दुर्गम यात्रा, दुर्लभ दर्शन
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पहलगाम जाने वाले रास्ते पर
भूस्खलन के कारण फंसी गाड़ियाँ |
2011 में हम लोगो ने , जिसमे काफी लोग शामिल थे ,अमरनाथ जाने की योजना बनायीं और उसी अनुसार टिकिट भी करा ली लेकिन जाने के कुछ दिन पहले ही किसी कारणवश टिकिट केंसिल करानी पड़ी। मन में दुःख तो बहुत हुआ लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था सिवाय एक वर्ष इंतजार करने के ।इस बार मई (2012) में जैसे ही रजिस्ट्रेशन करने का समय आया हमने किसी से भी पूछने की कोशिश नहीं की कि कौन जायेगा और कौन नहीं जायेगा। बस अपने ट्रेवेल एजेंट से बात की और अपना व् अपनी बेटी शुभ्रा का रजिस्ट्रेशन करने के लिए कह दिया और इधर अपनी व् अपनी बेटी की टिकिट 16 जुलाई 2012, जम्मूतवी ट्रेन से बनाने के लिए दे दी। किन्तु मन में एक संशय था की कोई आदमी साथ में होना चाहिए , पता नहीं कहा कौन सी परेशानी आ जाये ।वैसे तो हमारे ट्रेवेल एजेंट ने जिम्मेदारी ले ली थी ,फिरभी हमने अपने छोटे भाई से बात की और पूछा की क्या वो हमारे साथ अमरनाथ यात्रा पर जायेगा उसने भी सुनते ही हामी भर दी और अपना रजिस्ट्रेशन इटावा से करवा लिया । इधर 'द वेक ' हिंदी मासिक पत्रिका के ज्योतिषाचार्य टी पी तिवारी जी ( पहले भी दो बार अमरनाथ की यात्रा कर चुके है) ने जब सुना कि हम लोग अमरनाथ यात्रा पर जाने की तैयारी में है तो उन्होंने तीसरी बार हम लोगो के साथ जाने का मन बना लिया । उनकी तैयारी ने हम लोगो में उत्साह भर दिया क्योंकिं वे हम लोगो के लिए एक अच्छे गाईड सिद्ध होने वाले थे । हमारी तैयारी अपनी रफ़्तार से चल रही थी इधर हमारे श्रीमान मनोज त्रिवेदी जी ने सोचा की जब जाने का समय आएगा तब वे अपनी टिकिट वी आई पी से करवा कर हम लोगो के साथ चले जायेंगे लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था
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एक सुनसान होटल में चाय बनाते सहयोगी |
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रामबन के पास चिनाव नदी के किनारे
जाम के दौरान का एक दृश्य |
ऍन वक्त पर उनके मेनेजर की माता जी का स्वर्गवास हो गया जिस कारण उनका जाना स्थगित हो गया । आरम्भ में सबको लगा की शायद हम अपनी टिकिट कैंसल करा ले लेकिन जब हमारे निर्णय की गंभीरता देखी तो सबने हथियार डाल दिए
और इस तरह हम एक दुर्गम यात्रा की तरफ बढ़ निकले । इस ट्रिप में तीस लोग थे कुछ स्लीपर में तो कुछ ए सी थ्री में तो कुछ एसी टू में। ट्रेन ने जब स्टेशन छोड़ा तब हमने अपने केबिन में देखा की कौन लोग हमारे सहयात्री है क्योंकि उससे पहले हम साथ जाने वाले लोगो के साथ स्टेशन पर ही व्यस्त थे । सहयात्रियों से बातचीत के दौरान पता चला की वे सभी जम्मू कश्मीर की यात्रा पर है । उनमे से एक दो को छोड़कर बाकि के सारे लोग श्री अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले है । मन को बड़ा सुकून मिला की हम अकेले नहीं है इस जोखिम भरी यात्रा के राहगीर ।ट्रेवेल एजेंट का इंतजाम काफी अच्छा था ,खाने पीने की कोई तकलीफ नहीं हुयी । सहयात्री भी सही थे इसलिए सफ़र आसानी से कट गया । ट्रेन निश्चित समय से चार घंटे लेट जम्मू पहुंची हम लोग साढ़े बारह बजे जम्मू स्टेशन पर उतरे । वहा की गर्मी की प्रचंडता ने दिमाग ख़राब कर दिया ।हम लोग जो दस महीने कोलकाता की गर्मी को कोसते है सोचने पर मजबूर हो गए की जम्मू कितना गरम है । ट्रेन लेट नहीं होती तो पूरा दिन हम जम्मू में गुजारते और पूरा जम्मू आराम से घूम लेते किन्तु देर से पहुचने के कारण खाना खाते
पीते दिन का दो बज गया । बाहर गर्मी
अपने पू रे यौवन पर थी । हम लोगो की हिम्मत नहीं हुयी की हम लोग बाहर जाकर घूम सके । दिन के साढ़े चार बजे हम लोग होटल से बाहर आये और ऑटो कर के घुमने निकले । ऑटो वाले ने साढ़े तीन सौ रूपये प्रत्येक ऑटो के अनुसार लिए । इस तरह तीन ऑटो में सवार होकर हम लोगो ने जम्मू घूमा । लेकिन जम्मू घूमने में मजा नहीं आ रहा था । आँखों के सामने अमरनाथ और कश्मीर की सुन्दरता नाच रही थी । एक ऐसी दुनियां जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । कश्मीर की खबरे और प्राकृतिक सुन्दरता सिर्फ अखबारों तक ही सीमित रहती । कश्मीर का नाम आते ही वंहा के दंगे -फसाद आतंकवादी ,अलगाववादी सभी डराने लगते और कश्मीर जाने की योजना कल्पना मात्र बनकर रह जाती । श्री अमरनाथ यात्रा के समय वंहा सुरक्षा का अतिरिक्त बंदोबस्त होता है.