Shakun Trivedi
Miles to go before I sleep.
Monday 4 May 2020
Shakun Trivedi : गंगटोक जाये और नाथुला न जाये....
Shakun Trivedi : गंगटोक जाये और नाथुला न जाये....: २७ मई से ४जून 2019 गैंगटोक जाएं और नाथुला न जाए तो समझिए आपका जाना व्यर्थ, इसलिए नहीं कि नाथुला कोई तीर्थ स्थल है वरन इ...
गंगटोक जाये और नाथुला न जाये....
२७ मई से ४जून 2019
गैंगटोक जाएं और नाथुला न जाए तो समझिए आपका जाना व्यर्थ, इसलिए नहीं कि नाथुला कोई तीर्थ स्थल है वरन इसलिए की नाथुला लगभग 15,000 की ऊंचाइयों पर स्थित इंडो - चाइना बार्डर है , जहां भारतीय सैनिक बारहों महीने सर्दी, गर्मी , बरसात में हमारे देश को चाइना की बुरी नजर से बचाते है , उनकी साजिशों को नाकाम करते है, कड़कड़ाती ठंड में भी बंकरों में बैठ कर गश्त देते है। और सबसे बड़ी बात कि वहां का तापमान हमेशा माई नेस पर रहता है और खबरों में छाया रहने वाला अत्यधिक विवादित स्थल डोकलाम नाथुला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है।
हम लोगो ने भी जब गंगटोक घूमने की योजना बनाई तो नाथुला को सबसे पहले प्राथमिकता दी। उसके बाद जोर - शोर से गूगल पर सीट आरक्षित कराने के लिए फास्ट ट्रेनों की वर्तमान स्थिति पर युद्ध स्तर पर सर्च जारी कर दी। चूंकि मई महीने का अंतिम चरण और बच्चों के स्कूल बंद होने के कारण सारी ट्रेनें पहले से ही आरक्षित हो चुकी थी। एक स्पेशल ट्रेन जो रात में जलपाई गुड़ी पहुंचती उसमे सी टे खाली थी परंतु यहां समस्या थी अपने दो प्यारे सदस्यों भोली और दृष्टा को ले जाने की क्योंकि उन्हें किसी के भरोसे छोड़ कर जा नहीं सकते थे और ट्रेन में ले जाना उनके लिए बहुत कष्टकारी होता। अतः हम लोगों ने टेंपो ट्रैवलर कोलकाता से गंगटोक जाने और गंगटोक से कोलकाता वापसी तक के लिए बुक कर ली। अब हमारी 13 लोगो की ब्रिगेड जिसमें भोली व दृष्टा ( लेब्रा ) भी थी 28 मई को दिन के ठीक 12 बजे सवार होकर चल दी। खराब रास्ता और प्रचंड गर्मी ने ऐसी की हवा निकाल दी। जैसे तैसे दूसरे दिन प्रातः 5 बजे हम लोग सिलीगुड़ी पहुंच गए। वहां पहुंच कर राहत की सांस ली कि चलो अब अपने लक्ष्य से ज्यादा दूर नहीं। धूल धूसरित उनिंदा सिलीगुड़ी छोड़कर जैसे ही गंगटोक के रास्ते को पकड़ा हरी तिमा लिए हुए पहाड़ों ने स्वागत किया। गंगटोक मार्ग के प्रवेश द्वार के पास ही भ्रामरी देवी ( त्रिसोत्रा) मंदिर है और ये 52 शक्तिपीठों में से एक है। किन्तु प्रातः 5.30 मंदिर खुलने का समय न होने के कारण हम लोग दर्शन से वंचित हो गए। ये पीड़ा हृदय में जगह बनाती की उससे पहले लंबी लंबी उछाल मारती तीस्ता नदी के ऊपर बना बहुत ही आकर्षक कोरोनेशन ब्रिज पड़ा इसी ब्रिज के बगल से गंगटोक जाने का रास्ता है ब्रिज के ऊपर से असम जाने का मार्ग है। अब तक हम लोगो की थकान पूर्ण रूप से गायब हो चुकी थी। तीस्ता नदी उछाले मारती हुई अब हमारे साथ साथ चल रही थी। पहाड़ों का मनोरम स्वरूप और तीस्ता की अठखेलियां हम लोगो के आकर्षण का केंद्र थी। समुद्री तल से लगभग 6, 000( छः हजार ) फीट की ऊंचाई पर स्थित गंगटोक पहुंचने में हम लोगो को लगभग 5 ( पांच) घंटे लग गए परन्तु प्रकृति के दिव्य रूप ने हम सभी को अभिभूत कर रखा था।
