Sunday 30 December 2012

अपराधों पर लगाम


अख़बार आये और दिन की शुरुआत किसी अच्छी खबर से हो असंभव ।   हम  किसी त्यौहार , किसी नेता की चुनावी जीत , किसी फिल्म स्टार की शादी या फिर क्रिकेट मैच  को  अगर  अच्छी  खबर मानते है तो बात अलग  है । वैसे भी ये आजकल फैशन बन गया है कि जो लोग निस्वार्थ सेवा करे  दुसरो की मदद करे ,भटके हुए को रास्ता दिखाए ,देशी जड़ी बूटियों से इलाज करे , नदियों की सफाई करे ,पर्यावरण  के लिए  कार्य करे तो उन्हें नजरंदाज करो या फिर उनके कार्य में कोई नुक्स निकाल कर उन्हें बदनाम कर दो । वैसे भी बहुत से लोगो की मानसिकता ही यही  है कि  देशी वस्तुए उपयोग करके देशी कहलाना सही नहीं है क्योकि सम्मान तो तभी मिलेगा जब विदेशी तौर -तरीको को आजमाया जायेगा  । हाँ अगर कोई नेता गरीबो में कम्बल , कापी ,पेन्सिल वितरण कर रहा हो या कोई बड़ीसंस्था (जिसकी सरकार तक पहुच हो   )  सेवा के नाम पर शिविर लगाये हो तो उन्हें खबरों का हिस्सा बनाओ क्योकि  ये मिडिया वालो की नजर में   नेक और अच्छा काम है । वैसे भी  नेताओं और पूंजीपतियों  तक पहुचने व्  विज्ञापन जुटाने का इससे बेहतर रास्ता और कोई हो ही नहीं सकता   मिडिया वालो  की नजर में  क्राइम और अंगप्रदर्शन करती फ़िल्मी सेक्सी बालाओ  की प्रदर्शनी यही ऐसी दो विधाए है जिनकी   दम पर   बाजार में टिका जा सकता है  ।  परिणाम  अपराधो और अपराधियों का ग्राफ आये दिन बढ़ता जा रहा है और सेवा भाव कम होता जा रहा है । आप माने या न माने   ये कडुवा सच है की इन बढ़ते हुए अपराधो के पीछे वोट   बैंक की मानसिकता  भी काम कर रही  है।  पहले  दलित वोट बैंक थे फिर मुस्लिम हुए और अब वोट बैंक अपराधियों के हाथ में है । अपराध करो और अपने आका को फोन कर दो खड़े -खड़े जमानत मिल जाएगी उसके बाद पुलिस वाले को उनकी औकात दिखाते हुए कॉलर ऊँचा कर निकल जाओ ।इस स्थिति में अनुशासन प्रिय व् अपराधो के खिलाफ सख्त करवाई करने वाले अफसरों के ऊपर क्या गुजरती होगी ये तो भुक्तभोगी अफसर ही बता सकते है । लेकिन उन नेताओं का क्या जो अपराधी को अपने संरक्षण में रख कर उनके ऊपर अपने वात्सल्य का जम कर  प्रदर्शन कर रहे है।और अपराधी भी वात्सल्य प्रेम में जरा सी कमी देखते ही उन्हें उनकी कुर्सी सरकने का भय दिखा कर मनमानी करते रहते है । जब समाज में अपराधियों की गहरी  पैठ  रहेगी तब सेवाभाव   दम तोड़ता ही दिखेगा ।  भरोसा और विश्वास आप किसी के ऊपर कर   भी नहीं सकते पता नही कब कौन अच्छा बन कर आपको चूना लगाकर चला जाये  । जिस तरह से रेल में सफ़र करने वाले जहरखुरानी के डर से न किसी को खिलाते है और न  खुद खाते है।उसी तरह से सेवा करने वालो के ऊपर से विश्वास ख़त्म हो रहा है । रही -सही कसर  महंगाई ,बेरोजगारी गरीबी ने पूरी कर दी । लोगो के पास अपनी परेशानियों से निकलने का समय ही नहीं बचा  जो   समाज के  दायित्वों के प्रति चिंतन मनन कर सके  ।   इतनी समस्याओं के बावजूद अगर कोई    गंगासागर मेले के समय या फिर कुम्भ के समय निस्वार्थ सेवा करते मिल जाये तो ये प्रशंसनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है जैसा की हो भी रहा है आज भी  बहुत से ऐसे लोग मिल जायेगे जो पैसे और श्रम की परवाह किये बगैर तीर्थयात्रियो की सेवा  पूरे  मन से करते है चाहे वो उनके भोजन की व्यवस्था हो या फिर सोने और ठहरने की । उदयपुर में तो बहुत से लोग स्टेशन पर घूमते रहते है जो किसी विकलांग को देखते ही उसे उसकी निर्धारित रेल में उसकी सीट पर सुरक्षित बिठा कर आते है । या किसी वृद्ध को सहारा देकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाते है ।अगर मिडिया निस्वार्थ सेवा करने वालो को अपने अख़बार या चेनल में थोड़ी सी भी जगह देना आरम्भ कर दे तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में बहुत से लोग इनसे प्रेरणा लेकर समाज को नयी दिशा दे । राजनीतिज्ञ ऐसे लोगो का सम्मान  करे और अपनी सोच बदले तो अपराधियों के ऊपर स्वतः लगाम  लग  जाये । तो क्यों न  2013  का स्वागत   हम सभी  इसी  कामना के साथ  करे                     
                                      " अपराधों पर लगाम अच्छे  कार्यो को सलाम। "

