Sunday 30 December 2012

अपराधों पर लगाम


अख़बार आये और दिन की शुरुआत किसी अच्छी खबर से हो असंभव ।   हम  किसी त्यौहार , किसी नेता की चुनावी जीत , किसी फिल्म स्टार की शादी या फिर क्रिकेट मैच  को  अगर  अच्छी  खबर मानते है तो बात अलग  है । वैसे भी ये आजकल फैशन बन गया है कि जो लोग निस्वार्थ सेवा करे  दुसरो की मदद करे ,भटके हुए को रास्ता दिखाए ,देशी जड़ी बूटियों से इलाज करे , नदियों की सफाई करे ,पर्यावरण  के लिए  कार्य करे तो उन्हें नजरंदाज करो या फिर उनके कार्य में कोई नुक्स निकाल कर उन्हें बदनाम कर दो । वैसे भी बहुत से लोगो की मानसिकता ही यही  है कि  देशी वस्तुए उपयोग करके देशी कहलाना सही नहीं है क्योकि सम्मान तो तभी मिलेगा जब विदेशी तौर -तरीको को आजमाया जायेगा  । हाँ अगर कोई नेता गरीबो में कम्बल , कापी ,पेन्सिल वितरण कर रहा हो या कोई बड़ीसंस्था (जिसकी सरकार तक पहुच हो   )  सेवा के नाम पर शिविर लगाये हो तो उन्हें खबरों का हिस्सा बनाओ क्योकि  ये मिडिया वालो की नजर में   नेक और अच्छा काम है । वैसे भी  नेताओं और पूंजीपतियों  तक पहुचने व्  विज्ञापन जुटाने का इससे बेहतर रास्ता और कोई हो ही नहीं सकता   मिडिया वालो  की नजर में  क्राइम और अंगप्रदर्शन करती फ़िल्मी सेक्सी बालाओ  की प्रदर्शनी यही ऐसी दो विधाए है जिनकी   दम पर   बाजार में टिका जा सकता है  ।  परिणाम  अपराधो और अपराधियों का ग्राफ आये दिन बढ़ता जा रहा है और सेवा भाव कम होता जा रहा है । आप माने या न माने   ये कडुवा सच है की इन बढ़ते हुए अपराधो के पीछे वोट   बैंक की मानसिकता  भी काम कर रही  है।  पहले  दलित वोट बैंक थे फिर मुस्लिम हुए और अब वोट बैंक अपराधियों के हाथ में है । अपराध करो और अपने आका को फोन कर दो खड़े -खड़े जमानत मिल जाएगी उसके बाद पुलिस वाले को उनकी औकात दिखाते हुए कॉलर ऊँचा कर निकल जाओ ।इस स्थिति में अनुशासन प्रिय व् अपराधो के खिलाफ सख्त करवाई करने वाले अफसरों के ऊपर क्या गुजरती होगी ये तो भुक्तभोगी अफसर ही बता सकते है । लेकिन उन नेताओं का क्या जो अपराधी को अपने संरक्षण में रख कर उनके ऊपर अपने वात्सल्य का जम कर  प्रदर्शन कर रहे है।और अपराधी भी वात्सल्य प्रेम में जरा सी कमी देखते ही उन्हें उनकी कुर्सी सरकने का भय दिखा कर मनमानी करते रहते है । जब समाज में अपराधियों की गहरी  पैठ  रहेगी तब सेवाभाव   दम तोड़ता ही दिखेगा ।  भरोसा और विश्वास आप किसी के ऊपर कर   भी नहीं सकते पता नही कब कौन अच्छा बन कर आपको चूना लगाकर चला जाये  । जिस तरह से रेल में सफ़र करने वाले जहरखुरानी के डर से न किसी को खिलाते है और न  खुद खाते है।उसी तरह से सेवा करने वालो के ऊपर से विश्वास ख़त्म हो रहा है । रही -सही कसर  महंगाई ,बेरोजगारी गरीबी ने पूरी कर दी । लोगो के पास अपनी परेशानियों से निकलने का समय ही नहीं बचा  जो   समाज के  दायित्वों के प्रति चिंतन मनन कर सके  ।   इतनी समस्याओं के बावजूद अगर कोई    गंगासागर मेले के समय या फिर कुम्भ के समय निस्वार्थ सेवा करते मिल जाये तो ये प्रशंसनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है जैसा की हो भी रहा है आज भी  बहुत से ऐसे लोग मिल जायेगे जो पैसे और श्रम की परवाह किये बगैर तीर्थयात्रियो की सेवा  पूरे  मन से करते है चाहे वो उनके भोजन की व्यवस्था हो या फिर सोने और ठहरने की । उदयपुर में तो बहुत से लोग स्टेशन पर घूमते रहते है जो किसी विकलांग को देखते ही उसे उसकी निर्धारित रेल में उसकी सीट पर सुरक्षित बिठा कर आते है । या किसी वृद्ध को सहारा देकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाते है ।अगर मिडिया निस्वार्थ सेवा करने वालो को अपने अख़बार या चेनल में थोड़ी सी भी जगह देना आरम्भ कर दे तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में बहुत से लोग इनसे प्रेरणा लेकर समाज को नयी दिशा दे । राजनीतिज्ञ ऐसे लोगो का सम्मान  करे और अपनी सोच बदले तो अपराधियों के ऊपर स्वतः लगाम  लग  जाये । तो क्यों न  2013  का स्वागत   हम सभी  इसी  कामना के साथ  करे                     
                                      " अपराधों पर लगाम अच्छे  कार्यो को सलाम। "

केम्प में तीर्थयात्रियो के लिए भोजन की निशुल्क व्यवस्था 

Saturday 1 December 2012

AAPKI SEHAT AUR BAZAR .