गंगटोक में बाहर की गाड़ियां शहर के अंदर नहीं जा सकती उन्हें बाहर की गाड़ियों के लिए बनाए गए चार तल्ले के पार्किंग जोन में अपनी गाड़ी खड़ी करनी होती है। हम लोगो ने वहां से टैक्सी पकड़ी और मुख्य मार्केट में स्थित होटल डेंजोंग में आ गए ये तीन बड़े कमरों एक हॉल और किचेन के साथ सूट था। जिसे आर के हांडा जी ( सिक्किम के पूर्व डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस) ने मेरे आग्रह पर की छुट्टियों के सीजन में कोई भी होटल हमे अपने यहां कुत्तों को देखकर जगह नहीं देगा। व्यवस्था करवाई थी। होटल की बड़ी बड़ी खिड़कियों से ऊंचे ऊंचे पहाड़ों की सुंदरता अद्भुत दिखती थी।
गंगटोक के मालरोड का बहुत नाम है, अतः शाम के समय हम लोगो ने माल रोड पर जाकर खरीददारी करने की सोची और बेटों ने नाथुला जाने के लिए ट्रैवल एजेंटों से बात करने की। परन्तु इतना तेज पानी बरसने लगा कि खरीददारी की सारी योजना तीव्र गति से बरसते पानी में बह गई। बेटों ने बताया कि ट्रैवल एजेंट बता रहा है कि भोली ,दृष्टा कुत्ते होने के कारण नहीं जा सकते। और नाथुला परमिट के लिए 3हजार पर गाड़ी का लेगा। एक बार फिर से नाथुला योजना धूमिल होती दिखने लगी। हमने फिर से हांडा जी से बात की और समस्या बताई उन्होंने कोलकाता में बैठ कर ही हमारी समस्या का निदान कर दिया। और 30 - 31 मई गंगटोक घूमने के बाद 1 जून को हम लोग नाथुला के लिए रवाना हो गए। हमें बहुत ही खुशी हो रही थी कि ऐसे दुर्गम स्थल पर मेरे प्यारे बच्चे भोली दृष्टा मेरे साथ है। जाने वालों की काफी भीड़ थी लेकिन उनमें से अधिकतर छंगू लेक और बाबा मंदिर जाने वालों की थी। अभी हम लोग जी भर कर खुश भी नहीं हो पाए कि पता चला कि इस तंग रास्ते में एक गाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त हो जाने के कारण लंबा जाम लग गया है। वैसे भी पहाड़ी रास्ते में अक्सर हिम स्खलन होने के चलते जाम लग जाता है।
जाम में अटकी गाड़ियों की लम्बी लाइन |
गंगटोक में भुट्टे ( Maize n popcorn ) पॉपकॉर्न बहुत मिलते है. टाइम पास करने के लिए सभी लोग इन्हे खरीद रहे थे। हम लोग भी देर होती देख गाड़ी से उतर कर भोली, दृष्टा को घुमाने लगे। उन्हें देखने के लिए उनके साथ फोटो खींच वाने के लिए कई बच्चे व बड़े उनके पास आ गए। अब तक जाम खुल चुका था सभी गाड़ी में बैठ कर उत्साहित मन के साथ जल्दी से जल्दी नाथुला पहुंचना चाह रहे थे। नाथुला से लगभग कुछ किलोमीटर पहले ही छोटी छोटी दुकानें थी जिनमें मैगी, मोमो, ब्रेड आमलेट आदि मिल रहा था साथ ही 100 रुपए प्रति भाड़े पर ऊनी कपड़े एवम् जूते। उस छोटी सी दुकान की खिड़की से ऊंचे - ऊंचे पहाड़ नजर आ रहे थे और एक पहाड़ी से गिरने वाला झरना अत्यंत मोहक लग रहा था हम लोगो ने बिना समय गंवाए उस सुंदरता को अपने कैमरे के हवाले कर दिया।