केम्प में तीर्थयात्रियो के लिए भोजन की निशुल्क व्यवस्था 

Saturday 1 December 2012

AAPKI SEHAT AUR BAZAR .


 किसी समय ये पंक्तियाँ आम थी,  
                  "Early to bed early to rise, makes a man healthy wealthy and wise"
  "अरली टु  बेड , अरली टु राईस मेक्स अ  मैन हेल्दी,वेल्दी  एंड वाइस "
लेकिन आजकल महानगरो और नगरो में  चलन है ,
"लेट टू  बेड ,लेट टु राईस ,इट इस टुडे'स  फेशनेबल  लाइफ।"
 देर रात तक काम  करना सुबह देर से उठना, फ्रिज के अन्दर  पैकेट्स में बंद खाने की वस्तुओं को जरुरत के अनुसार खाना या बाजार में आसानी से उपलब्ध मनचाही खाद्य सामग्री को   खरीद कर  पेट भरना और लम्बे समय के लिए व्यस्त हो जाना  । इस दिनचर्या के चलते कितने लोग   जानते ही नहीं की सूरज उगते समय दिखता  कैसा है। रात के  तीन  बजे तक जंहा  गाँवो में लोगो की  नींद पूरी हो जाती है और वो  प्रातःकाल की दैनिक क्रिया से  निवृत होने के लिए सोचने लगते है, वही कितने ही शहरवासी  सोने के लिए बिस्तर पर भी नहीं जा पाते ।इसलिए नहीं की वे दैनिक दिनचर्या निपटाना नहीं चाहते    बल्कि बड़ी-बड़ी अन्तराष्ट्रीय कंपनियों, मिडिया ,कालसेंटर,की  उपस्थिति,उनके आकर्षक पॅकेज आदि ने  अपने  कर्मचारियों  की जीवन शैली बदल कर रख दी ।  बाकि की सेहत ख़राब करने की जिम्मेदारी बड़ी-बड़ी डिब्बाबंद खाद्य सामग्री को बाजार में  उपलब्ध कराने  वाली कंपनियों ने सम्हाल ली ।सत्तू का शरबत , गन्ने का रस ,फलो के जूस पीने वालों की कमी अभी भी नहीं है लेकिन जितनी बिक्री बोतल बंद शीतल पेय की है उतनी देशी जूस ,सूप की नहीं है । अगर सर्वे किया जाये तो भारत में फ़ास्ट फ़ूड की बिक्री काफी बड़ी तादाद में है। जैसा की नेट पर कुछ सर्वे ने साबित किया है की भारत टॉप टेन देशो में आता है । परिवर्तन जीवन की मांग है इसी मांग के चलते  पिज्जा,बर्गर ,हॉटडॉग, चाइनिस और न जाने कौन-कौन सी  फ़ूड कंपनियों ने अपने पांव मजबूती से जमा दिए   जब बाहर का खाना खायेंगे तब गला   ठंडा करने के लिए पानी तो कम ही  रास आएगा और   शीतल पेय को प्राथमिकता पहले दी जाएगी ।ऐसी स्थिति में   शीतल पेय की कंपनिया पीछे क्यों  रहेंगी । चिप्स , कुरकुरे आदि के रंगीन चमकीले पैकेट्स ने बढ़ते प्रदुषण में अपनी अहम् भूमिका   दर्ज करा दी   क्या बच्चा क्या बूढ़ा  सभी बिकने वाले खाद्य पदार्थो को खाना पसंद करते है । घर की महिलाये भी खाना बनाने की जेहमत कम उठाना  चाहती है । वैसे भी होटल में खाना या टिन पैक्ड  खाने को अपनी डाइनिंग टेबल की शोभा बढाना स्टेटस सिम्बल है ।जब स्टेटस सिम्बल की बात आएगी तो कौन इस दौड़ में पीछे रहना चाहेगा बस यही से आरम्भ होता है ख़राब सेहत का दौर और विभिन्न बीमारियों का आक्रमण ।जिनके नाम भी नहीं सुने जाते थे बे आजकल आम बीमारियाँ  बन गयी है । अब इन्सान खाना कम खाता है और दवाइयां  ज्यादा । उसके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग डाक्टरों और अस्पतालों के चक्कर लगाने में निकल जाता है ।प्रत्येक दस में से एक घर ऐसा मिल जायेगा जहाँ कोई न कोई बीमार है । पहले लोग बीमारी को बढती उम्र की निशानी मानते थे लेकिन  आज  बीमारी ने बच्चों को भी नहीं छोड़ा है । कितने परिवारों  में छोटे-  बच्चें अस्थमा ,सुगर , ब्लड प्रेशर  के रोगी दिखाई देते है ।  मोटा होना या पेट बड़ा होना तो आम बात है । जहा बच्चे छरहरी काया के स्वामी समझे जाते थे वही आज के बच्चे बड़ा सा पेट लिए दिखाई देते है क्योंकि ये हमारे बदलते जीवन चक्र का नतीजा है जिसमे सेहत को कम और स्वाद को ज्यादा महत्व दिया है अगर हमने अपने स्वाद पर लगाम नहीं लगायी या जीवन शेली में परिवर्तन नहीं लाये तो इतना   जरुर है  कि भविष्य में  हमारी  आमदनी   बीमारी का इलाज कराने   में ही चली जाएगी और हम समय से पहले ही  निराशा के सागर में गोते लगा रहे होंगे । क्योकि  अच्छी सेहत  के बिना  दुनिया   वीरान  दिखती है ।

