Saturday 2 May 2020

भारत गूंगा नहीं

27 अगस्त 2019  के टेलीग्राफ में एक छोटी सी खबर " अमेरिका  के राष्ट्रपति ट्रंप का वक्तव्य  " ही ( नरेंद्र मोदी ) एक्चुअली स्पीक्स वेरी गुड इंग्लिश, ही जस्ट डस नॉट वांट टू टॉक" पढ़ी तो बहुत ही खुशी हुई  क्योंकि मोदी को हिंदी में बोलते देख अक्सर अंग्रेजी प्रेमी मोदी के अंग्रेजी न जानने पर सवाल उठाते थे, हिंदी में मोदी के संबोधन, उद्बोधन को मोदी की मज़बूरी बताते थे और  उनका अंग्रेजी में  ज्ञान न होना उनके अपूर्ण व्यक्तित्व की पहचान बताते थे। लेकिन वे तथाकथित अंग्रेज ये भूल जाते है की जिस  अंग्रेजी को वो स्मार्टनेस की निशानी समझ खुद को हाई - फाई समझ कर गौरवान्वित हो रहे है वो उधार ली हुई भाषा है ना कि आपको अपने देश की जड़ों से जोड़ने वाली, संस्कृति से परिचय कराने वाली, अपने देश का मान - सम्मान बढ़ाने वाली भाषा है।  यूके में रहने वाली मेरी मित्र ने बताया था कि जब वो वहां गई थी तब उनके बच्चे छोटे थे और उन्हें अच्छी अंग्रेजी सिखाने के लिए वे घर में अंग्रेजी बोलते थे एक दिन उनकी बेटी स्कूल से बहुत नाराज़ अाई और बोली "ममा  प्रत्येक देश की अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति होती है परन्तु हम भारतीयों के पास अपना कुछ भी  नहीं है  हम सपेरों के देश के है क्या यही हमारी पहचान है?" उसके बाद वहां रहने वाले भारतीयों ने ये निर्णय लिया कि हम लोग  छुट्टी वाले दिन मंदिरों में अपने बच्चो को भाषा और तीज - त्योहार की जानकारी देंगे उन्हें  वर्ष में एक बार भारत लाएंगे और उनके देश से मिलवाएंगे। 
भाषा के प्रति सम्मान, समर्पण देखना है तो छोटे से देश नेपाल को देख कर सीखना चाहिए जहां अंग्रेजी सीखी जाती है व्यवसाय करने के लिए किन्तु आपस में बोलने के लिए, साहित्य लिखने के लिए, अपनी मातृ भाषा नेपाली को ही प्राथमिकता दी जाती है।  सीखना है तो जर्मनी, जापान, चाइना  से सीखना चाहिए जिन्होंने अंग्रेजी को महत्व न देकर अपनी मातृ भाषा को महत्व दिया। लेकिन हम देशवासियों की मज़बूरी की यहां रोजगार अंग्रेजी जानने वालों को मिलते है, मातृ भाषा में महारथ हासिल करने वाले को पिछड़ा के टैग से नवाजा जाता है। ये कहना कदापि गलत नहीं होगा कि आजादी के दशकों बाद भी हमारे राजनेताओं ने भाषा के आधार पर कभी भारत को एक नहीं होने दिया। जबकि गांधी जी ने स्वयं कहा था कि जिस देश की कोई भाषा नहीं होती वो देश गूंगा होता है। दक्षिण भारत ने भी सदैव हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाए जाने का विरोध किया यहां तक कि तमिल वासियों ने 2019 की नई शिक्षा नीति जिसमें  हिंदी को बढ़ावा देने की बात है उसका विरोध किया और अंत में सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि हिंदी को थोपे न। संवैधानिक दृष्टि से हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं बन पा रही है ये दुख की बात है किन्तु मोदी  जी ने जिस तरह से हिंदी का प्रचार - प्रसार किया है उसने ये साबित कर दिया कि भारत देश गूंगा नहीं  है उसके पास अपनी भाषा है। उनकी हिंदी से प्रभावित होकर बराक ओबामा जय हनुमान जी बोलने लगे,  मोदी है तो मुमकिन है कि तर्ज पर " ट्रंप है तो मुमकिन है"  अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप  ने अपना स्लोगन बना लिया। ये सब देख कर, सुन कर अधिकतर लोग  गर्वित महसूस करते है कि अब हिंदी को आसमान छूने से कोई नहीं रोक सकता  लेकिन हिंदी से हिंग्लिश की ओर जाती भाषा पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा है जबकि इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो हम जिस हिंदी को जानते है समझते है उसका मूल स्वरूप ही बदल जाए और दिल मांगे मोर और ठंडा ठंडा कूल कूल हो जाए। अतः अकेले मोदी ही नहीं हम सबको प्रयास करना होगा हिंदी के वास्तविक स्वरूप को बचा के रखने की क्योंकि - निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल।



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