लोकल ट्रेन यात्रा
रानाघाट में बंगलादेश और कृष्णानगर बंगाल XI फुटबाल मैच का आयोजन था ,जिस संस्था ने ये आयोजन किया था उसने 'द वेक '
हिंदी मैगजीन की टीम को भी आमंत्रित किया था. रानाघाट की कोलकाता से दुरी लगभग ९० ( 90 km.)किलोमीटर है ,अब सवाल ये था की इतनी दूर बाई कार जाये या बाई ट्रेन .अगर कार से जाते है तो जाम में अटकने का डर है ,(कोलकाता में जाम कुछ ज्यादा ही लगता है.) ऊपर से रास्ता भी कुछ खास अच्छा नहीं सबकुल मिला कर पाँच या छः घंटे की यात्रा | जो आनंददाई कम उबाऊ ज्यादा होगी . और इसका नतीजा ये होगा की हम लोग जब वहा पहुचेंगे तो खुद ही अपने को थकान के कारण पहचान नहीं पाएंगे .अतः हमारी टीम ने तय किया की हम लोग अगर ट्रेन से जायेगे तो लगभग पौने दो घंटे में रानाघाट पहुँच जायेंगे .और ट्रेन की यात्रा में थकावट भी कम आयेगी .बस अबक्या था हम लोग समय से सियालदह स्टेशन पहुँच गए .९.५० (9.50. A.M)मिनट पर ट्रेन थी .स्टेशन पहुँच कर सबसे पहले टिकिट ली जिसका दाम पंद्रह रूपये प्रति व्यक्ति था .ये हमारे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात थी की कम खर्चे में हम बारह लोग रानाघाट पहुँच जायेंगे . ट्रेन आने का समय हो चूका था लेकिन वो किस प्लेटफार्म पर आएगी ये पता नहीं था क्योकि इसके पहले हम लोग कभी लोकल ट्रेन से कही नहीं गए थे इस लिए ये हमारी पहली यात्रा थी. लेकिन 'द वेक' के समाचार संपादक को थोड़ी जानकारी थी इसलिए वो टीम लीडर बन कर हम लोगो को गाइड करने लग गए .तभी 'द वेक' के ज्योतिषाचार्य बोले इस प्लेटफार्म पर रानाघाट वाली ट्रेन नहीं आती है वो दुसरे नंबर के प्लेटफार्म पर आती है. हम सभी मूक दर्शक और वो दोनों अपनी - अपनी बात पर अड़े हुए थे .ये देखकर हम लोग जो उनकी बक -बक सुन रहे थे , उनको बीच में रोकते हुए बोले की भाई किसी सही इन्सान से पूछ लो ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएगी ,कही ऐसा न हो की ट्रेन निकल जाये और हम लोग यहाँ यही निश्चित करते रहे की वो कब और किस प्लेटफार्म पर आएगी.
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KOLKATA 'S LOCAL TRAIN
CARRIES THOUSANDS OF PASSENGERS DAILY . |
ट्रेन कोलकाता स्टेशन पर काफी खाली हो जाती है | हम लोग जल्दी से जो डिब्बा सामने पड़ा उसमे चढ़ गए ये सोचकर की इसमें सीट काफी खाली है ,सब एकजगाह बैठ जायेंगे .लेकिन हमारे साथ जो 'डी वेक ' के समाचार संपादक थे उन्होंने कहा की ये डिब्बा सही नहीं है क्योकि इसके पीछे इलेक्टिकल बाक्स है ,कभी भी आग लगने का खतरा हो सकता है. ये सुनकर हम लोग किसी अच्छे बच्चे की तरह दुसरे डिब्बे में बैठ गए .अब बारी थी हंसी ,ठहाको की ,जो कोलकाता में काम के दौरान कम ही होता है. वहा काम का इतना बोझा होता है की उसके आलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता ऊपर से इतने लोग एक साथ बैठते भी नहीं ,बस फिर क्या था ढूंढ़ ली गई उस ग्रुप की कमजोर कड़ी .
समिरदास सीधे सादे इन्सान बाबु मोशाय,हिंदी कम समझते है इसलिए उन्हें समझ में ही नहीं आता की सामने जो बात कर रहा है वो उनके सम्बन्ध में या किसी और के बारे में कह रहा है.वैसे भी वो बड़े लोगो के संग कम, कम उम्र के बच्चो के साथ ज्यादा बैठते
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NEWS EDITOR RAJESH MISHRA DANCING |
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ट्रेन में भजन करके रोजगार करने वाले |
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MANAGING EDITOR OF 'THE WAKE'
RECEIVING GREETING FROM THE local bhajan singer |
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