अतः तीर्थ यात्री या पर्यटक सभी सुरक्षित रहते है । इतनी सुरक्षा के बाद भी आतंकवादी अपने मंसूबो को पूरा करने में कामयाब हो जाते है । एक दिन जम्मू में रूककर हम लोग दुसरे दिन सुबह साढ़े पञ्च बजे तीन टेम्पो travelor में सभी बैठ कर पहलगाम के लिए रवाना हो गए । अभी कुछ ही दूर गए थे की एक पुलिस वाले ने गाड़ी रोक दी और बाइपास से जाने को कहा । जब बाइपास पहुंचे ( उधमपुर से पाँच किलोमीटर पहले ) तो वंहा काफी जाम लगा था । पता चला की रामबन के पास भुस्खंलन ( लैंड -स्लाइड ) हुआ है इसी कारण यात्रा बाधित हो रही है । सर पर चढ़ता हुआ सूरज और दूर -दूर तक आबादी का कोई नामो - निशान नजर नहीं आ रहा था नजर आ रही थी तो सिर्फ ट्राफिक पुलिस और जाम में लोग । थोड़ी देर इधर -उधर भटकने के बाद पता चला की दो किलोमीटर की दूरी पर एक होटल है । ये सुनना था की हम नौ लोगो की टीम जो एक टेम्पो traveler में बैठी हुयी थी होटल की दिशा में पैदल ही चल दी । वंहा पहुचे तो देखा की राजकुमार घोष जो की हमारे साथ ही इस यात्रा में शामिल थे हमलोगों से पहले पहुँच कर उस सूनसान होटल में मैगी बना रहे है. । हम लोगो ने उन्हें चिढाते हुए कहा की आपने इस होटल का चार्ज कब से सम्हाल लिया है । उन्होंने भी हँसते हुए जवाब दिया की इस होटल वाले को मैगी बनाना नहीं आता अतः हम आप लोगो के लिए मैगी बना रहे है । उन्होंने बड़े प्रेम से हम लोगो को मैगी बना कर खिलाई और साथ में बढ़िया सी चाय बना कर दी। हंसी -मजाक के दौरान तीन चार घंटे आसानी से कट गए । जैसे ही खबर मिली की दूसरा रास्ता जो शहर से होकर जाता है खुल गया है ।हम सभी आनन-फानन अपनी गाड़ियों में बैठ गए । जैसे ही गाड़ी कुछ आगे बढीं की रस्ते में तैनात पुलिस ट्राफिक ने फिर से रोकने की कोशिश की तो उससे बहाना बना दिया की हम लोग उधमपुर स्टेशन ट्रेन पकड़ने के लिए जा रहे है ।हम लोगो का बहाना काम कर गया किन्तु जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे ही जाम में फंस रहे थे । गाड़ी चलने की जगह रेंग रही थी । रात गहराने के साथ ही पहलगाम देखने की उत्सुकता मन में दफ़न होने लगी क्योकिं योजना के मुताबिक बीस जुलाई को ही हम लोगो को शेषनाग झील के लिए रवाना होना था मेरी उदासी देखकर टी पी तीवारी सर ने समझाते हुए कहा की पहलगाम का बहुत बड़ा हिस्सा हम लोग चन्दन बड़ी जाते समय देख लेंगे ।
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चिनाव नदी के किनारे |
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A view of Chenav river |
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पहलगाम में ,होटल आईलेंड के बाहर |
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पहलगाम
Road of Pahalgam , full of scenic beauty |
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पहलगाम में लिद्दर नदी
Beautiful view of Pahalgam Garden |
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चन्दन बाडी से पिस्सू टॉप की ओर जाते तीर्थयात्री |
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लिद्दर नदी के ऊपर जमी हुयी बरफ |
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Lidder river goes along on the way of Pissu top |
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Langar in Pissu top |
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Descending from the horse at Pissu top |
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Resting in a langar of Pissu top |
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It's very hard to track. |
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being exhausted unable to climb. |
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A wooden old narrow bridge ,which everyone has to cross on foot. horses are not allowed, It's very risky. |
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In a camp of Sheshnag Jheel |
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At the gate of Sheshnag jheel's camp. |
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Mahagunas Parvat. |
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अभी तो काफी चलना है । |
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पहाड़ों के बीच से गुजरती लिद्दर नदी |
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शेषनाग झील के पास |
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शेषनाग झील |
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पंचतारनी के रास्ते पर श्रद्धालु |
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महागुनस पर्वत , समुद्रतल से 14900 फीट की ऊंचाई पर
( गणेश पर्वत, यहाँ शिव जी ने गणेश भगवन को छोड़ा था ) |
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अचानक बर्फ टूटने से पानी में फंसे दो घोड़े,
जिन्हें निकालने की कोशिश करते लोग । |
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पंच्तारनी में भंडारा |
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Near the bank of Panchtarani river. Which called Sangam |
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A photo session with BSF soldiers & journalist of Panjab. |
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A moment of heavy relief . At Baltal Camp. |