Friday 16 November 2012

KARVA CHAUTH.

A GLAMOROUS FESTIVAL KARVACHAUTH.
WHICH IS CELEBRATED SPECIALLY IN NORTH INDIA AS WELL AS IN PUNJAB .
करवाचौथ के पूजन को संपन्न करने की  तैयारी  में 
शंकर ,पार्वती  के सामने जलता हुआ दिया .
करवा चौथ की कहानी को इन दिव्या शक्तियों से जोड़ता है। 


सजना है मुझे सजना के लिए  
चाँद की प्रतीक्षा में .
आराम के पल 

Friday 12 October 2012

Durga Puja, Show business.

वाह्य आडम्बर या प्रतिष्ठा का परचम  
दुर्गापूजा के आते ही पूरे  बंगाल में एक अजीब सी मदहोशी छा जाती है,दिखायी देती है तो सिर्फ और सिर्फ चारो  तरफ गहमा-गहमी, बाजारों में भीड़ ,सड़कों पर जाम ,पार्को में तैयार होते पंडाल। जिधर भी देखो हर कोई व्यस्त नजर आता है।पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा का आकर्षण है ही इतना जबरदस्त कि दूर -दूर से देशी -विदेशी लोग खिंचे चले आते है उन्हें ज्यादा से ज्यादा तादाद में आकर्षित करने के लिए महीनो पहले से [पंडालों मूर्तियों की तैयारी आरम्भ हो जाती है। प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारतों , मंदिरों एवम ज्वलंत विषयों पर पंडालों का निर्माण किया जाता है । रौशनी की सज्जा भी ऐसी होती है की बस देखने वाला दांतों  तले  उँगलियाँ दबा ले   प्रत्येक पंडाल अपने आप में सारे संसार की सुन्दरता को समेटे हुए दिखेगा । उत्कृष्ट कारीगरी और कल्पना का अनूठा संगम वर्ष में एक बार ही दिखाई देता है । बड़े -बड़े इनाम सर्वश्रेष्ठ पंडाल, मूर्ति ,विद्युत् सज्जा आदि  के लिए रखे जाते है । इन्हें पाने के लिए आयोजक ,प्रायोजक और कुछ बड़े -बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग जाती है ।अपनी प्रतिष्ठा के परचम को सबसे ऊपर लहराने के लिए करोड़ों रूपये की लागत वाले पंडाल बनवाये जाते है ।पूरा बंगाल दुल्हन की तरह से सजाया जाता है । पाँच - छह दिन कोलकाता में रात भी दिन नजर आती है । उस समय कोलकता को देखकर लगता ही नहीं की ये वही कोलकता है जँहा दिन के उजाले में छोटे -छोटे बच्चें गाड़ियों की सफाई करते है,  स्टेशनों पर पानी की खाली  बोतलों को पाने की लालसा में एक दूसरे से छीना - झपटी करते है। दफ्तरों में चाय पहुचातें है ,होटलों में चाय के कप धोतें है। और रात होतें ही थके -मांदे अपनी माँ के साथ चिपक कर सो जाते है ।
फुटपाथ ही बसेरा है .
इन बच्चों के लिए सड़क के किनारे ही शौचालय होते है .होश सम्हालते ही  
दो समय के लिए रोटी कमाना इनका उद्देश्य .
सूरज की पहली किरणे सोये हुए लोगो  के बीच में  जब अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है तब फुट पर सोने वाले लोग अलसाये से शौचालय के आभाव में सड़कों के किनारे, मेट्रो स्टेशन की दीवार के पास ,फ्लाई ओवर के नीचें  मलमूत्र त्याग करते है । किन्तु अगर किसी आयोजक से पूछा जाये कि "आप पंडालों के ऊपर इतनी बड़ी धन राशी खर्च करते है ये सोचकर की ये पंडाल बंगाल की संस्कृति की छाप लोगो के दिलों में स्थायी रूप से छोड़ेंगे और वे बंगाल का नाम आते ही यंहा की दुर्गापूजा के बारे में याद कर अभिभूत हो जायेंगे"  तो वे तुरंत बात काटते हुए कहेंगे की " क्यों नहीं, बंगाल की दुर्गापूजा पूरे  विश्व में प्रसिद्ध है ,इसीलिए लोग पाँच -छह दिन रात- रात जाग कर ,लंबी लाइनों में  घंटो  खड़े होकर एक -एक पंडाल की सुन्दरता निहारते है। " लेकिन आयोजक ये नहीं समझ  पाते कि वही दर्शक दिन के उजाले में फुटपाथ पर सोते हुए गरीबों को देखकर , सड़क के किनारे  मल-मूत्र की गंध सूंघकर ,कचरों के ढेर के पास से गुजर कर  ये जरुर सोचते है की काश इस दिखावे के ऊपर इतनी धनराशी न खर्च कर अगर सफाई के प्रति थोडा भी ध्यान दिया जाता तो इस त्यौहार का मजा ही कुछ और होता ।  यही नहीं जब बंगाल के गाँवो की बदतर हालत के बारे में सुना या जाना जाता है तो भी किसी को  बंगाल के प्रति सहानुभूती नहीं होती वरन ये सोचा जाता है की अगर इस शो -बिजनिस पर थोड़ी सी भी कटौती कर अगर प्रत्येक पंडाल के आयोजक छोटे- छोटे गाँव की उन्नति को अपना उद्देश्य बना ले और वंहा की आवश्यकता के अनुरूप स्कूल , कालेज,अस्पताल ट्यूबवेल ,रोजगार की शक्ति यथाशक्ति मुहैया करवा दे तो बंगाल प्रगति के मार्ग पर काफी आगे निकल जाये ।  लेकिन सवाल ये है की  क्या  विभिन्न पंडाल समितियां इस दिशा  में सोचेंगी । क्या वे अपनी सोच में                                   क्रान्तिकारी परिवर्तन लायेंगी और इन दिखावों पर किये जाने वाले खर्च में से एक  हिस्सा स्थायी ठोस योजना को अंजाम देने के लिए रख सके गा मात्र ये सोचकर की आडम्बर पर खर्च करना बेवकूफी है जबकि जरुरतमंदो के हित में खर्च करना समाज को सुख और समृद्धि देने वाला है । यही नहीं  जरुरतमंदो की सेवा करना सबसे अच्छा कार्य है हमारे पूर्वजों ने भी ये कहा है की " सेवा परमों धर्मं " । 
                आज भले ही आयोजक ये न समझ सके लेकिन आने वाले दिनों में ये तय है की वे इस पर विचार कर झूंठी चकाचौंध से बाहर निकल कर सादगी की तरफ उन्मुख अवश्य होंगे । यही प्रकति का नियम है और इस परिवर्तन शील समाज की मांग भी ।
कोलकता के भव्य पंडाल 








विद्युत् सज्जा 


   


   



     
 दुर्गा देवी की प्रभावशाली  जीवंत  प्रतिमाये।

 














     मस्ती का मिजाज,उल्लास -आनंद के पल 





                              


नवरात्र की षष्ठी से लेकर दशमी तक कोलकता बड़े बुजुर्गो से लेकर बच्चों तक के लिए  आकर्षण का केंद्र रहता ।
नशाखोरो के लिए लाइसेंस ,लैला मजनुओ के लिए एक साथ घुमने का समय .हुडदंग और फूहड़पन  की खुली छूट  । रात में कितने बजे भी घर पहुंचे कोई जाँच पड़ताल नहीं ।