नाथुला के रास्ते में पड़ने वाला बाजार |
वहां से निकल कर सीधे हम लोग नाथुला पहुंचे। नाथुला पहुंचते ही मयनेस डिग्री टेंप्रेचर ने हम लोगों का स्वागत किया सर भारी लगने लगा लेकिन उस एहसास को हमने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया क्योंकि हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारा शरीर अनुभव करने लगता है। अब हम सभी लोग इत्मीनान के साथ उस जगह जा रहे थे जहां भारत और चाइना गेट आमने सामने है और उसे देखने के लिए वहां पहुंचने वाला प्रत्येक पर्यटक बेताब रहता है। रास्ते में बहुत सारे पर्यटक चढ़ाई चढ़ रहे थे अधिकतर लोग कपूर रुमाल में लेकर बार - बार उसे सूंघते ताकि आक्सीजन की कमी शरीर में न हो जबकि कपूर सूंघने से कुछ समय के लिए राहत मिल जाएगी परन्तु बाद में ये शरीर को नुक्सान पहुंचाता है। बहुत से पर्यटकों के चेहरे पर पहाड़ों की ऊंचाई का डर नजर आ रहा था। तो कुछ कम उम्र के युवा बरफ में उतर कर फोटो खिचा रहे थे। गेट के पास पहुंचने पर देखा कि सारे पर्यटक भारतीय है। ये देखकर हमसे रहा नहीं गया और हमने वहां खड़े फौजी से सवाल किया कि चाईनीज पर्यटक क्यों नहीं दिख रहे है इस पर उसने जवाब दिया कि चाइना के निवासी बहुत कम नाथुला देखने आते है। लगभग 25 मिनट रुकने के बाद हम लोगो ने वापसी की तो देखा एक फौजी नाथुला घूमने वालों को सिग्नेचर किए हुए सर्टिफिकेट रुपए 70 लेकर दे रहा हैं और 250 का जय जवान वाला कप जिस पर नाथुला गेट की पिक्चर छपी हुई थी। हम लोगो ने भी सर्टिफिकेट और कप लिया और केंटीन में काफी पीने बैठ गए। वहां हमारी मुलाकात एक लेफ्टिनेंट से हुई ,उसने बताया कि जब उसकी पोस्टिंग यहां हुई थी तो एक महीने तक दोनों समय मैगी खाकर काम चलाया। फोन काम नहीं करता किसी घरवाले से बात नहीं, टीवी, रेडियो कुछ भी नहीं मै लगभग पागल हो गया था। उससे डोकलाम विवाद के बारे में पूछने पर उसने कहां कि ये चीनी लोग बहुत बदमाश होते है जब तक इन्हे सभ्यता दिखाओ ये सर पर चढ़ते है जब हम लोगो ने इन्हे पीट दिया तो सुधर गए। हमने उससे दूसरा सवाल किया कि तुम लेफ्टिनेंट हो और भी आर्मी अफसर होंगे। उसने जवाब दिया कि हां किन्तु यहां किसी को भी अपने रैंक को लगाकर रहने की इजाजत नहीं है। फिर पूछने पर की इस सुनसान स्थल पर मन लगाने की कुछ तो व्यवस्था की होगी तो उसने कहा हम लोग ऐसे ही खुश रहते है। हमने सवाल किया कि यहां सैकड़ों पर्यटक आते है वे कुछ न कुछ सवाल भी करते होंगे कुछ ऐसे सवाल बताइए जो खीझ उत्पन्न करते हो। इस पर वो बोला आने वाले पर्यटक अधिकतर पूछते है कि चाइना गेट पर इतने झंडे लगे है जबकि भारत के गेट पर एक भी नहीं? अब उन्हें कौन समझाए कि चाइना का द्वार भारत के द्वार से कुछ उचाई पर है और हम लोग चाइना के नीचे । अपने झंडे लगाकर क्या अपने को चाइना से छोटा बताएंगे। कभी कोई पूछेगा अच्छा बताइए लेह लद्दाख की ऊंचाई कितनी है ? अब उन्हें कौन समझाए कि हम गूगल नहीं है, तुम हमसे नाथुला के बारे में पूछो। ऐसे सैकड़ों प्रश्न किए जाते है जिनका कोई सिर पैर नहीं होता।
