Saturday 9 June 2012

आवश्यकता है चुनौती स्वीकारने की


हम न्यू मार्केट में सुन्दर सजाने लायक आकर्षक वास्तु खोज रहे थे किन्तु परेशानी ये थी की चारो तरफ अत्यंत आकर्षक वस्तुओं से सजा मार्केट हमें भ्रमित कर रहा था की हम ले तो क्या ले । आकर्षक गणेश की मूर्ति हो या राधाकृष्ण या कोई अन्य शोपीस ,जिधर भी निगाह जाती वही  टिकी रह जाती ।हर वस्तु अपने आप में अनमोल ,अनूठी लग रही थी ,दाम भी कुछ खास नहीं थे । हमें आश्चर्य हो रहा था की चीन ने न्यूनतम दाम से लेकर अधिक दाम तक कितनी खुबसूरत वस्तुओं का निर्माण कर डाला । चाहे वो सस्ते दाम के मोबाइल हो या डेढ़ सौ रूपये में बिकने वाले फेंसी बैग । 75 -125 में घडी ,फूलदान हो 45 रूपये में  बच्चों के लिए आकर्षक खिलोने पानी की बोतल, कलर पेन्सिल ,चूड़ी और न जाने क्या -क्या । यहाँ तक कि  हिन्दू देवी -देवताओं की मूर्तियाँ तक इतनी सजीव बनायीं की कोई भी उन्हें खरीदने के लोभ को संवरण नहीं कर पायेगा । चीन की कारीगरी और सस्ते में मॉल मुहैया  कराने  की चेष्टा ने मन मोह लिया किन्तु साथ ही एक सवाल खड़ा कर दिया ,क्या चीन भारतीय लघु उद्योग को ख़त्म कर रहा है ,क्या चीन की भारतीय बाजार पर पकड़ भारत की आर्थिक व्यवस्था पर चोट है। अगर चोट है तो हम कर क्या रहे है। क्या हम 1962 के युद्ध को भूल गए वो भी तब जब भारतीय हिंदी -चीनी भाई -भाई का सुर अलाप रहे थे और चीन भारत की भूमि पर काबिज हो रहा था ।आज भी हम चीन की नियत को समझ नहीं प् रहे है की वो भारत को बर्बाद करने की कोशिश कर रहा है । भारत को चारो तरफ से घेरने की उसकी मंशा को हम जानबूझकर अनदेखा कर रहे है । आज भी चीन को हम भारतीय अपना हितैषी समझे हुए है ,और यही वजह है की दिन -प्रतिदिन चीन के मॉल को भारत के बाजार में उतरना और चीन की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चीन के प्रति हमदर्दी ही है । अगर चीन के प्रति हमदर्दी नहीं होती तो हम स्वदेशी जागरण की भावना को  दरकिनार कैसे कर सकते है । उस स्वदेशी जागरण की भावना को जिसने भारत की आजादी में अहम् भूमिका निभाई थी ।कैसे भूल सकते है हम गाँधी जी के चरखे को । विदेशी कपड़ो को जलाकर खाक में मिलाने के सशक्त कदम को । वो भी तो सुन्दर थे किन्तु स्वदेशी जागरण की भावना के आगे उनकी सुन्दरता देशभक्तों को बांध नहीं पाई । जो गौरव और संतुष्टि स्वयम निर्मित वस्त्र पहनने से मिली उसके आगे ब्रिटिश के आधुनिक कपडे भी फीके पड़  गए ।आज फिर से प्रत्येक भारतीय के सामने चुनौती है अपने देश की आर्थिक स्थिति  सुधारने  की जिसे हम अपने देश में निर्मित वस्तुओ को खरीद कर सुधार सकते है  और लघु उद्दमियों को व्यवसाय से सम्बंधित चुनौतियों को स्वीकारने की ,चाहे वो नयी तकनीक वाली मशीने खरीद कर चीन से बेहतर सामान बाजार में उतारने की हो या चीन की जमीं पर जाकर उसके बाजार में अपनी पकड़ बनाने की हो । जैसे भी हो अगर चीन को  करारा  जवाब देना  है तो उसे उसी के तरीके से देना होगा अन्यथा उसके सामान को अपने बाजार में वरीयता देने का मतलब भारत के साथ  धोखा है जिसे   हमारे देश के अनेक कर्णधार और  उपभोक्ता जाने -अनजाने में अनदेखा कर रहे है ।