Saturday 8 September 2012

निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल


कुछ वर्षों पहले की बात है ,हमे 'द वेक ' हिंदी पत्रिका के लिए साक्षात्कार लेना था ,सोचा क्यों न इस बार किसी  सांसद  महिला का साक्षात्कार लिया जाये । ये सोचकर हमने एक जानी मानी सांसद जो अभी भूतपूर्व है को फोन लगाया और उन्हें बताया की हमें आपका साक्षात्कार 'द वेक ' के लिए लेना है । जैसा कि अक्सर होता है 'द वेक' को लोग अंग्रेजी पत्रिका  ' द वीक 'समझ लेते है ,उन्होंने भी यही समझा और खुश होकर अपनी सहमति दे दी । हमने उनकी गलतफहमी को दूर करते हुए बताया की ये 'द वीक ' नही बल्कि 'द वेक ' हिंदी मासिक पत्रिका है जो कुछ वर्षो से चल रही है।ये सुनकर उनको इतना ख़राब लगा की उन्होंने बिना रिसीवर रखे ही अपने पास खड़े किसी व्यक्ति को संबोधित करते हुए कहा कि " अरे यार ये तो हिंदी है "।  ये सुनते ही हमने फोन रख दिया और निश्चय किया की भविष्य में हम उनका साक्षात्कार कभी नहीं लेंगे । ये निश्चय इस लिए नहीं किया था की उन्हें हिंदी नहीं आती थी ,वरन वे हिंदी भाषी क्षेत्र से ही थी लेकिन उनका अंग्रेजी के प्रति जुडाव ने मेरा मन खट्टा कर दिया । ऐसे एक -दो नहीं ,सैकड़ो उदाहरण है जब लोग बड़े गर्व से कहते है ," हमारे बच्चे हिंदी नहीं जानते , इनसे बात आप अंग्रेजी में करिए " या मेरो बच्चों को हिंदी गिनती नहीं आती या मेरे घर में अंग्रेजी ही बोली जाती है   या  माफ़ करियेगा हिंदी पत्रिका हमारे घर में नहीं आती आदि । इस प्रकार की बाते करने वाले अधिकतर बड़े -बड़े ओहदों पर बैठे लोग होते है या कुछ सत्ताधारी   जो   मातृभाषा में बात करना अपमान  समझते है और अपनी इस विकृत सोच का परिचय ये कहकर देते है की अगर वे अपनी क्षेत्रीय भाषा में बात करेंगे तो उनपर क्षेत्रवाद का आरोप लगेगा । यही नहीं वे अंग्रेजी बोलकर ये सफाई देते है की इस भाषा को समझने  वालो की तादाद काफी है भारत के भी बहुत से राज्य अंग्रेजी ही समझते है इसलिए अंग्रेजी  बोलकर वे अपनी बात काफी दूर तक पहुंचा सकते है ।इसी व्याख्या की तर्ज पर अंग्रेजी को सविंधान बनाने वालो ने हिंदी की सहयोगी भाषा करार दे दिया था  और हिंदी जिसे सविधान  में  ऑफिशियल लेंग्वेज तो बताया गया किन्तु बट लगाकर साथ ही ये भी लिख दिया की जब तक  समस्त राज्यों का समर्थन न मिल जाये तब तक हिंदी को राष्ट्र भाषा घोषित न किया जाये  परिणाम जिस हिंदी को आजादी के बाद पन्द्रह वर्ष का समय दिया गया था  ये सोचकर की इस दौरान हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा बना दिया जायेगा । वो तमिल ,बंगाल ,कर्नाटक आदि अनेक राज्यों के विरोध का शिकार बन गयी । डी .एम के नेता सी .ऍन .अन्नादुराई ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर हिंदी का विरोध किया और कहा की इसे राष्ट्र भाषा न बनाया जाये .इसी तर्ज पर कुछ और राज्यों के नेताओ ने विरोध किया । पन्द्रह वर्ष की समय अवधि ख़तम होते -होते ये फैसला ले लिया गया की जो राज्य हिंदी नहीं जानते वे अपनी चिट्ठी अंग्रेजी में लिख सकते है और सरकारी काम अंग्रेजी में करने के लिए स्वतन्त्र है । ये उन राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया की   जब तक वे हिंदी को मान्यता नहीं देंगे तब तक हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया जायेगा ।बस यही से आरम्भ होता है अंग्रेजी का वर्चस्व  । देखते -देखते अंग्रेजी लोगो के उच्च स्तर की परिभाषा बन गयी बड़े -बड़े रोजगार अंग्रेजी के रहमोकरम पर लोगो को मिलने लगे । डाक्टरी ,इंजीनियरी ,एम .बी .