नाथुला में पृकृति के बीच फोटो सेशन करवाते हुए |
जैसे ही उतरने के लिए आगे बढ़े तो पूछा आप लोगों ने यहां की फोटो नहीं खींची इस पर हमने जवाब दिया की आपके फौजियों ने ऊपर कैमरा लाने के लिए मना किया था। ये सुनकर वो हंसने लगे और बोले हम लोग तो मना करेगे कैमरा भी छीनेगे क्योंकि आप लोग यहां की फोटो सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते हो जिसकी यहां सख्ती से मनाही है।लेकिन बाद में कैमरा दे देते है। उसने अपने मोबाइल से हम लोगो की कई फोटो खींची सेल्फी ली और मेरा नंबर भी ताकि वो हमें व्हाट्सअप पर भेज सके। हम लोगो ने सोचा कि इसने हम लोगो की फोटो खींच कर हम सबको पोपट बनाया है किन्तु खुशी तब हुई जब उसने 15 दिन बाद हमें पिक्स भेज दी। एक बात जो हमें अच्छी लगी कि वो हमसे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गया था इस लिए मुझे मां कह कर संबोधित कर रहा था और हमें एक फौजी बेटे की मां बनने का गर्व महसूस हो रहा था।
रास्ते में मनोरंजक इश्तिहार |
भोली -दृष्टा नाथुला में |
एक पारिवारिक छवि वनस्पति रहित नाथूला दर्रा 15000 फीट की ऊंचाई पर |
Saturday 2 May 2020
Shakun Trivedi : भारत गूंगा नहीं
Shakun Trivedi : भारत गूंगा नहीं: 27 अगस्त 2019 के टेलीग्राफ में एक छोटी सी खबर " अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का वक्तव्य " ही ( नरेंद्र मोदी ) एक्चुअली स्पीक्स...
Shakun Trivedi : भारत गूंगा नहीं
Shakun Trivedi : भारत गूंगा नहीं: 27 अगस्त 2019 के टेलीग्राफ में एक छोटी सी खबर " अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का वक्तव्य " ही ( नरेंद्र मोदी ) एक्चुअली स्पीक्स...
भारत गूंगा नहीं
27 अगस्त 2019 के टेलीग्राफ में एक छोटी सी खबर " अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का वक्तव्य " ही ( नरेंद्र मोदी ) एक्चुअली स्पीक्स वेरी गुड इंग्लिश, ही जस्ट डस नॉट वांट टू टॉक" पढ़ी तो बहुत ही खुशी हुई क्योंकि मोदी को हिंदी में बोलते देख अक्सर अंग्रेजी प्रेमी मोदी के अंग्रेजी न जानने पर सवाल उठाते थे, हिंदी में मोदी के संबोधन, उद्बोधन को मोदी की मज़बूरी बताते थे और उनका अंग्रेजी में ज्ञान न होना उनके अपूर्ण व्यक्तित्व की पहचान बताते थे। लेकिन वे तथाकथित अंग्रेज ये भूल जाते है की जिस अंग्रेजी को वो स्मार्टनेस की निशानी समझ खुद को हाई - फाई समझ कर गौरवान्वित हो रहे है वो उधार ली हुई भाषा है ना कि आपको अपने देश की जड़ों से जोड़ने वाली, संस्कृति से परिचय कराने वाली, अपने देश का मान - सम्मान बढ़ाने वाली भाषा है। यूके में रहने वाली मेरी मित्र ने बताया था कि जब वो वहां गई थी तब उनके बच्चे छोटे थे और उन्हें अच्छी अंग्रेजी सिखाने के लिए वे घर में अंग्रेजी बोलते थे एक दिन उनकी बेटी स्कूल से बहुत नाराज़ अाई और बोली "ममा प्रत्येक देश की अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति होती है परन्तु हम भारतीयों के पास अपना कुछ भी नहीं है हम सपेरों के देश के है क्या यही हमारी पहचान है?" उसके बाद वहां रहने वाले भारतीयों ने ये निर्णय लिया कि हम लोग छुट्टी वाले दिन मंदिरों में अपने बच्चो को भाषा और तीज - त्योहार की जानकारी देंगे उन्हें वर्ष में एक बार भारत लाएंगे और उनके देश से मिलवाएंगे।
