Sunday 30 October 2011

गंगा तू बहती है क्यों ?

गंगा तू बहती है क्यों ?

गायक भूपेंद्र हजारिका का गाना 'गंगा  बहती  हो  क्यों '?मीठी- मीठी आवाज किन्तु  एक सवाल के साथ गंगा तू बहती है क्यों ? ठीक ही तो है जिस देश में इतनी बेकदरी हो उस देश में बह कर क्या करना .  जंहा  तेरा पानी अमृत बन कर बहता था लोगो में जान फूकता था आज वहा माँ गंगे तेरा पानी विषाक्त हो गया है उसमे समां गए है अनेक जहरीले रसायन जिनके नाम जुबान पर लाने से लगता है की पूरी की पूरी जुबान कडवी हो गयी लेकिन तू समस्त विषाक्त पदार्थो को अपने में समेटे अभी भी अविरल गति से बह रही है .अपने तटों पर रहने वालो को अबाध निर्बाध जीवन देने वाली गंगे कभी तुने सोचा है की मानव कितना स्वार्थी हो गया है ,महज अपने  उद्देश्य की पूर्ति के लिए  वो किसी भी हद तक तुम्हारे जल को दूषित कर सकता है 
गंगा के किनारे भक्तो की भीड़ 

बिना ये विचारे की आने वाले समय में उसके अपने बच्चे पानी की किल्लत को झेलेंगे .वो भी जब मरणासन्न पड़ा होगा और मुक्ति के लिए गंगाजल चाहेगा तब उसके मुंह में गंगाजल की जगह दूषित हुयी गंगा का गन्दा जल डाला जायेगा. 
 गंगोत्री में गंगा जल की बोतलों को सील कराते भक्त .


लेकिन हमें तुमसे शिकायत है क्योकि जब कभी भी तुम अपना कोप दिखाती हो वो निरीह और बेकसूर लोगो पर ही होता है अगर सबक सिखाना चाहती हो तो उन्हें सिखाओ जो तुम्हारे तट पर उद्योग लगाने के लिए उद्योगपतियों को  लाइसेंस देते है या उन उद्योगपतियों को जो तुम्हारे किनारे अपने उद्योगों को लगा कर तुम्हारे
 अस्तित्व व् पवित्रता के साथ खिलवाड़ कर रहे है . .या नगरपालिका वालो को जो पुरे शहर की गन्दगी तुम्हारे सुपुर्द कर चैन की नींद सो रहे है .या उन वैज्ञानिको को जो दैनिक नई योजनाओ को जन्म देकर तुम्हारे जल को रोकने का निरंतर प्रयास कर रहे है .ऐसा लगता है की इन लोगो की आस्था तुम्हारे अन्दर न होकर मुनाफा कमाने में ज्यादा है .यही वजह है की जितने धार्मिक या दर्शनीय स्थल है वहा पर मोटे मोटे अक्षरों में लिख दिया जाता है कि पोलीथिन या प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध है .लेकिन भक्तो को प्रसाद पोलीथिन में ही दिया जाता है ,वहा स्थित दुकानों में रंगीन चमकदार प्लास्टिक पैकेट्स में खाद्य पदार्थो कि बिक्री आम बात है लेकिन जब इनमे समाया खाद्य ख़त्म हो जाता है तब उन्हें तुम्हारे सुपुर्द कर पर्यटक अपने कार्य कि इतिश्री समझ लेते है .बिना ये सोचे कि उनकी ये हरकत जल में समाये   जीव- जन्तुओ के लिए प्राण घातक है .

गंगा के बिना इनका अस्तित्व क्या .


और तो और तुम्हारे तटों पर  शवदाह कि प्रक्रिया भी निरंतर चलती रहती है ,इस प्रक्रिया के अंतर्गत बचने वाली राख और हड्डियों को भी तुम्हारे जल में मोक्ष पाने कि कामना के साथ विसर्जित कर दिया जाता है .अब तुम्ही बताओ इन दुतरफा नीतियों का क्या करना चाहिए .सच तो ये है माँ गंगे तुम्हारी दुर्गति पर बहुत तरस आता है , याद आता है वो  समय  जब राजा सागर के पौत्र भागीरथ कपिल मुनि द्वारा भस्म किये गए अपने ६०,०००  पूर्वजो का उद्धार करवाने के लिए कड़ी तपस्या कर तुम्हे पृथ्वी पर लाये थे कहा एक समय ये है जब अपना उद्धार करवाने के लिए तुम स्वयम किसी भागीरथ की प्रतीक्षा कर रही हो .
गंगोत्री के किनारे लेखिका  शकुन त्रिवेदी 

 4  नवम्बर 2008 को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया , गंगा को कैसे प्रदुषण से बचाना है उसके लिए अनेक संस्थाओ का गठन भी हो गया किन्तु जो योजनाये बनी उनपर सुचारू रूप से अमल नहीं किया गया .परिणाम  करोडो रूपये की राशी गंगा को प्रदुषण रहित बनाने के नाम पर आवंटित तो हुयी किन्तु  गंगा ज्यो की त्यों मैली ही रही .