ऐ,एम सी ऐ आदि की पुस्तकें अंग्रेजी में ही प्रकाशित होती है और इनकी शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी है ।  आई .एस की परीक्षा जिसे बीच   में अंग्रेजी के चंगुल से मुक्ति मिल गयी थी अब फिर से तीस नंबर का पेपर अनिवार्य कर दिया गया ।आम आदमी की लाचारी से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया की  उस  बेचारे  को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च नयायालय में आने वाले अपने मुकदमे के फैसले को समझने के लिए   आज भी अपने वकील के पास जाना पड़ता है । वो अपने बारे में सुनाये गए फैसले को भी नहीं समझ  सकता क्योकि वे अंग्रेजी में दिए गए है ।अब ऐसे में आम आदमी क्या करेगा ,एक समय खायेगा ,जमीन ,जेवर ,घर गिरवी रखेगा किन्तु बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ायेगा । अधिकतर गाँव में हिंदी स्कूलों की स्थिति इतनी बदतर है कि पहले तो   शिक्षक स्कूल पहुचते ही नहीं अगर पहुँच गए तो पढ़ाने  के समय बच्चों के लिए दुपहर का खाना बनाएगे ।  कुछ जगह तो शिक्षको ने , अगर उनके स्कूल उनके निवासस्थान से काफी दूर है तो वे अपनी सुविधानुसार  वहा के स्थानीय व्यक्ति को कुछ रुपयों पर अपनी जगह  पढ़ाने  के लिए रख देते है और खुद वहा के क्लर्क या चपरासी को लालच देकर इस निर्देश के साथ छोड़ देते है की अगर जाँच अधिकारी अचानक स्कूल आ जाये तो वे उन्हें समय रहते सूचित कर दे जिससे वे अपनी पोथी पत्रा लेकर स्कूल में हाजिर हो जाये । सवाल उठता है की ऐसा क्यों है ,इन पर कोई नकेल क्यों नहीं कसता । तो इसके पीछे भी गुलाम मानसिकता जिम्मेदार है  क्योंकि  प्रशासन ,शासन किसी को भी चिंता नहीं है   इन स्कूलों की पढाई की । उनके अनुसार ये स्कूल खाना पूर्ति के लिए है ,पढाई तो अंग्रेजी स्कूल में होती है । बस यही से आरम्भ होता है भाषा के पतन का ,उस भाषा का जो आपको  आपकी जमीं से जोड़ेगी ,अपना साहित्य और संस्कृति समझाएगी ,बताएगी साथ ही विदेशों में आपकी पहचान बनेगी । लेकिन गुलाम मानसिकता वालों के पास समय कहा है ये देखने का । वे ये भी नहीं  सोचना  चाहते की अभी  हाल में हुए ओलम्पिक खेलो में चीन के विजेताओं ने  अंग्रेजी भाषा का प्रदर्शन नहीं किया अपितु अपने देश के गौरव चीनी भाषा को मान  दिया । ये उदाहरण एक अकेले चीन का नहीं है ,वरन अनेक देशो का है जिनकी पहचान उनकी अपनी भाषा है किन्तु भारत के शासक ये बात कब समझेगे ,कब अपनी भाषा को मान  देंगे ।कब वे गुलाम मानसिकता से बाहर निकलेंगे ।इस पर अभी भी प्रश्नचिह्न लगा हुआ है ।
बी बी सी के लोकप्रिय सवांददाता मार्क टुली के शब्दों में .........
When Mark Tully, a BBC reporter retired from the service, he was interviewed on BBC. The interviewer asked him that since he worked for so many years in Bharat, did he find any difference there after independence. He answered. “Though the 'English Rule' is departed from Bharat, the 'Anglicised Rule' is still alive. Nobody from his state can speak fluently in his own mother tongue; because there is no insistence on Nationalistic concept. When the German or Russian leaders go abroad, they interact in their own language. I feel that the whole calculation has gone wrong forBharat as there is lack of Nationalistic concept.” Today whatever adverse is happening in the country is because of the lack of nationalism. Many future generations will have to face the ill effects of this. The rulers just want to hold on to power, not bothering whether the country survives or not!

