके अनुसार विभिन्न स्थानों से किराए इस प्रकार हैं-

-हावड़ा स्टेशन से नामखाना तथा हावड़ा स्टेशन से हारउड प्वाइंट तक का बस किराया- 65 रूपए
-आउट्राम से नामखाना तथा आउट्राम से हारउड प्वाइंट तक का बस किराया- 60 रूपए
- कचूबेड़िया से सागर के लिए बस भाड़ा- 30 रूपए तथा चेमागुड़ी से सागर तक का बस किराया- 20 रूपए
- लाट-8 से कचूबेड़िया तक का लांच किराया- 40 रूपए
-नामखाना से चेमागुड़ी तक लांच किराया- 75 रूपए
-कचूबेड़िया से सागर तक ट्रेकर व मिनी बस किराया- 25 रूपए
- कचूबेड़िया से सागर तक रिजर्व अंबेसेडर व टैक्सी किराया- 450 रूपए
- कचूबेड़िया से सागर तक रिजर्व मारुति भाड़ा- 470 रूपए
- कचूबेड़िया से सागर तक रिजर्व टाटा सूमो का किराया -550 रूपए
काकद्वीप रेलवे स्टेशन से लाट-8 तथा चेमागुड़ी से सागर तक के लिए वैन रिक्शा का किराया-15 रूपए।