Monday 19 March 2012

Naked dance for food.

  और कितना गिर सकते है.
अंडमान निकोबार भारत का  वो हिस्सा है जिसे ब्रिटिश काल में काला पानी की सजा के लिए याद किया जाता था और आज  भी सेलुलर जेल  और क्रन्तिकारी वीर सावरकर के लिए जाना जाता है . अचानक ब्रिटिश  समाचार पत्र    ११ , जनवरी २०१२,  ओब्सर्वर में  छपी    खबर 'नेकेड डांस फार फ़ूड ' ह्यूमन सफारी और 'ह्युमन जू 'ने फिर से अंडमान निकोबार को चर्चा में ला दिया है . इस बार चर्चा का विषय था जरावा आदिवासी, जो भारत की प्राचीन सभ्यता का अनन्य अंग है और इस अनन्य अंग का तमाशा बना दिया कुछ स्वार्थी ,धन लोभी तत्वों ने .जरावा आदिवासी जो अपने को ग्रामीण व् शहरी सभ्यता  से दूर रखते   थे , अचानक उनके जीवन में परिवर्तन आया और उस परिवर्तन का कारण बना  उनके क्षेत्र   से गुजरने वाला हाईवे .जरावस अपने घने जंगलो से निकल कर  सड़क पर गुजरने वाले वाहनों को रोककर खाने की वस्तु या तमाखू मांगते   ,( जरावस का खाना सुअर ,नारियल ,शहद ,केला आदि ) जबकि उस क्षेत्र में जाना कानूनन जुर्म है   ,परन्तु  जंहा लालच है वहा कानून मायने नहीं रखता . नतीजा   उनके बाहर आने  का क्रम बढ़ना शुरू हुआ जो वहा से गुजरने वालो के लिए किसी   अजूबे से कम नहीं लगता था .बस वही से आरम्भ होगया उनके  नग्न  और अर्धनग्न नृत्य को देखने वाले पर्यटकों के आवागमन का .उस रास्ते पर तैनात सुरक्षाकर्मी या उस क्षेत्र के पुलिस कर्मी जो पर्यटकों से भारी रकम लेकर जारवास के भोलेपन का फायदा उठाते और आगे भी उठाते रहते अगर ब्रिटिश पेपर  आब्सर्वर और गार्जियन भारत सरकार को सूचित न करते और अपनी सुचना के साथ ही इन आदिवासियों के नग्न-अर्धनग्न  वीडियो क्लिप नेट पर डालकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी न करवाते तो शायद सोती हुयी सरकार और समाज को पता ही नहीं चलता की हमारे बीच कुछ धनलोभी आदिवासियों की अज्ञानता का फायदा उठा रहे है .ये हम भारतीयों के लिए  शर्म की बात है की लन्दन में स्थित संस्था 'सर्वाइवल' आदिवासियों के हितो की रक्षा के लिए कार्य करती है .उनको शोषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाती है और अपील करती है की जरावा जाने वाले रस्ते को बंद किया जाना चाहिए ,साथ ही उनकी जमीन को बाहरी लोगो के अधिग्रहण से बचाना  चाहिए .उनकी अपील पर ध्यान देते हुए सर्वोच्च कोर्ट ने २००२ में अपने फैसले को सुनाते हुए उस रस्ते को बंद करने के लिए कहा .किन्तु कुछ  धन -लोलुप  लोगो ने इसे हवा में उड़ाते हुए जरावस की अज्ञानता ,नग्नता और भुखमरी को कमाई का जरिया बना लिया .खाने का सामान देने के बहाने उनके करीब जाना और उन्हें इसी अवस्था में नचवाना उन्हें इतना रस आया की इसके लिए क्या देशी क्या विदेशी जो भी मोटी रकम  थमाता  उसे उनके बीच पंहुचा देते बिना ये सोचे की वे जो कर रहे है उससे उनके देश की गरिमा को कितनी ठेस पहुंचेगीं . अफ़सोस इस पर   आलोचना करना तो दूर देश के ठेकेदारों ने इस पर चर्चा करना भी उचित नहीं समझा .मीडिया ने भी आया राम ,गया राम की तर्ज पर इससे मुंह मोड़ लिया .क्योकिं इन आदिवासियों के पास न तो देने के लिए पैसा है और न ही इनका वोट.जबकि आज की इस तेज रफ़्तार वाले समय में एक हाथ लेना और एक हाथ देने का चलन है.फिर हम कैसे उम्मीद कर सकते है की हमारे नेता ,अफसर ,या समाजसुधारक इनके विषय में सोचेंगे .सोचा है तो सिर्फ और सिर्फ कोर्ट ने जिसने   इनके जिस्म की नुमाइश को सख्ती से रोका है. 

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