भारत की सबसे बड़ी व् दुनियाँ की दूसरी बड़ी झील,
" चिल्का लेक "
" चिल्का लेक "
यू तो नाम बहुत सुना था ,ओड़िसा जाना भी कई बार हुआ लेकिन चिल्का तक पहुंचना पहली बार हुआ . हम सभी बहुत उत्साहित थे ,चिल्का जाने के लिए . हर बार की तरह कही भुवनेश्वर एवं पुरी तक सीमित न रह जाये इस लिए हम लोगो ने चिल्का जाने का कार्यक्रम सुनिश्चित कर लिया हलाकि जिस दिन हम पुरी पहुंचे थे ,उस दिन समुद्र में नहाना नही हो पाया था ये बात अन्दर ही अन्दर खटक रही थी .एक बार मन में आया भी की क्यों न कल हम लोग पूरी के प्रसिद्ध समुद्री तट पर मस्ती करने आ जाये .हमने अपनी इच्छा अपने साथ के लोगो को बताई तो उन लोगो ने जवाब दिया की समुद्र में अक्सर नहाना होता है ,हम लोग अभी तक चिल्का नहीं पहुचे इसलिए इस बार हमे चिल्का जाना चाहिए . चिल्का दुनिया की सबसे बड़ी झीलों में से दुसरे नंबर की है एवं भारत की सबसे बड़ी झील , जिसकी लम्बाई ६४.३ किलोमीटर व् चौड़ाई १८ किलोमीटर है. (1100 sq km. max.length ,64.3km.max.breadth,18 km.) बस दुसरे दिन सुबह आठ बजे हम लोग गाड़ी में बैठ कर रवाना हो लिए .जिस जगह से हम लोग चले थे उस जगह से चिल्का लेक की दुरी १०४ किलोमीटर थी और रास्ता हाई -वे .लेकिन ये देखकर हमे बड़ा अचरज हुआ कि इस हाई -वे पर इक्का -दुक्का वाहन ही थे. जैसे -जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे जंगल ही जंगल नजर आ रहा था. हमने अपने भतीजे से पूछा 'क्या ये रास्ता ऐसा ही सन्नाटे वाला रहता है.' उसने जवाब दिया कि 'ये रास्ता ऐसा ही है , हम पहले भी कई बार आ चुके है .यहाँ आबादी बहुत कम है." 'इतना बड़ा पर्यटन स्थल और आबादी इस तरफ न के बराबर . रास्ते के दोनों ओर छोटी -छोटी पहाड़िया और हरियाली ही हरियाली थी प्रकति का ये सुन्दर नजारा मन को मोह रहा था ,लेकिन अन्दर ही अन्दर एक सवाल भी था कि अगर यहाँ अकेले छूट गए तो वापस जाना कितना मुश्किल होगा.या गाड़ी ख़राब हो गयी तो घंटो खड़ा रहना पड़ जायेगा .खैर हम लोग बलुगन तहसील (खुर्दा जिला, ओडिशा )में पहुँच गए उस छोटी सी जगह को प्रसिद्ध बनाने वाली चिल्का लेक में हमें काफी पर्यटक नजर आने लगे लेकिन इनमे से अधिकतर दूर -दराज गावों से आने वाले स्थानीय लोग ही थे जो अपने मन में अपार श्रद्धा लिए हुए चिल्का झील के टापू पर स्थित कलिजय मंदिर के दर्शन करने के लिए आये थे .जैसे ही हम लोग अन्दर की तरफ चिल्का झील जाने वाले रस्ते की तरफ आये ,सामने ही एक छोटी सी दुकान जिस पर बिस्किट, चिप्स ,व् अन्य खाने वाली वस्तुए रंगीन प्लास्टिक पैकेट्स में सजे हुए थे .जबकि चिल्का प्रांगन में बड़े -बड़े वाक्यों में लिखा है की "चिल्का झील में पोलीथिन फेकना मना है."ये देखते ही मन ख़राब हो गया की एक तरफ मना लिखते है और दूसरी तरफ दुकान लगाने की स्वीकृति देते है.