 किसी समय ये पंक्तियाँ आम थी,  
                  "Early to bed early to rise, makes a man healthy wealthy and wise"
  "अरली टु  बेड , अरली टु राईस मेक्स अ  मैन हेल्दी,वेल्दी  एंड वाइस "
लेकिन आजकल महानगरो और नगरो में  चलन है ,
"लेट टू  बेड ,लेट टु राईस ,इट इस टुडे'स  फेशनेबल  लाइफ।"
 देर रात तक काम  करना सुबह देर से उठना, फ्रिज के अन्दर  पैकेट्स में बंद खाने की वस्तुओं को जरुरत के अनुसार खाना या बाजार में आसानी से उपलब्ध मनचाही खाद्य सामग्री को   खरीद कर  पेट भरना और लम्बे समय के लिए व्यस्त हो जाना  । इस दिनचर्या के चलते कितने लोग   जानते ही नहीं की सूरज उगते समय दिखता  कैसा है। रात के  तीन  बजे तक जंहा  गाँवो में लोगो की  नींद पूरी हो जाती है और वो  प्रातःकाल की दैनिक क्रिया से  निवृत होने के लिए सोचने लगते है, वही कितने ही शहरवासी  सोने के लिए बिस्तर पर भी नहीं जा पाते ।इसलिए नहीं की वे दैनिक दिनचर्या निपटाना नहीं चाहते    बल्कि बड़ी-बड़ी अन्तराष्ट्रीय कंपनियों, मिडिया ,कालसेंटर,की  उपस्थिति,उनके आकर्षक पॅकेज आदि ने  अपने  कर्मचारियों  की जीवन शैली बदल कर रख दी ।  बाकि की सेहत ख़राब करने की जिम्मेदारी बड़ी-बड़ी डिब्बाबंद खाद्य सामग्री को बाजार में  उपलब्ध कराने  वाली कंपनियों ने सम्हाल ली ।सत्तू का शरबत , गन्ने का रस ,फलो के जूस पीने वालों की कमी अभी भी नहीं है लेकिन जितनी बिक्री बोतल बंद शीतल पेय की है उतनी देशी जूस ,सूप की नहीं है । अगर सर्वे किया जाये तो भारत में फ़ास्ट फ़ूड की बिक्री काफी बड़ी तादाद में है। जैसा की नेट पर कुछ सर्वे ने साबित किया है की भारत टॉप टेन देशो में आता है । परिवर्तन जीवन की मांग है इसी मांग के चलते  पिज्जा,बर्गर ,हॉटडॉग, चाइनिस और न जाने कौन-कौन सी  फ़ूड कंपनियों ने अपने पांव मजबूती से जमा दिए   जब बाहर का खाना खायेंगे तब गला   ठंडा करने के लिए पानी तो कम ही  रास आएगा और   शीतल पेय को प्राथमिकता पहले दी जाएगी ।ऐसी स्थिति में   शीतल पेय की कंपनिया पीछे क्यों  रहेंगी । चिप्स , कुरकुरे आदि के रंगीन चमकीले पैकेट्स ने बढ़ते प्रदुषण में अपनी अहम् भूमिका   दर्ज करा दी   क्या बच्चा क्या बूढ़ा  सभी बिकने वाले खाद्य पदार्थो को खाना पसंद करते है । घर की महिलाये भी खाना बनाने की जेहमत कम उठाना  चाहती है । वैसे भी होटल में खाना या टिन पैक्ड  खाने को अपनी डाइनिंग टेबल की शोभा बढाना स्टेटस सिम्बल है ।जब स्टेटस सिम्बल की बात आएगी तो कौन इस दौड़ में पीछे रहना चाहेगा बस यही से आरम्भ होता है ख़राब सेहत का दौर और विभिन्न बीमारियों का आक्रमण ।जिनके नाम भी नहीं सुने जाते थे बे आजकल आम बीमारियाँ  बन गयी है । अब इन्सान खाना कम खाता है और दवाइयां  ज्यादा । उसके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग डाक्टरों और अस्पतालों के चक्कर लगाने में निकल जाता है ।प्रत्येक दस में से एक घर ऐसा मिल जायेगा जहाँ कोई न कोई बीमार है । पहले लोग बीमारी को बढती उम्र की निशानी मानते थे लेकिन  आज  बीमारी ने बच्चों को भी नहीं छोड़ा है । कितने परिवारों  में छोटे-  बच्चें अस्थमा ,सुगर , ब्लड प्रेशर  के रोगी दिखाई देते है ।  मोटा होना या पेट बड़ा होना तो आम बात है । जहा बच्चे छरहरी काया के स्वामी समझे जाते थे वही आज के बच्चे बड़ा सा पेट लिए दिखाई देते है क्योंकि ये हमारे बदलते जीवन चक्र का नतीजा है जिसमे सेहत को कम और स्वाद को ज्यादा महत्व दिया है अगर हमने अपने स्वाद पर लगाम नहीं लगायी या जीवन शेली में परिवर्तन नहीं लाये तो इतना   जरुर है  कि भविष्य में  हमारी  आमदनी   बीमारी का इलाज कराने   में ही चली जाएगी और हम समय से पहले ही  निराशा के सागर में गोते लगा रहे होंगे । क्योकि  अच्छी सेहत  के बिना  दुनिया   वीरान  दिखती है ।