भाषा के प्रति सम्मान, समर्पण देखना है तो छोटे से देश नेपाल को देख कर सीखना चाहिए जहां अंग्रेजी सीखी जाती है व्यवसाय करने के लिए किन्तु आपस में बोलने के लिए, साहित्य लिखने के लिए, अपनी मातृ भाषा नेपाली को ही प्राथमिकता दी जाती है। सीखना है तो जर्मनी, जापान, चाइना से सीखना चाहिए जिन्होंने अंग्रेजी को महत्व न देकर अपनी मातृ भाषा को महत्व दिया। लेकिन हम देशवासियों की मज़बूरी की यहां रोजगार अंग्रेजी जानने वालों को मिलते है, मातृ भाषा में महारथ हासिल करने वाले को पिछड़ा के टैग से नवाजा जाता है। ये कहना कदापि गलत नहीं होगा कि आजादी के दशकों बाद भी हमारे राजनेताओं ने भाषा के आधार पर कभी भारत को एक नहीं होने दिया। जबकि गांधी जी ने स्वयं कहा था कि जिस देश की कोई भाषा नहीं होती वो देश गूंगा होता है। दक्षिण भारत ने भी सदैव हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाए जाने का विरोध किया यहां तक कि तमिल वासियों ने 2019 की नई शिक्षा नीति जिसमें हिंदी को बढ़ावा देने की बात है उसका विरोध किया और अंत में सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि हिंदी को थोपे न। संवैधानिक दृष्टि से हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं बन पा रही है ये दुख की बात है किन्तु मोदी जी ने जिस तरह से हिंदी का प्रचार - प्रसार किया है उसने ये साबित कर दिया कि भारत देश गूंगा नहीं है उसके पास अपनी भाषा है। उनकी हिंदी से प्रभावित होकर बराक ओबामा जय हनुमान जी बोलने लगे, मोदी है तो मुमकिन है कि तर्ज पर " ट्रंप है तो मुमकिन है" अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने अपना स्लोगन बना लिया। ये सब देख कर, सुन कर अधिकतर लोग गर्वित महसूस करते है कि अब हिंदी को आसमान छूने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन हिंदी से हिंग्लिश की ओर जाती भाषा पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा है जबकि इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो हम जिस हिंदी को जानते है समझते है उसका मूल स्वरूप ही बदल जाए और दिल मांगे मोर और ठंडा ठंडा कूल कूल हो जाए। अतः अकेले मोदी ही नहीं हम सबको प्रयास करना होगा हिंदी के वास्तविक स्वरूप को बचा के रखने की क्योंकि - निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल।
Thursday 30 April 2020
Shakun Trivedi : मोदी जी का सपना
Shakun Trivedi : मोदी जी का सपना: गैंगटॉक ( सिक्किम ) जाना हुआ , पहाड़ों की सुंदरता अकल्पनीय थी जगह -जगह पहाड़ों से बहते हुए झरने ,गहरी -गहरी खाई मन को वशीभूत करने क...