Tuesday 7 August 2012

YATRA AMARNATH 2012 'BAM-BAM BHOLE '.

         दुर्गम  यात्रा,  दुर्लभ  दर्शन 
पहलगाम जाने वाले  रास्ते  पर 
 भूस्खलन के कारण फंसी   गाड़ियाँ  
2011  में हम लोगो ने , जिसमे काफी लोग शामिल थे ,अमरनाथ जाने की योजना बनायीं और उसी अनुसार टिकिट भी करा ली लेकिन जाने के कुछ दिन पहले ही किसी कारणवश टिकिट केंसिल करानी पड़ी। मन में दुःख तो बहुत हुआ लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था सिवाय एक वर्ष इंतजार करने के ।इस बार मई  (2012) में जैसे ही रजिस्ट्रेशन  करने का समय आया हमने किसी से भी पूछने की कोशिश नहीं की कि कौन जायेगा और कौन नहीं जायेगा। बस अपने ट्रेवेल एजेंट से बात की और अपना व् अपनी बेटी  शुभ्रा   का रजिस्ट्रेशन करने के लिए कह दिया और इधर अपनी व् अपनी बेटी की टिकिट 16 जुलाई 2012,  जम्मूतवी ट्रेन से बनाने के लिए दे दी।   किन्तु मन में एक संशय था की कोई आदमी साथ में होना चाहिए , पता नहीं कहा कौन सी परेशानी आ जाये ।वैसे तो हमारे ट्रेवेल एजेंट ने जिम्मेदारी ले ली थी ,फिरभी  हमने अपने छोटे भाई से बात की और पूछा की क्या वो  हमारे साथ अमरनाथ यात्रा पर जायेगा उसने भी सुनते ही हामी भर दी और अपना रजिस्ट्रेशन इटावा    से करवा लिया । इधर 'द  वेक ' हिंदी मासिक पत्रिका के ज्योतिषाचार्य टी पी तिवारी  जी ( पहले भी दो बार अमरनाथ की यात्रा कर चुके है) ने जब सुना कि  हम लोग अमरनाथ यात्रा पर जाने की तैयारी  में है तो उन्होंने तीसरी बार हम लोगो के साथ जाने का मन बना लिया । उनकी तैयारी  ने हम लोगो में उत्साह भर दिया क्योंकिं वे हम लोगो के लिए एक अच्छे गाईड    सिद्ध होने वाले थे । हमारी तैयारी   अपनी रफ़्तार से चल रही थी इधर हमारे श्रीमान मनोज त्रिवेदी जी ने सोचा की जब जाने का समय आएगा तब वे अपनी  टिकिट वी आई पी से करवा कर हम लोगो के साथ चले जायेंगे लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था                                
  एक  सुनसान होटल में चाय  बनाते  सहयोगी 
 रामबन  के  पास  चिनाव   नदी   के  किनारे
 जाम    के दौरान  का  एक दृश्य  
ऍन वक्त पर उनके मेनेजर की माता जी का स्वर्गवास हो गया जिस कारण उनका जाना स्थगित हो गया । आरम्भ में सबको लगा की शायद हम अपनी टिकिट कैंसल करा ले लेकिन जब हमारे निर्णय की गंभीरता देखी तो सबने हथियार डाल दिए
और इस तरह हम एक दुर्गम यात्रा की तरफ बढ़ निकले । इस ट्रिप में तीस लोग थे कुछ स्लीपर में तो कुछ ए सी थ्री में तो कुछ एसी टू में। ट्रेन ने जब स्टेशन छोड़ा तब हमने अपने केबिन में देखा की कौन लोग हमारे सहयात्री है क्योंकि उससे पहले हम साथ जाने वाले लोगो के साथ स्टेशन पर ही व्यस्त थे । सहयात्रियों से बातचीत के दौरान पता चला की वे सभी जम्मू कश्मीर की यात्रा पर है । उनमे से एक दो को छोड़कर बाकि के सारे लोग श्री अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले है । मन को बड़ा सुकून मिला की हम अकेले नहीं है इस जोखिम भरी यात्रा के राहगीर ।ट्रेवेल एजेंट का इंतजाम काफी अच्छा था ,खाने पीने की कोई तकलीफ नहीं हुयी । सहयात्री भी सही थे इसलिए सफ़र आसानी से कट गया । ट्रेन निश्चित समय से चार घंटे लेट जम्मू पहुंची हम लोग साढ़े बारह बजे जम्मू स्टेशन पर उतरे । वहा की गर्मी की प्रचंडता ने दिमाग ख़राब कर दिया ।हम लोग जो  दस  महीने कोलकाता की गर्मी को कोसते है सोचने पर मजबूर हो गए की जम्मू कितना गरम है ।  ट्रेन लेट नहीं होती तो   पूरा   दिन हम   जम्मू में  गुजारते   और पूरा जम्मू आराम से घूम लेते किन्तु देर से पहुचने  के कारण खाना खाते                  