अब बारी थी चिल्का झील घूमने की उसके लिए नाव लेना था .ऐसे तो नाव का टिकेट 60 रूपये है ,लेकिन अगर नाव आरक्षित करानी है तो उसका रेट अलग है ,हम लोगो ने सात सौ रूपये ( Rs. 700)दे कर अपने लिए नाव आरक्षित करायी. चूँकि वहा पर्यटक ज्यादा थे इसलिए आरक्षित नाव जो हम लोगो के हिस्से में आई उसकी हालत बड़ी जर्जर थी. लेकिन हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं था. इसलिए हम सब बिना ना नुकुर किये नाव पर सवार हो कर चल दिए . नाव में बैठते ही फोटोग्राफी आरम्भ हो गयी .हमें तो वैसे ही सुन्दर -सुन्दर चित्रों को कैमरे में कैद करने का नशा है .इसका दुष्परिणाम कई बार सामने आता है की जो लोग हमारे साथ होते है उनकी तो तस्वीर हम ले लेते है लेकिन मेरी कोई नहीं लेता .जब दो चार बार हमारे साथ ऐसा हो चुका तो हमने भी सीख लिया की पहले मेरी फोटो लो उसके बाद अपनी खिचवाओ .झील में स्थित हरे -भरे छोटे -छोटे टापू नजर आ रहे थे .और उनमे चलने वाली सवारियों से भरी बोट बड़ी ही अच्छी लग रही थीं .एक -एक चित्र हम कैमरे में कैद कर रहे थे की अचानक नाव डगमगाने लग गयी ,हमें समझ में नहीं आया लेकिन हमारे साथ जो स्थानीय लोग थे उनके चेहरे पर हवाईया उड़ने लगी .इससे पहले हम समझते नाव वाला नाव के बैलेंस को बनाने के लिए कभी इधर तो कभी उधर हो रहा था . हम भी अपने कैमरे को बंद कर शांति से बैठ गए .लेकिन मन हमारा शांत नहीं था .लोगो का मानना है की चिल्का झील कभी किसी की बलि नहीं लेती फिर वो आज कैसे ले सकती है ,क्या हम लोग इतने पापी है .हमने अपने ध्यान को बाटने के लिए अपने साथ आ ने वाले स्थानीय व्यक्ति से पूछा की कलि जय का मंदिर किसने बनाया है और ये इसी टापू पर क्यों बना है ?
मोटर बोट की आवाज सुनकर उड़ते हुयी पक्षी , |
टापू जिस पर कलिजय स्थित है ,पानी में तेजी से उठती हुयी लहरे . |
दूर से दिखाई देता कलिजय मंदिर |
कलिजय मंदिर |
बाते करने में समय आराम से निकल गया और तेजी से उठती लहरों का डर भी. हमें कलिजय पहुँचने में ४५ (45 ) मिनट का समय लगा जबकि दूर से देखने में लग रहा था की बस अभी पहुँच जायेंगे . वंहा काफी भीड़ थी उड़िया भजन का कैसेट चल रहा था.समझ में नहीं आ रहा था लेकिन सुनने में कर्णप्रिय था.
कलिजय मंदिर का पुजारी दर्शनार्थियों के साथ. |
हम लोग जब मंदिर के अन्दर पहुंचे तो वहा आरती हो रही थी ,हम सब आरती में शामिल हो गए उसके बाद वहा के पुजारी ने मंदिर का दरवाजा बंद किया |अन्दर में कलिजय को भोग लगाया गया उसके बाद उसने अपने शागिर्द को आदेश दिया ' भोग चिल्का को खिला दो ' .पूजा करने के बाद हम लोगो ने घी के दीपक जलाये जो प्रसाद के साथ दिए जाते है उसके बाद चूड़ियाँ शीतला देवी जो छोटे से कद में बाहर की तरफ स्थित है उनके उपर बांध दी .पूजा ख़त्म कर हम लोग फिर से फोटोग्राफी के मैदान में कूद गए हर कोई अपनी अपनी बेहतरीन फोटो खिचवाने में लगा था की तभी हमारे साथ जो
स्थानीय व्यक्ति था बोला "जल्दी चलिए एक घंटे से ऊपर हो गया है ,नाव वाला वापस चला जायेगा |".उसकी बात सुनकर हमें हंसी आ गयी ,की इसने हम लोगो को बच्चा समझ रखा है जो कह रहा है की नाव वापस चली जाएगी जबकि नाव रिजर्व करा के लाये है .लेकिन हम लोग तुरंत निकल लिए क्योकि हमें खाना भी खाना था और उसके बाद नारायणी देवी के मंदिर में जाना था जो की घनघोर जंगल में है.
स्थानीय व्यक्ति था बोला "जल्दी चलिए एक घंटे से ऊपर हो गया है ,नाव वाला वापस चला जायेगा |".उसकी बात सुनकर हमें हंसी आ गयी ,की इसने हम लोगो को बच्चा समझ रखा है जो कह रहा है की नाव वापस चली जाएगी जबकि नाव रिजर्व करा के लाये है .लेकिन हम लोग तुरंत निकल लिए क्योकि हमें खाना भी खाना था और उसके बाद नारायणी देवी के मंदिर में जाना था जो की घनघोर जंगल में है.
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