नारायणी देवी मंदिर
चिल्का लेक से लगभग २२ ( 22 km ) किलोमीटर की दूरी पर नारायणी देवी मंदिर है.ये मंदिर घने जंगल में है ,यहाँ जंगली जानवरों का बहुत भय रहता है.इस मंदिर की चढ़ाई बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं कि आप कुछ एक सीढिया चढ़ ने कि कल्पना कर ले . ऊंचाई है लेकिन पहाड़ो में बने मंदिर से काफी कम ऊंचाई पर है. सीढिया चढ़ के सबसे पहले पानी का छोटा सा कुंड आता है ,इसमें पानी की पतली धारा बराबर गिरती रहती है .वंहा के लोगो का कहना है की किसी को पता नहीं ये पानी कहा से आता है और कहा जाता है.
कुंड जिसमें निरंतर जल की धारा गिरती रहती है, ये कहा से आती है और कहा जाती है किसी को इसका पता नहीं . |
अन्दर में मंदिर ज्यादा बड़ा नही है ,मूर्ति भी मझोले कद की है.बाकि के मंदिरों की तरह यहाँ भी पण्डे चढ़ावा में ज्यादा दिलचस्पी लेते है व् प्रत्येक आने वाले भक्त को छोटी -छोटी जगह भी दक्षिणा देने के लिए कहते है .लेकिन उन लोगो की मांग हमें समझ में आई वो इसलिए क्योकि उस जंगल के मंदिर में जाने वाले बहुत ही कम लोग होते है ,इसलिए उनकी आमदनी भी कम ही होती है.
शकुन त्रिवेदी ,नारायणी देवी मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने |
मंदिर से वापस आने के लिए पहाड़ो को काट कर बनाया गया मार्ग. |
नारायणी देवी मंदिर के जंगल में एक लंगूर बन्दर पानी पीता हुआ . |
नारायणी देवी मंदिर में बत्तख |