                                                                                         पीते    दिन का दो बज  गया । बाहर गर्मी                  
                                                                                          अपने पू रे यौवन पर थी । हम लोगो की हिम्मत नहीं हुयी की हम लोग बाहर जाकर घूम सके । दिन के साढ़े  चार बजे हम लोग होटल से  बाहर आये और ऑटो कर के घुमने  निकले ।  ऑटो वाले ने साढ़े तीन सौ रूपये प्रत्येक ऑटो के अनुसार लिए । इस  तरह तीन ऑटो में   सवार होकर हम लोगो ने जम्मू घूमा । लेकिन जम्मू घूमने में मजा नहीं आ  रहा था । आँखों के सामने अमरनाथ और कश्मीर की सुन्दरता नाच रही थी । एक ऐसी दुनियां जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी ।   कश्मीर की खबरे और प्राकृतिक सुन्दरता सिर्फ अखबारों तक ही सीमित रहती । कश्मीर का नाम आते ही वंहा के दंगे -फसाद आतंकवादी ,अलगाववादी सभी डराने लगते और कश्मीर जाने की योजना कल्पना मात्र बनकर रह जाती । श्री अमरनाथ यात्रा के समय वंहा सुरक्षा का अतिरिक्त बंदोबस्त होता है.अतः  तीर्थ यात्री या पर्यटक सभी सुरक्षित रहते है ।  इतनी सुरक्षा के   बाद भी आतंकवादी अपने मंसूबो को पूरा करने में कामयाब हो जाते है । एक दिन जम्मू में रूककर हम लोग दुसरे दिन  सुबह साढ़े पञ्च बजे तीन टेम्पो travelor   में सभी बैठ कर पहलगाम के लिए रवाना हो गए । अभी कुछ ही दूर गए थे की एक पुलिस वाले ने गाड़ी रोक दी और बाइपास से जाने को  कहा । जब बाइपास पहुंचे ( उधमपुर से पाँच किलोमीटर पहले ) तो वंहा काफी  जाम  लगा था । पता चला की रामबन के पास भुस्खंलन ( लैंड -स्लाइड ) हुआ है इसी कारण यात्रा बाधित हो रही है । सर पर चढ़ता हुआ सूरज और दूर -दूर तक आबादी का कोई  नामो - निशान नजर नहीं आ रहा था नजर आ रही थी तो सिर्फ ट्राफिक पुलिस और  जाम में  लोग । थोड़ी देर इधर -उधर भटकने के बाद पता चला की दो किलोमीटर की दूरी पर एक होटल है । ये सुनना था की हम नौ लोगो की टीम जो एक टेम्पो traveler में   बैठी हुयी थी होटल की दिशा में पैदल ही चल दी । वंहा पहुचे तो देखा की राजकुमार घोष जो की हमारे साथ ही इस यात्रा में शामिल थे हमलोगों से पहले पहुँच कर उस सूनसान होटल में मैगी बना रहे है. । हम लोगो ने उन्हें चिढाते हुए कहा की आपने इस होटल का चार्ज कब से सम्हाल लिया है । उन्होंने भी हँसते हुए जवाब दिया की इस होटल वाले को मैगी बनाना नहीं आता अतः हम आप लोगो के लिए मैगी बना रहे है । उन्होंने बड़े प्रेम से हम लोगो को मैगी बना कर खिलाई और साथ में बढ़िया सी चाय बना कर दी। हंसी -मजाक के दौरान तीन चार घंटे आसानी से कट गए । जैसे ही खबर मिली की दूसरा रास्ता जो शहर से होकर जाता है खुल गया है ।हम सभी आनन-फानन  अपनी गाड़ियों में बैठ गए । जैसे ही गाड़ी कुछ आगे बढीं की रस्ते में तैनात पुलिस ट्राफिक ने फिर से रोकने की कोशिश की तो उससे बहाना बना दिया की हम लोग उधमपुर स्टेशन ट्रेन पकड़ने के लिए जा रहे है ।हम लोगो का बहाना  काम कर गया किन्तु जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे ही जाम में फंस रहे थे । गाड़ी चलने की जगह    रेंग रही थी । रात गहराने के साथ ही पहलगाम देखने की  उत्सुकता मन में दफ़न होने लगी क्योकिं योजना के मुताबिक बीस जुलाई को ही  हम लोगो को शेषनाग झील के लिए रवाना होना था  मेरी उदासी देखकर टी पी तीवारी सर ने समझाते हुए कहा की पहलगाम का बहुत बड़ा हिस्सा हम लोग चन्दन बड़ी जाते समय देख लेंगे । 
   चिनाव  नदी के  किनारे 