मोदी जी का सपना
गैंगटॉक ( सिक्किम ) जाना हुआ , पहाड़ों की सुंदरता अकल्पनीय थी जगह -जगह पहाड़ों से बहते हुए झरने ,गहरी -गहरी खाई मन को वशीभूत करने के लिए काफी थे किन्तु वहां की जिस बात ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो था वहां का नियम - कानून, वहां के लोगो का शांतिप्रिय स्वाभाव। टैक्सी चालक टैक्सी में गाने भी हल्की आवाज में सुनते ताकि किसी को परेशानी न हो । अपने शहर -गांव के प्रति समर्पण अपनी सभ्यता के प्रति निष्ठा और सबसे ज्यादा सराहनीय था वहां के लोगो द्वारा स्वछता के प्रति जुनून। वहां गंदगी फैलाना जुर्म है यहाँ तक की कोई भी कही भी गुटका -पान मसाला नहीं थूक सकता। कही भी कचरा नहीं फेक सकता। गाड़ी में बैठ कर चिप्स --बिस्किट -केक का स्वाद लेकर खाने वाले उसके रैपर या पानी की बोतलों को किसी पहाड़ या खाई में नहीं फेंक सकते। अधिकतर पर्यटक गंगटोक में नियम मान कर अपनी सज्जनता का परिचय देते है वही वे सिलीगुड़ी पहुंचते ही खुद को आजाद अनुभव कर जी भर कर कचरा फेंक ,पान -मसाले की पीक थूककर सिलीगुड़ी की सुंदरता में चार चाँद लगाना आरम्भ कर देते है। आश्चर्य तो ये देखकर होता है की अधिकतर पर्यटक शिक्षित होते है ,बड़े व्यवसायी या अफसर होते है लेकिन वे स्वच्छता जैसी बातों को महत्व क्यों नहीं देते । जहाँ तक गांवों की बात करे वहां के ज्यादातर लोग काम चलाऊ पढाई करते है किन्तु जिंदगी की बेसिक बातों को नजर अंदाज नहीं करते जिसमे खास कर अपने आस - पास की साफ -सफाई पर ध्यान देना। वे लोग अपने घरों को तो स्वच्छ रखते ही है बल्कि घर के सामने की गली को भी झाड़ कर साफ कर देते है ताकि रास्ता स्वच्छ दिखे। जबसे शिक्षा का स्वरुप महज डिग्री पा कर किसी ऊँचें संस्थान में नौकरी पाना हो गया है तबसे जीवन की अहम बातें गौड़ हो गयी है। ऊपर से नगरपालिका या टाउन एरिया ने सफाई की जबसे जिम्मेदारी उठा ली है तबसे प्रत्येक व्यक्ति सफाई के लिए नगर निगम कर्मचारी के ऊपर निर्भर रहने लगा है लेकिन मजे की बात ये है की उस कर्मचारी द्वारा की गयी सफाई भी बहुतों को रास नहीं आती जिसमे महिलाये भी अपना पूरा सहयोग देती है मसलन सफाई कर्मचारी बिल्डिंग के सामने जाकर सीटी बजाते है जिसका मतलब घर का कचरा उन्हें सौप दिया जाये परन्तु बहुत से ऐसे घर होते है जिनकी महिलाएं सफाई कर्मी को कचरा नहीं देंगी किन्तु उसके जाने के कुछ मिंटो में ही घर से निकाले गए कचरे का पैकेट सड़क पर आ टपकेगा। इन सब बातों पर अगर हम गौर करे तो पाएंगे की जागरूकता होने के बावजूद भी अधिकतर लोग सफाई को गंभीरता से नहीं लेते या लोगो में सफाई के प्रति रुझान नहीं है। हमारे बुजुर्गो ने वृक्षों , नदियों , पहाड़ों को किसी न किसी रूप में धर्म से जोड़ दिया था ताकि उनकी अनदेखी न हो और न ही उनका दुरूपयोग, किन्तु पाश्चात्य संस्कृति में सराबोर लोगो को इसमें अन्धविश्वास नजर आने लगा. एक और हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी स्वच्छता अभियान चला कर पूरे भारत के स्वरुप को बदलने की कोशिश कर रहे है दूसरी ओर अनेक टीवी चैनल पान मसाले के विज्ञापन दिखा कर युवाओं को भ्रमित कर रहे है। ऐसे विज्ञापन देख कर ये तो हर कोई समझ सकता है की बिना सरकार की सहमति के कोई भी चैनल इस तरह के बिज्ञापन नहीं दिखा सकता इसका सीधा सा मतलब है की इनसे आने वाले राजस्व का लालच ही सरकार को इन पर कठोर करवाई नहीं करने दे रहा है ठीक वैसे ही जैसे की दुकानदारों पर सख्ती कि वे पॉलीथिन में सामान न दे लेकिन पॉलीथिन बनाने वाले कारखानों पर कोई सख्ती नहीं। जनता के लिए सन्देश गंगा साफ रखे किन्तु सीवर ,टेनरी पर पूर्णतया रोक नहीं है। इन सब बिंदुओं पर ध्यान दे तो ये मानना पड़ेगा कि मोदी जी का सपना भारत को स्वच्छ रखने का तब तक पूरा नहीं हो सकता है जब तक की चैनलों द्वारा इस प्रकार के विज्ञापनों और पान मसाला, गुटका के निर्माण करताओं पर रोक नहीं लगेगी।
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