A view of Chenav river 

पहलगाम  में ,होटल आईलेंड  के   बाहर 

 पहलगाम 
Road of Pahalgam , full of scenic beauty 

 पहलगाम में लिद्दर  नदी
 Beautiful view of Pahalgam Garden 

 चन्दन   बाडी  से  पिस्सू  टॉप   की  ओर जाते तीर्थयात्री 

 लिद्दर  नदी के ऊपर जमी हुयी बरफ   




  Lidder river goes along  on the way of Pissu top 

Langar in Pissu top 

Descending from the horse at Pissu top 

Resting in a langar of Pissu top 

It's very hard to track.

being exhausted  unable to climb.

A wooden old  narrow bridge ,which everyone has to cross on foot.
horses are not allowed, It's very risky.

In a camp of Sheshnag Jheel 

At the gate of Sheshnag jheel's camp.

Mahagunas Parvat. 



















अभी तो काफी चलना है ।

पहाड़ों के बीच से गुजरती लिद्दर नदी 

शेषनाग झील के पास 

 शेषनाग  झील 

पंचतारनी  के रास्ते पर श्रद्धालु 

महागुनस  पर्वत , समुद्रतल से  14900 फीट की  ऊंचाई पर 
( गणेश पर्वत, यहाँ शिव जी ने गणेश भगवन को छोड़ा था ) 

 अचानक बर्फ टूटने  से  पानी में फंसे दो घोड़े,  
जिन्हें निकालने की कोशिश करते लोग । 
 पंच्तारनी  में   भंडारा 

Near the bank of Panchtarani river.
Which called Sangam
 

A photo session with BSF soldiers & journalist of Panjab. 




Flags of India at the height of  2000 km.




along with army officers.

Resting in Military Camp.

Very narrow way   from
Panchtarni to Shri Amarnath Holy cave 

Too tired to walk. 

A moment of  heavy relief . At Baltal Camp.